दुर्गा प्रसाद शुक्ला और अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
प्रयागराज: प्रयागराज के चकिया मोहल्ले में रात के सात बजे का वक्त है। सुनसान सी एक सड़क पर शनिवार की शाम कोई स्ट्रीट लाइट नहीं जल रही। जाली लगा एक बाड़ा है, जिसमें दो कुत्ते सो रहे। एक पुरानी फिएट गाड़ी इसी जाली से सटी खड़ी है। बगल में एक रास्ता है, जिसके बाईं ओर तालाब बताया जा रहा है और दाईं ओर मलबे में तब्दील एक मकान दिखता है। 3-4 पुरुष पुलिसकर्मी और 2 महिला पुलिसकर्मी इसी मलबे के बीच खाली जमीन पर बैठे हैं। पेड़ पर एक स्ट्रीट लाइट वाली LED बंधी है, लेकिन जल नहीं रही। कुछ अस्थाई खंभों पर भी ऐसी ही LED लगी है। अंधेरे में बैठे पुलिसवाले अपना फोन चलाते वक्त काट रहे। मीडिया वालों की गाड़ी रुकती है, तो कोई पुलिसवाला उसी कुर्सी पर बैठे-बैठे पूछता है। कौन चैनल से हैं सर? पता मिल जाने पर फिर वही मोबाइल सहारा है।
पीने के पानी के लिए एक छोटा फिल्टर रखा है, कुछ कुर्सियां और एक LED। मच्छर कटवाते मकान का मलबा देख रहे ये पुलिसवाले जहां तैनात हैं, वो स्थान पहले अतीक अहमद का पता था। 22 सितंबर 2020 को इसी मकान को साढ़े 5 घंटे में पोकलैंड और जेसीबी लगाकर गिरा दिया गया था। संपत्ति का अगर क्षेत्रफल देखेंगे तो वो करीब 4 बीघे में होगा। ध्वस्तीकरण के रोज से इस घर पर पुलिस का पहरा है। यहां तैनात एक पुलिसकर्मी कहता है। सुबह की शिफ्ट में पीएसी वाले भी आ जाते हैं, शाम को तो हम लोग हैं ही। पर पुलिस के अलावा इस घर पर, मोहल्ले में और सड़क पर कोई खास चहलकदमी नहीं है।
पुलिस, पुलिस और सिर्फ पुलिस का पहरा
ईद के दिन अतीक के मोहल्ले की तस्वीर यही दिखी। चकिया के इसी मकान पर अतीक का परिवार सालों रहा था। किसी जमाने में ईद के रोज शाम के इस वक्त इस घर से सेवइयां, कुर्ते, दुपट्टे और पैसा ले जाने वालों का जलसा लगता था। पर आज सन्नाटा है। मोहल्ले में ड्यूटी दे रहे पुलिसकर्मी किसी चबूतरे पर धूप से बचने के लिए ठौर लिए हैं। आते-जाते कोई गलत-सही दिखा तो पूछ लिया…कहां जा रहे हो। फिर बैठे दिन यही सड़क निहारते कटती है। चाय वालों के सहारे, घड़ी के सहारे और मोबाइल के सहारे। ईद के दिन सड़क पर चल रहा आम कोई अतीक के घर की ओर उंगली दिखाकर अपने साथ वालों को कोई कहानी बताता है और फिर बिना रुके आगे बढ़ जाता है। पर दुकानें बंद हैं। बिजली कटौती हो जाए तो सन्नाटा और गहराता है।
अतीक का दफ्तर टूटा, परिवार जेल में… बसपा का झंडा बरकरार’
इस मकान से कुछ एक सवा किलोमीटर दूर अतीक का ऑफिस है। इस इलाके में भी मुस्लिमों की संख्या अधिक है। दो ओर से आती सड़क के कॉर्नर पर एक ध्वस्त हुआ दफ्तर भी सुनसान पड़ा है। हालांकि इसपर बसपा का झंडा आज भी लगा है। घर के बाहर खड़े लोग बताते हैं कि ये अतीक का दफ्तर है। इस ऑफिस पर भी जेसीबी चल चुकी है। टूटे ऑफिस से हीश जनवरी में शाइस्ता परवीन ने यहां से चुनाव प्रचार किया ही था कि 24 फरवरी को उमेश पाल कांड हो गया। घर छोड़ना पड़ा और शायद शहर भी। तब से ये ऑफिस सूनसान सा पड़ा है। ईद के दिन भी यहां सन्नाटा दिख रहा। शाइस्ता परवीन, असद, उमर, अली अतीक का कोई पारिवारिक सदस्य यहां मौजूद नहीं। इस मकान की छत पर झंडा लगा है, लेकिन पार्टी की गतिविधि के नाम पर कुछ नहीं हो रहा।
‘सब शांति से बीता, ये उपलब्धि है सरकार की’
ईद के मौके पर प्रयागराज में शनिवार को पूरे दिन और सारी शाम यही नजारा दिखा है। मुस्लिम वोटर्स ने फिलहाल मीडियो को कुछ नहीं कहा, लेकिन कहने के लिए बहुत कुछ बताया जरूर है। कैमरा देखते हुए लोग खामोश होकर जाते दिखे। दबी जुबान में लोगों ने कहा- मीडिया तो हमारी बात दिखाएगा नहीं। कुछ खास चैनलों पर ये तोहमत ज्यादा लदी है। लेकिन अतीक के जाने के बाद सुरक्षा इंतजाम सारे असंतोष पर भारी हैं। मोहल्ले में लोग सरकार की इस बारे में तारीफ करते हैं। एक बूढ़ी उम्र के शख्स कहते हैं- हमको लगा था अतीक के जाने के बाद कुछ होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकार ने चाहे जैसे, सब काबू में रखा है। सरकार ऐसे ही चलती है, यही उपलब्धि है कि ईद के दिन सब शांति से बीत गया है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."