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19 January 2025 4:27 am

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गज़ब रिवाज है यहां होली मनाने की, सैकड़ों साल से ऐसे मनाया जाता है यहां होली 

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कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट 

हमीरपुर: उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले का एक ऐसा गांव जहां इस गांव में होलिका दहन के आठवें दिन ही पूरा गांव सामूहिक रूप से रंग और गुलाल से होली खेलता है। दिन भर गांव की चौपाल में फाग की महफिलें भी सजती है। इस गांव में आठवें दिन होली खेलने की परम्परा भी सैकड़ों साल पुरानी है जिसमें क्षेत्र के सत्रह गांवों के लोग शामिल होते है।

हमीरपुर के कुरारा थाना क्षेत्र के दर्जनों गांवों में होली जलते ही रंग गुलाल से बच्चे और युवक सराबोर हो जाते है मगर क्षेत्र का एक ऐसा गांव जहां सैकड़ो सालों से होली त्योहार होलिका दहन के आठवें दिन मनाए जाने की परम्परा कायम है। गांव के समाजसेवी राकेश द्विवेदी ने बताया कि गांव में सैकड़ों सालों से होली जलने के आठवें दिन ही यहां रंगों की होली खेली जाती है। गांव में होली पर कई कार्यक्रम भी होते है। जिसमें आसपास के 17 गांवों के लोग शामिल होते है। फाग गाने वालों की टोलियां भी निकलती है।

चौपालों में फाग गायकों की महफिलें सजती है। बताया कि गांव में यहीं एक ऐसा त्योहार है जिसे पूरा गांव सामूहिक रूप से होली के रंग और गुलाल से सराबोर होता है। गांव के रमेश द्विवेदी समेत अन्य बुजुर्गों ने बताया कि इस गांव में होली का त्योहार अनोखे ढंग से मनाए जाने की परम्परा है। जिसमें पुरानी परम्परा का हिस्सा भी एक दर्जन से अधिक गांवों के लोग बनते है। पिछले कई सालों से अब यह परम्परा कमजोर होने लगी है। इसके बावजूद गांव में तो आठवें दिन ही रंगों की होली खेली जाती है।

होली पर्व की दूज तक क्षेत्र में मचा था भीषण संग्राम

कण्डौर गांव के बुजुर्गों ने बताया कि राजा हम्मीरदेव और यमनों के बीच भीषण युद्ध हुआ था जिसमें वीसलदेव व सिंहलदेव ने राजगढ़ से आकर यहां हम्मीरदेव के पक्ष में युद्ध किया था। युद्ध भी होली की दूज तक चला था। युद्ध जीतने के बाद उपहार में सिंहलदेव और वीसलदेव को कुरारा क्षेत्र के बारह-बारह गांवों की जागीर दी गई थी।

वीसलदेव का विवाह भी हम्मीरदेव की बेटी रामकुंवर के साथ हुआ था। नौंवी पीढ़ी के कोर्णाक देव के नाम पर ही कुरारा का नाम पड़ा था। उन्होंने अपने सभी गांव अपनी संतानों को बांट दिए थे। जिसमें कुरारा, रिठारी, जल्ला, चकोठी, पारा, कण्डौर, पतारा, झलोखर व नौंवी संतान को टीकापुर, वहदीना, कुम्हऊपुर व बैजे इस्लामपुर आदि गांव दिए गए थे।

भीषण संग्राम के बाद गांव में रंग खेलने की पड़ी परम्परा

होली जलने के आठवें दिन रिठारी, पारा, मोराकांदर, परसी, टीकापुर, वहदीना, हरेहटा, कुरारा, जल्ला व चकोठी सहित सत्रह गांवों के गौरवंश के लोग कण्डौर गांव में होली का रंग खेलने जाते है। फाग गाने वालों की तमाम टोलियां भी गांव में निकलती है। साथ ही एक जगह फाग की महफिलें सजती है जिसमें रात में भी होली त्योहार का जलसा होता है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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