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प्रमोद दीक्षित मलय
फागुन दस्तक दे रहा, बानी मीठी बोल।
प्रेमसुधा भर लीजिए, हृदय झरोखा खोल।।
सरिता तट तरुणी खड़ी, डगर बिछाये नैन।
जोति जगी पिय मिलन की, नहीं परत अब चैन।।
बाहर शीतल शांति है, भीतर धधके आग।
ठूँठ पल्लवित हो रहे, सुन फागुन के राग।।
प्रेमसुधा रस पान कर, बढ़ी हृदय की प्यास।
पुनि-पुनि पीना चाहता, सदा लगाये आस।।
फागुन में बौरा रहे, महुआ, बरगद, आम।
प्रेम अंकुरित हो रहा, आग जगाये काम।।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."
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