राकेश तिवारी की रिपोर्ट
गोरखपुर: धार्मिक पुस्तक रामचरितमानस (Ramcharitmanas) को लेकर काफी विवाद हो रहा है। हाल में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य भी Ramcharitmanas पर विवादित टिप्पणी कर बुरा फंस गए हैं। वहीं इन विवादित बयानों पर गीता प्रेस के प्रबंधन ने कहा कि ऐसे बयान सिर्फ सस्ती लोकप्रियता पाने के अलावा कुछ नहीं। बल्कि ऐसी बयानबाजी पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता नहीं। इस तरह की बयानबाजी से नेता खुद अपना और अपनी पार्टी का ही नुकसान करते हैं। उन्होंने बताया कि इस तरह की बयानबाजी के बाद रामचरितमानस जैसी धार्मिक पुस्तकों की बिक्री में बढ़ोतरी ही होती है।
बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की धार्मिक पुस्तक रामचरितमानस पर विवादित बयानबाजी की तपिश उत्तर प्रदेश में भी पहुंच गई। सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को बैन कर दिए जाने की बात कही है। इसके बाद प्रदेश में भी राजनीति गरमा गई है। रामचरितमानस पुस्तक और बयानबाजी को लेकर एनबीटी की टीम ने गीता प्रेस प्रबंधन से पूछा कि क्या इस तरह के बयानबाजी के बाद धार्मिक पुस्तकों की बिक्री पर कोई असर पड़ता है? इस पर गीता प्रेस के प्रबंधक लाल मणि तिवारी ने बताया कि रामचरितमानस तो समाज को जोड़ने का ग्रंथ है, तोड़ने का नहीं। इस तरह की बयानबाजी कर रहे लोग सस्ती लोकप्रियता पाने की कोशिश करते हैं।
रामचरितमानस पर टिप्पणी कर खुद को पहुंचाते है नुकसान
उन्होंने कहा कि मुझे यह भी पता नहीं कि ऐसी बयानबाजी से इन नेताओं को कोई लोकप्रियता मिलती है या नहीं। यह जरूर कह सकता हूं कि ऐसी बयानबाजी के बाद लोग स्वयं का नुकसान तो करते ही हैं, वही अपनी पार्टी का भी भरपूर नुकसान करते हैं। लाल मणि तिवारी कहते है कि इस तरह के बयानबाजी के बाद धार्मिक ग्रंथों सहित रामचरितमानस की बिक्री में वृद्धि निश्चित रूप से होती है।
करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र रामचरितमानस
लालमणि तिवारी कहते हैं कि रामचरितमानस ग्रंथ से सभी की आस्था जुड़ी हुई है। यह ऐसा ग्रंथ है, जिसमें सबसे बड़े त्याग का वर्णन किया गया है। श्रीराम अयोध्या राज्य अपने अनुज भरत को सौंपना चाहते हैं, वहीं भरत अपने बड़े भाई श्रीराम प्रभु को ही राज्य सौंपने की बात कहते हैं। सारा जीवन उनकी सेवा और उनके चरणों में बिताने की बात कहते हैं। यह ग्रंथ अटूट प्रेम, सौहार्द और मित्रता की भी मिसाल है। जहां श्रीराम प्रभु ने कोल, भीलो और सबरी को गले लगाया। वहीं निषाद राज और श्रीराम प्रभु की मित्रता का सबसे बड़ा प्रमाण भी है। करोड़ों लोग घर-घर में रामचरितमानस का पाठ करते हैं और उसे अपने घर के मंदिरों में रखते हैं। देश-विदेश तक इस पुस्तक की डिमांड है। यह इस बात को प्रमाणित करता है कि रामचरितमानस घर-घर में लोकप्रिय है। बावजूद इसके यदि कोई रामचरितमानस पर इस तरह की टिप्पणी करता है तो यह हास्यास्पद है।
हर साल 5 लाख रामचरितमानस पुस्तक का होता है प्रकाशन
विश्व में सबसे ज्यादा धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन करने वाले गीता प्रेस मैनेजमेंट के अनुसार प्रतिवर्ष सवा दो करोड़ से ज्यादा धार्मिक पुस्तकें यहां प्रकाशित की जाती है। इसमें 9 भाषाओं में 5 लाख से ज्यादा रामचरितमानस का प्रकाशन होता है। रामचरितमानस कि कुछ पंक्तियों पर हमेशा विवाद होता रहा है। इसमें प्रमुख रूप से “ढोल, शुद्र ,पशु, नारी सब ताड़ना के अधिकारी” के संदर्भ में गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी कहते हैं कि रामचरितमानस को तुलसीदास ने अवधी भाषा में लिखा है। उन्होंने कहा कि अवधी भाषा और हिंदी भाषा के बहुत से शब्दों के अर्थ में अंतर है। जैसे ताड़ना का मतलब सिर्फ मारना पीटना ही नहीं होता, भोजपुरी में भी ताड़ना यानी देखने को कहा जाता है। इन सारी चीजों पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
सिर्फ एक चौपाई से न निकाले अर्थ
लालमणि तिवारी ने बताया कि लोग अपनी अपनी समझ के अनुसार इन चौपाइयों का अर्थ निकाल लेते हैंऔर विवाद को जन्म देते हैं। यदि उन्हें इसकी सही और सटीक जानकारी प्राप्त करनी है और इन ग्रंथों को पढ़ना होगा, सिर्फ एक चौपाई का अपने हिसाब से अर्थ निकाल कर उस पर टिप्पणी करना उचित नहीं है। इस तरह की शंका समाधान के लिए हमारे यहां सात खंडों में “मानस पीयूष” का प्रकाशन किया जाता है। जहां प्रत्येक चौपाई का अर्थ समझाया गया है। यदि उसका अध्ययन कर लिया जाए तो सारी स्थितियां स्पष्ट हो जाएंगी। हमारे ग्रंथों में जो है हमने छाप दिया है। हमें इस पर कोई सफाई टिप्पणी देने की आवश्यकता नहीं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."