मोहन द्विवेदी की रिपोर्ट
आजकल टीवी चैनलों पर एक आध्यात्मिक-सा चेहरा छाया हुआ है। हालांकि वह खुद को न तो भगवान, संत-सिद्ध और न ही कोई चमत्कारी पुरुष मानते हैं। वह सिर्फ बालाजी हनुमान के भक्त हैं और उन्हीं की कृपा से सब कुछ करते हैं। वह कैंसर, लकवा, पोलियो, एड्स सरीखी गंभीर बीमारियों के इलाज का भी दावा करते हैं। क्या अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों पर तालाबंदी कर दी जाए? अलबत्ता वह डॉक्टर से सलाह लेने का परामर्श भी लोगों को देते हैं। बीते कुछ दिनों से टीवी चैनलों पर आध्यात्मिक महाराज, उनके कथित ‘दिव्य दरबार’ और भूत-पिशाच से परेशान लोगों को दिखाया जा रहा है। आध्यात्मिक पुरुष के लंबे-लंबे साक्षात्कार प्रसारित किए जा रहे हैं। महाराज बार-बार ताली बजाकर कुछ ठोंकते हैं और फिर आह्वान करते हैं कि हिंदुओ! जाग जाओ। तुम मेरा साथ दो, मैं हिंदू राष्ट्र बनवा कर दिखाऊंगा। यह आह्वान नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारे की पैरोडी लगता है, क्योंकि 23 जनवरी को नेताजी का जन्मदिवस था। महाराज आगे कहते हैं कि हिंदू शेर हैं, भगोड़े नहीं। भारत अकबर का नहीं, संन्यासियों का देश है। सनातन धर्म को चुनौतियां और धमकियां दी जा रही हैं। बालाजी हनुमान और प्रभु राम के भक्त चमत्कारी हैं या पाखंडी हैं अथवा कोई चालबाजी है, हम न तो पुष्टि कर सकते हैं और न ही भर्त्सना पूर्ण खंडन कर सकते हैं। उनके कथित दरबार में लाखों की भीड़ उमड़ती है। कोई तो श्रद्धा या आस्था होगी! लोग उन्हें ‘भगवान’ का प्रतीक और ‘अंतर्यामी’ मानते हैं। भाजपा के केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री स्तर के नेता उनके सार्वजनिक समर्थक हैं और दर्शनार्थी के तौर पर नमन भी करते हैं। लेकिन साधु-संत उन्हें लेकर विभाजित हैं।
सारांश यह है कि एक चेहरा राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू और सनातनी आस्थाओं का पैरोकार बनकर उभरा है। उनका आग्रह है कि ‘रामचरितमानस’ को ‘राष्ट्रीय ग्रंथ’ घोषित किया जाए। इसके समानांतर उप्र के पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद स्वामीप्रसाद मौर्य ने ‘रामचरितमानस’ पर पाबंदी चस्पा करने की मांग की है। वह इस महाकाव्य को ‘पिछड़ा, दलित, महिला-विरोधी’ करार दे रहे हैं। उनकी मांग है कि चमत्कार के नाम पर उस ‘पाखंडी, ढोंगी’ को जेल में ठूंस देना चाहिए, क्योंकि ऐसे कथित चमत्कार या भूत-प्रेत का इलाज अथवा धर्मान्तरण का संविधान में कोई स्थान नहीं है। संविधान धार्मिक आस्था और पूजा-पद्धति का अधिकार देता है, लेकिन वह आध्यात्मिक पुरुष जादू-टोना करता है। उप्र ही नहीं, बिहार में लालू की पार्टी के एक नेता और प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि ‘रामचरितमानस’ में बहुत कुछ कचरा भी है, लिहाजा उसे साफ करने की जरूरत है। विडंबना है कि एक बौना-सा नेता महान तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ में संशोधन की बात कर रहा है! बहरहाल यह हमारे देश के पावन और गरिमामय ‘गणतंत्र दिवस’ का भी दौर है। इसी दौर में हमारा संविधान लागू किया गया था। संविधान में धर्मनिरपेक्ष भारत की कल्पना की गई है, तो पूजनीय सीता-राम का चित्र भी संविधान-पुस्तक में छापा गया है। भारत हिंदुओं का ही नहीं, पूरे विश्व का देश है।
हम तो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की सोच के पक्षधर हैं। ‘हिंदू राष्ट्र’ की धारणा और घोषणा ही असंवैधानिक है। यह भ्रम और दुष्प्रचार है। वह कथित चमत्कारी पुरुष कुछ भी हो सकता है, लेकिन उसके लोकप्रिय आयोजनों के मद्देनजर सनातन धर्म को गाली क्यों दी जाए? हिंदू ही हिंदू के खिलाफ क्यों खड़ा है? हर बार हिंदू ही निशाने पर क्यों रहता है? डॉ. राममनोहर लोहिया कहते थे कि आप देश के किसी भी कोने में चले जाएं, हरेक गांव में राम से जुड़ी चार कहानियां मिल जाएंगी। रामलीला का मंचन मिलेगा और औसत घर में ‘रामचरितमानस’ का पाठ होता दिखेगा। फिर यह फैशन लगातार जोर क्यों पकड़ता रहता है कि ‘रामचरितमानस’ की व्याख्या की जानकारी न होते हुए भी कुछ अविवेकी लोग इस पवित्र ग्रंथ के साथ ‘नफरत’ नत्थी कर रहे हैं?
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."