मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
समाजवादी पार्टी के सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क को एक बार फिर मायावती अच्छी लगने लगी हैं। इससे पहले वर्ष 2009 में भी उन्हें मायावती भाई थीं। वे बहुजन समाज पार्टी के पाले में चले गए थे। तब प्रदेश की सत्ता पर बसपा विराजमान थी। संभल से बसपा टिकट पर वे चुनाव लड़कर लोकसभा तक का सफर तय किए थे। वर्ष 2014 तक वे बसपा सांसद रहे। फिर सपा में वापसी कर ली। 2014 में मोदी लहर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। समाजवादी पार्टी ने क्षेत्र के दिग्गज नेता को लोकसभा चुनाव 2019 में फिर से संभल सीट से उतारा और जीत कर पांचवीं बार लोकसभा पहुंचने में कामयाब हुए। अब 10 साल बाद एक बार फिर वह सियासी छलांग लगाने की तैयारी करते दिख रहे हैं। पिछले दिनों कई मौकों पर शफीकुर्रहमान बर्क और समाजवादी पार्टी नेताओं के बीच तनातनी की खबरें सामने आती रही हैं। सितंबर 2021 में शफीकुर्रहमान बर्क अपने पोते जियाउर रहमान बर्क को चुनावी मैदान में उतारने पर अड़ गए थे। उस समय उन्होंने कहा था कि मैं नींव का पत्थर हूं, हट गया तो इमारत ढह जाएगी। जियाउर रहमान पहले एआईएमआईएम में थे। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा के खिलाफ चुनाव लड़ा। हार गए। यूपी चुनाव 2022 में बर्क के दबाव का ही परिणाम था, अखिलेश यादव को जियाउर को कुंदरकी विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया पड़ा। जियाउर लड़े और विधायक बन गए। हालांकि, शफीकुर्रहमान के बयानों से पार्टी हमेशा असहज होती रही है। अब उनके ताजा बयान से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की ही टेंशन बढ़ेगी, जो मुस्लिम-यादव समीकरण को हर हाल में बरकरार रखने की कोशिश करते दिख रहे हैं।
क्या है शफीकुर्रहमान का ताजा बयान?
शफीकुर्रहमान बर्क ने बसपा सुप्रीमो मायावती की तारीफ कर यूपी के सियासी मैदान में हलचल बढ़ा दी है। पार्टी से नाराजगी के तौर पर इस पूरे बयान को देखा जा रहा है। सपा सांसद ने कहा कि देश को मायावती की जरूरत है। बसपा अध्यक्ष ने अपनी कौम के लिए बहुत काम किया है। शफीकुर्रहमान बर्क यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि मायावती ने मुसलमानों के लिए काफी काम किया है। मैं भी उनकी पार्टी में रह चुका हूं। मैं जीता था और समाजवादी पार्टी तब हार गई थी। शफीकुर्रहमान ने बसपा सुप्रीमो के दलितों और अल्पसंख्यकों के लिए किए गए कार्य की जमकर सराहना की। उन्होंने कहा कि मायावती के कार्यों को आज भी याद किया जाता है। अब उनके ताजा बयान को समाजवादी पार्टी से उनकी नाराजगी और बहुजन समाज पार्टी से निकटता के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, संभल लोकसभा सीट के सामाजिक समीकरण को समझने का प्रयास करेंगे तो उनके बयान के कई अर्थ आपको समझ में आ जाएंगे। शफीकुर्रहमान बर्क मझे हुए राजनेता हैं। वे अपने इस बयान के जरिए एक अलग प्रकार की राजनीति करते दिख रहे हैं।
कैसा रहा है शफीकुर्रहमान बर्क का करियर?
शफीकुर्रहमान बर्क का राजनीतिक करियर करीब पांच दशक का रहा है। शफीकुर्रहमान ने पहली बार वर्ष 1974 के यूपी विधानसभा चुनाव में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर संभल सीट से चुनाव लड़ा। जीत दर्ज कर यूपी विधानसभा तक पहुंचे। छात्र आंदोलन का दौर था। देश में जनता पार्टी का प्रभाव बढ़ने के बाद उन्होंने वर्ष 1977 के चुनाव में इस दल का रुख किया। जनता पार्टी के टिकट पर दूसरी बार 1977 के चुनाव में जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे। 1980 के चुनाव में उन्हें हार झेलनी पड़ी। इसके बाद उन्होंने लोक दल का रुख किया। संभल विधानसभा सीट से 1985 के चुनाव में जीत दर्ज कर तीसरी बार वे यूपी विधानसभा पहुंचे। वर्ष 1989 के चुनाव में वे जनता दल में चले गए। संभल से उन्हें टिकट मिला और चौथी बार जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे।
वर्ष 1993 में समाजवादी पार्टी के गठन के बाद वे मुलायम सिंह यादव खेमे में चले गए। मुलायम सिंह यादव ने 1996 के लोकसभा चुनाव में उन्हें पहली बार मुरादाबाद सीट से उम्मीदवार बनाया। वे जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे। मुरादाबाद लोकसभा सीट से 1998 के चुनाव में दूसरी बार भी जीते। 1999 के आम चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। समाजवादी पार्टी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में तीसरी बार उन्हें मुरादाबाद सीट से उम्मीदवार बनाया। वहां से वे दूसरी जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे। यूपी की राजनीति में 2007 के विधानसभा चुनाव में परिवर्तन हुआ। समाजवादी पार्टी में बड़ा फेरबदल हो रहा था।
शफीकुर्रहमान बर्क ने 2009 में बसपा का रुख कर लिया। बसपा ने उन्हें लोकसभा चुनाव 2009 में संभल लोकसभा सीट से उम्मीदवार बना दिया। जीत दर्ज कर चौथी बार लोकसभा पहुंचने में वह कामयाब हो गए। 2014 आते आते शफीकुर्रहमान का बसपा से मोहभंग हुआ। एक बार फिर वह समाजवादी पार्टी में पहुंचे। सपा ने उन्हें संभल सीट से ही उम्मीदवार बनाया। लेकिन, इस बार भाजपा के हाथों में करारी हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा- बसपा गठबंधन था। शफीकुर्रहमान बर्क का दोनों पार्टियों में प्रभाव था। संभल लोकसभा सीट से वे चुनावी मैदान में उतरे। पांचवीं बार वे लोकसभा पहुंचने में कामयाब हो गए। अब वह अलग रुख अपनाते दिख रहे हैं।
बयान का क्या है कारण?
शफीकुर्रहमान बर्क के बयान का सबसे बड़ा कारण संभल सीट का सामाजिक समीकरण है। यहां पर सपा और बसपा दोनों का वोट बैंक है। वहीं, भाजपा अपने अलग वोट बैंक के साथ एक तरफ दिखती है। इसे लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम से समझने की कोशिश करिए। आम चुनाव 2014 में भाजपा ने सत्यपाल सिंह सैनी को यहां से उम्मीदवार बनाया था। सतपाल सैनी को 3,60,242 वोट मिले। वहीं, समाजवादी पार्टी उम्मीदवार शफीकुर्रहमान बर्क को 3,55,068 वोट मिले। दोनों के बीच 5174 वोटों का अंतर था। हालांकि, इस चुनाव में सबसे बड़ा अंतर बसपा उम्मीदवार ने पैदा किया था। बसपा ने अकील उर रहमान खान को चुनावी मैदान में उतारा। उन्होंने 2,52,640 वोट हासिल किए। मुस्लिम मतों में बिखरा हुआ और सतपाल सैनी जीत गए। संभल में कुल 16 लाख वोटर हैं। इसमें आधा से अधिक करीब 8.50 लाख मुस्लिम वोटर हैं। वहीं, अनुसूचित जाति के 2.75 लाख, यादव जाति के 1.50 लाख यादव और ओबीसी एवं सामान्य जाति के 5.25 लाख वोटर हैं।
शफीकुर्रहमान बर्क के बयान को इसी वोट बैंक को साधने के लिए प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। शफीकुर्रहमान 82 साल के हो चुके हैं। हालांकि, एक बार फिर वे चुनावी मैदान में ताल ठोंकते दिख रहे हैं। ऐसे में अगर समाजवादी पार्टी ने उन्हें नजरअंदाज किया तो वे बसपा के पाले में जा सकते हैं। बसपा अध्यक्ष मायावती ने पहले ही इस कार किसी भी दल से गठबंधन नहीं करने की घोषणा की है। इससे साफ है कि संभल सीट पर बसपा उम्मीदवार उतरेगा ही। ऐसे में बसपा में ट्रांसफर होने वाले मुस्लिम वोटों को रोकने की कोशिश के तौर पर भी उनके बयान को देखा जा रहा है। बर्क की नाराजगी का एक बड़ा कारण लोकसभा में मुरादाबाद सांसद एसटी हसन को पार्टी का नेता बनाया जाना भी माना जा रहा है। हसन पहली बार सांसद बने हैं। उन्हें पार्टी ने तरजीह दे दी। ऐसे में इस प्रकार के बयानों का असर पार्टी की स्थिति पर पड़ना तय माना जा रहा है।
विवादों में बने रहते हैं बर्क
शफीकुर्रहमान बर्क लगातार विवादों में बने रहते हैं। संभल में मुस्लिम और यादव समुदाय के सर्वमान्य नेता के तौर पर स्थापित बर्क वर्ष 2013 में बंदे मातरम का विरोध कर चर्चा में आए। पिछले दिनों पद्मावत एक्सप्रेस ट्रेन में एक युवक की पिटाई मामले को लेकर उन्होंने सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की। विरोध करने और जवाब देने की हिम्मत न होने की बात कर उन्होंने माहौल को भड़काने की कोशिश की है। वहीं, पीएफआई को मुसलमानों के हित की लड़ाई लड़ने वाले संगठन के रूप में उन्होंने बताया। वर्ष 2019 में पांचवीं बार लोकसभा सांसद की शपथ लेने बाद उन्होंने कहा था कि वंदे मातरम इस्लाम के खिलाफ है। हम इसका पालन नहीं कर सकते। अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद तालिबान की तारीफ करने से भी बर्क नहीं चूके थे। हिजाब को लेकर उन्होंने बयान दिया था कि इससे लड़कियां काबू में रहती हैं। वहीं, औलाद को इंसान नहीं अल्लाह की मर्जी वाला बताकर भी वे चर्चा में आए हैं। उन्होंने कहा था कि ऊपर वाला बच्चे पैदा करता है तो वह आगे का भी इंतजाम करता है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."