दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
कुशीनगर: आजमगढ़ के लाल बिहारी नाम के व्यक्ति के ऊपर एक फिल्म बनी थी जिसका नाम कागज था फिल्म में लाल बिहारी खुद को जिंदा साबित करने की जद्दोजहद को दिखाया गया था। ऐसा ही मामला एक कुशीनगर जिले में देखने को मिला है मोती रानी नाम की एक 80 साल की बुजुर्ग महिला है जो पिछले बीस साल से कागजों में मृत घोषित हैं। जिंदा होते हुए भी उनके पास जिंदा होने का कागज़ी सबूत नहीं है। कागजों में जीवित दिखने के लिए बुजुर्ग महिला लाठी के सहारे लगभग 4 महीने से ब्लॉक का चक्कर काट रही है। लेकिन सिर्फ आश्वासन मिल रहा है।
कागज़ी मौत की शिकार हुई बुजुर्ग
मामला कुशीनगर जिले के दुदही ब्लाक के अमही गांव का है जहां कागजों में मृत महिला सही सलामत मिली।इसके पास था तो सिर्फ खुद की अपनी पहचान तो है लेकिन बाक़ी खेल तो कागजों का है जिसमे वह महिला मरी हुई है। वहीं इस मामले में पीड़ित महिला के नाती (पोता) ने बताया कि दादी यानी (पीड़ित महिला) के पति की मौत काफ़ी पहले हो चुकी है। एक दफे 2010 में परिवार रजिस्टर की नकल निकाली गई थी।
उस वक्त सब दुरुस्त था मगर 2022 में जब खेत की वरासत कराने के लिए महिला के पोते ब्लाक पहुंचे तो पता चला कि मोती रानी को साल 2001 में ही कागजों में मार दिया गया है। जब घरवालों को ये पता चला तो आनन फानन में सब भागते हुए ब्लाक पहुंचे। तो चार महीने से सिर्फ आश्वासन ही मिल रही है।
बीडीओ बोले- आदेशित किया जा चुका
आजमगढ़ के लाल बिहारी को खुद के जिंदा होने का सबूत देने में दो दशक लग गये। तो फिर मोती रानी को कितना वक्त लगेगा ये दीगर बात है लेकिन हां ये ज़रूर है कि अफसरशाही के गिरेबान में लगा ये दाग़ यूं मिटने वाला नहीं है। चार महीने से ही बुजुर्ग महिला के पोता ने चक्कर लगा लगा कर थक गया है लेकिन अभी तक सुधार नहीं हुआ है।
इस संबंध में बीडीओ से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मामला संज्ञान में आने के बाद तुरंत सचिव को आदेशित कर दिया गया है जल्द ही मामले को निस्तारित कर मोती रानी को कागजों में जीवित हो जाएंगी।
Author: samachar
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