विवेक चौबे की रिपोर्ट
बिहार से बंटकर अलग हुए झारखंड के सामने 22 वर्षों के बाद भी पेंशन की देनदारी से संबंधित मसला लटका हुआ है। सरकार सुप्रीम कोर्ट भी गई लेकिन फैसला अभी तक नहीं हो सका है। राज्य सरकार शुरू से मांग कर रही है कि उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ की तरह झारखंड को भी पेंशन देनदारी में जनसंख्या के हिसाब से बंटवारा हो, जबकि शुरू से ही कर्मियों के हिसाब से पेंशन की देनदारी तय कर दी गई है, जिससे झारखंड को जरूरत से अधिक भुगतान करना पड़ रहा है।
दरअसल, अलग राज्य बनने के वक्त ही देनदारियों का भी बंटवारा हो गया था। यह तय हुआ था कि जो कर्मचारी जहां से रिटायर करेगा वहां की सरकार पेंशन में अपनी हिस्सेदारी देगी। जो पहले सेवानिवृत्त हाे चुके थे, उनके लिए यह तय किया गया कि दोनों राज्य कर्मियों की संख्या के हिसाब से अपनी-अपनी हिस्सेदारी देंगे। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड एवं मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बंटवारे में पेंशन दायित्वों का बंटवारा आबादी के अनुपात में किया गया था।
झारखंड ने भी यही मांग रखी जिसे ठुकरा दिया गया। इसके बाद से मामला सुप्रीम काेर्ट में चल रहा है। इस बीच जनसंख्या के आधार पर पेंशन दायित्वों के बंटवारे के लिए एक बार फिर केंद्रीय अधिकारियों से बात करने प्रदेश के वित्त सचिव गए हुए हैं। इसके पीछे एक अहम कारण यह भी है कि पेंशन दायित्वों के लिए बंटवारे के बाद के 20 वर्षों तक का ही मानक तय था।
केंद्र सरकार मानकर चल रही थी कि 60 की उम्र में सेवानिवृत्त करनेवालों में से अधिकांश कर्मी 80 की उम्र पाते-पाते अपना जीवन जी चुके होंगे और इसके बाद पेंशन लेनेवालों की संख्या मामूली रह जाएगी। ऐसे लोगों के लिए सेवानिवृत्ति की जगह से ही पेंशन मिलने की बात कही गई थी। इन तमाम मुद्दों को लेकर वित्त सचिव ने केंद्र में मंत्रालय के अधिकारियों से सोमवार को बात की और शीघ्र ही इस मामले में दो पक्षीय वार्ता होगी ताकि कोई नतीजा निकल सके।
Author: samachar
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