दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
मैं समतावादी समाज चाहती हूं, जहां जाति, धर्म, क्षेत्र, बोली, पहनावे, खान पान के आधार पर भेद न हो।” यह कहना है लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा का। फिलहाल वर्मा एक सामाजिक संस्था “सांझी दुनिया” से जुड़ी हैं। दुबली पतली काया की 79 वर्षीय बुजुर्ग रूपरेखा वर्मा को आए दिन सड़क पर संघर्ष करते देखा जा सकता है। कभी वो हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए पर्चा बांटते नजर आती हैं, कभी किसी दुष्कर्म पीड़िता के पक्ष में कैंडल मार्च करते हुए।
हाल में एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में वर्मा ने बताया है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार उन्हें एक दर्जन बार हिरासत में ले चुकी है। आखिर कौन हैं रूपरेखा वर्मा, क्यों ये भाजपा, कांग्रेस, लेफ्ट… समेत सभी दल की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करती हैं? आइए जानते हैं:
रूपरेखा वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ था। पिता सरकारी चिकित्सक थे। उनके तबादलों के कारण हर कुछ साल में पता बदलता रहता था। उच्च शिक्षा के लिए वर्मा लखनऊ में रहीं। पहले लखनऊ विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की, पीएचडी किया। फिर उसी विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र की प्रवक्ता और प्रोफेसर बनीं। डिपार्टमेंट के हेड के रूप में भी काम किया। एक साल तक विश्वविद्यालय की कुलपति भी रहीं।
1980 के दशक में जब रूप रेखा वर्मा लखनऊ विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग का नेतृत्व कर रही थीं उन्होंने उन सहयोगियों के खिलाफ एक लंबी, अकेली लड़ाई लड़ी, जिनके बारे में उन्होंने कहा कि वे आरएसएस से जुड़े थे और संगठन की विचारधाराओं के प्रचार के लिए विभाग का उपयोग करना चाहते थे।
महिला अधिकारों समेत विभिन्न दमित वर्ग के लिए आगे आने वाली रूपरेखा वर्मा 40 वर्षों तक अध्यापन से जुड़ी रहीं। उन्हें ऑक्सफोर्ड के लिए कॉमनवेल्थ एकेडमिक स्टाफ फेलोशिप मिला चुका है। कई भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विभिन्न सम्मेलनों/अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में व्याख्यान देने और शोध पत्र प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया जा चुका है।
रूपरेखा वर्मा एक प्रसिद्ध और गंभीर लेखिका भी हैं। उनके चार दर्जन से अधिक शोध पत्र भारत और विदेशों में विभिन्न पुस्तकों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। प्रोफेसर वर्मा की फिलॉसफी, सोशल फिलॉसफी, मेटा फिजिक्स, आदि में काफी रुचि है। उन्हें भारत सरकार द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और महिला समाख्या के कार्यकारी परिषद सदस्य के रूप में नामित किया जा चुका है। इसके अलावा एनसीईआरटी, भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय और यूपी समाज कल्याण बोर्ड की अकादमिक समितियों में शामिल रही हैं।
एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में प्रोफेसर वर्मा ने महिलाओं पर हिंसा और सांप्रदायिक हिंसा के कई दर्जन मामलों में हस्तक्षेप किया है। पीड़ितों के लिए न्याय के लिए लड़ाई लड़ी है। उन्हें सांप्रदायिक सद्भाव के लिए बेगम हजरत महल पुरस्कार और इंडियन सोशल साइंस एसोसिएशन द्वारा 2006 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। प्रोफेसर वर्मा को आमिर खान के चर्चित कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ में भी बुलाया जा चुका है।
क्या चाहती हैं प्रोफेसर वर्मा?
लखनऊ विश्वविद्यालय में 40 वर्षों तक अध्यापन से जुड़ी रहीं प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा आखिरी बार पैदल घूम-घूमकर पर्चा बांटने के लिए चर्चा में आयी थीं। आजादी की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर हिंदू-मुस्लिम एकता और साझी विरासत को याद दिलाते पर्चे का शीर्षक था ‘नफरत की लाठी तोड़ो, आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों’ उस पर्चे के आखिर में लिखा था, ”हम जानते हैं इस दौर में देश का मौसम उदास है, मगर हम ये भी जानते हैं कि अगर हम सब हर निराशा या जुल्म को फेंक कर एक हो गये — तो हर ओर फिर से फूल खिला देंगे।”
एक ऐसे युग में जब अधिकांश शहरी विरोध सोशल मीडिया पर होता है, वर्मा सड़क पर जाति, लिंग और धर्म की असमानताओं से लड़ती हैं। निराशाजनक समय में वह खुद से सवाल करती है: “अगर मैं कोशिश करना बंद कर दूं तो मैं खुद का सामना कैसे कर सकती हूं?” उनके लिए, विद्वान आनंद तेलतुम्बडे और अन्य जो वंचित समुदायों के लिए लड़ने के लिए जेल गए हैं, असली देशभक्त हैं।
योगी आदित्यनाथ की सरकार में एक दर्जन बार हिरासत ली जा चुकी प्रोफेसर वर्मा कहती हैं “वे हमें विरोध करने या पैम्फलेट वितरित करने या बलात्कार पीड़िता के लिए मोमबत्ती कैंडल मार्च निकालने की अनुमति नहीं देते हैं। वे हमें एक वाहन में बैठाते हैं और कहीं दूर ले जाकर छोड़ देते हैं।”
प्रोफेसर वर्मा ने हालिया विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार पूजा शुक्ला के लिए प्रचार किया था। इसके बाद उनका नाम सपा से जोड़ा जाने लगा था। इस पर वर्मा ने कहा, ”पूजा हमारी छात्रा रही है और वह कुछ बेहतर करने में लगी है। इसलिए हमने उसका प्रचार किया।
Author: samachar
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