जावेद अंसारी की रिपोर्ट
लखनऊ। नवाबी शहर लखनऊ की संस्कृति और तहजीब अपने आप में अनूठी है। यहां चौक में अली और बजरंग बली का अखाड़ा हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देता है तो अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर के गुम्बद पर चांद का निशान धार्मिक सम्मान का प्रतीक बना हुआ है। गंगा जमुनी विरासत को भाई चारे के धागे से आगे बढ़ा रहे अमीनाबाद के मो.इरफान।
65 वर्षीय इरफान 32 वर्षों से श्रीराधा-कृष्ण के वस्त्रों को सिलते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि श्रीराधा-कृष्ण की ड्रेस बनाने में उन्हें आनंद की अनुभूति होती हैं। जन्माष्टमी के 15 पहले से ही ड्रेस सिलने का कार्य शुरू कर देते हैं। उन्होंने बताया कि मंदिर में जाकर देखते भी हैं कि श्रीराधा-कृष्ण ने उनके सिले कपड़ों को धारण किया तो कैसे लग रहे हैं। श्री गोपाल चित्रशाला में 32 साल पहले वस्त्र सिलने आए और फिर यहीं के हो गए।
इरफान बताते हैं कि त्योहार के अनुरूप हर परिधान खास होता है। जन्माष्टमी में श्री राधा-कृष्ण के वस्त्रों को सिलने में आनंद मिलता है तो आने वाले गणेशोत्सव में गजानन के वस्त्र बनाने में खुद को समाहित कर लेते हैं। श्रीराम, सीता, लक्षमण भरत, शत्रुघ्न के साथ ही मेघनाद व रावण का वस्त्र भी रामलीला के समय सिलते हैं। जन्माष्टमी से शुरुआत हो जाती है।
मो.इरफान ने बताया कि भगवान के परिधान ले जाने के बाद या देखने पर तारीफ करते हैं तो मेरो हौसला बढ़ता है। 32 साल से परिधान सिल रहे और उसमे नए प्रयोग भी करते रहते हैं। गोटे और सितारे का रंग खुद तय करता हूं। अभी तक किसी ने कमी नहीं निकाली।
धर्म का सम्मान जरूरी : मो.इरफान बताते हैं कि सभी को सभी के धर्म का सम्मान करना चाहिए। सभी की अपनी परंपराएं और धार्मिक गतिविधियां होती है जिसका एक दूसरे को सम्मान करना चाहिए। धार्मिक भावनाओं का ठेस पहुंचाकर किसी को दु:खी किया जाय तो खुदा भी उसे कभी माफ नहीं करता। जब तक जान रहेगी भगवान के वस्त्रों को बनाते रहेंगे।
Author: samachar
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