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November 22, 2024 7:58 pm

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बाबू खान गए थे कांवड़ यात्रा पर, वापस आने पर उनके समुदाय वालों ने जो किया वो आप कल्पना कर नहीं सकते

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

बागपत। हर व्यक्ति की अपनी-अपनी आस्था है। किसी की मंदिर में आस्था है, तो किसी की मस्जिद में तो किसी की गुरुद्वारा तो किसी की चर्च में। भारत का संविधान सभी को अपनी मन मर्जी के मुताबिक किसी भी धर्म का पालन करने की इजाजत बिना किसी रोकटोक के देता है, लेकिन कुछ लोगों को संविधान द्वारा दी गई यह इजाजत रास नहीं आ रही है। यकीन ना हो तो आप बाबू खान वाले मामले में देख लीजिए कि कैसे बाबू खान ने मुस्लिम होने के बावजूद भी भगवान शिव के प्रति अपनी अगाध आस्था को ध्यान में रखते हुए साल 2018 में कांवड़ा यात्रा पर जाने का फैसला किया था, लेकिन अफसोस कुछ कट्टरपंथियों को उनका यह फैसला रास नहीं आया, लेकिन उन्होंने कट्टरपंथियों की परवाह किए बगैर कांवड़ यात्रा पर जाने का फैसला किया, लेकिन इसके बाद जब वे आए, तो उनके समुदाय के लोगों ने उनके साथ कैसा व्यवहार किया है। यह जानना जरूरी हो जाता है।

तो जैसा कि हम आपको बता ही चुके हैं कि भारतीय संविधान प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म का पालन करने की इजाजत देता है, लेकिन इसके बावजूद भी कांवड़ यात्रा करके वापस लौटे बाबू खान के साथ जिस तरह का सलूक उनके समुदाय के लोगों के द्वारा किया गया है, वह निंदनीय है। उनके ही लोगों ने बाबू खान के लिए मस्जिदों के दरवाजे बंद कर दिए। उन्हें मस्जिद जाने से रोक दिया गया। मुस्लिम समुदाय ने उनका बहिष्कार करना शुरू कर दिया। मुस्लिमों की तरफ से उन्हें समाज से बेदखल करने की कोशिश की गई थी।

यही नहीं, कांवड़ यात्रा करके लौटे बाबू खान के उनके अपने ही लोगों ने धमकियां तक भी दी थी, लेकिन बाबू खान के हौसले की भी दाद देनी होगी कि उन्होंने कभी हार नहीं मानी और पहली बार साल 2018 में कांवड़ यात्रा पर जाने के बाद वे आगे भी यात्रा पर जाते रहे। इसे दौरान उन्हें बेशुमार दुश्वारियों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन उन्होंने इन तमाम दुश्वारियों की परवाह करना जरूरी नहीं समझा और अपने फैसले पर अटल रहे हैं। उधर, उनके मुस्लिम होने पर सवाल उठाए गए, तो उन्होंने सभी कट्टरपंथियों को जवाब देते हुए कहा कि उन पर कोई भी मुस्लिम पर होने पर सवाल नहीं उठा सकता है। उन्होंने कहा कि वे आज भी इस्लाम का प्रमुख हिस्सा हैं। बता दें कि बाबू खान समय- समय पर मुस्लिम कट्टरपंथियों को मुंहतोड़ जवाब देने से भी गुरेज नहीं करते हैं।

आपको बता दें कि बाबू खान ने इस संदर्भ में मीडिया से वार्ता के दौरान कहा कि जब मैं साल 2018 में पहली बार कांवड़ यात्रा करने गया था, तो वहां से लौटने के बाद मैं नमाज अदा करने के लिए मस्जिद गया था, लेकिन मेरा बहिष्कार कर दिया गया था। मुझे मस्जिद में जाने से रोक दिया गया था। मुझे नापाक बताया गया था। मेरे मुस्लिम पर सवाल उठाया गया था। लेकिन मैंने इन सभी बातों की परवाह नहीं की और मैं अगली बार फिर कांवड़ यात्रा करने गया था। बाबू खान ने कहा कि मैं हर सुबह पांच बजे  नमाज अदा करता हूं और इसके बाद मंदिर की सफाई करते हूं।

बाबू खान ने कहा कि उन्होंने अभी इस्लाम धर्म नहीं  छोड़ा है। फिलहाल, अभी बाबू खान खासा चर्चा में बने हुए हैं।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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