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November 2, 2024 6:59 pm

“चाणक्य” की यह नीति भाजपा को उत्तरांचल में कितनी राह आसान कर पाएगी? पढ़िए इस खबर को 

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ज़ीशान मेहदी की रिपोर्ट 

लखनऊ : बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने 2024 के लोकसभा चुनाव (2024 Lok Sabha) से पहले उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बड़ी चाल चल दी है। विधानसभा चुनाव और रामपुर, आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद जिस तरह से ओमप्रकाश राजभर (OP Rajbhar) अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के नेतृत्व पर सवाल खड़ा कर उन पर हमले बोल रहे थे। इस पर अमित शाह की पैनी नजर गड़ी हुई थी। वह मौके की तलाश में थे और राष्ट्रपति के चुनाव में आदिवासी महिला पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाकर एक बड़ा दांव चल दिया। पीएम मोदी के इस दांव से कई विपक्षी दल भी शांत हो गए और उन्हें मजबूरन द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करना पड़ा। इसमें अब एक और नाम ओमप्रकाश राजभर का भी जुड़ गया है। राजभर पूर्वांचल के बड़े नेता माने जाते हैं उनका एक बड़ा जनाधार है। वह 2022 में अखिलेश के साथ चुनाव लड़े थे इसका खामियाजा बीजेपी को वहां भुगतना पड़ा था।

सारे घटनाक्रम पर नजर गड़ाए बैठे अमित शाह को जैसे ही मालूम चला कि सपा और सुभासपा के बीच अब दूरियां बढ़ गई हैं, अखिलेश, राजभर से मिलना तक नहीं चाह रहे हैं तो उन्होंने खट से ओपी राजभर का नंबर मिलाया और उन्हें दिल्ली बुला लिया। अखिलेश की उपेक्षा से आहात ओमप्रकाश राजभर भी शायद यही चाहते थे कि दिल्ली से कोई बुलावा आए और वह अखिलेश यादव को सबक सिखाएं। उनके मन की मुराद पूरी हुई बंद कमरे में अमित शाह राजभर की मीटिंग हुई और शाह के कहने पर दिल्ली से वापस लौटते ही राजभर अपने आवास पर शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसका ऐलान कर दिया कि वह एनडीए की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को अपने सभी छह विधायकों के साथ छोड़ देंगे।

ओमप्रकाश राजभर (OP Rajbhar) भले यह कह रहे हों कि उनसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath), एनडीए की प्रत्याशी द्रोपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) और फिर गृह मंत्री अमित शाह (Amit Sha) ने समर्थन मांगा। जिसके बाद वह उन्हें समर्थन दे रहे हैं, लेकिन इसके पीछे अगर आप देखेंगे तो कहीं ना कहीं राजभर भी यही चाहते थे। जिस तरह से 7 जुलाई को अखिलेश यादव ने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा (Yeshwant Sinha) के समर्थन में प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था। जिनमें अपने सहयोगी जयंत सिन्हा को आमंत्रित किया लेकिन राजभर को बुलाकर भी मना कर दिया गया। इससे राजभर आहात थे। उन्होंने अपने विधायकों के साथ बैठक कर आगे की रणनीति तैयार की।

घटनाक्रम पर बीजेपी के आलानेताओं की लगी हुई नजर

सूत्रों के मुताबिक 5 जुलाई से लगातार बदलते घटनाक्रम पर बीजेपी के आलानेताओं की नजर लगी हुई थी। 12 जुलाई को राजभर की होने जा रही प्रेस कॉन्फ्रेंस मुलायम सिंह यादव की पत्नी के निधन के बाद स्थगित हो गई। राजभर अखिलेश से मिलकर चर्चा करना चाहते थे लेकिन उन्हें समय ही नहीं मिला तो अमित शाह ने फौरन राजभर को अपने पास बुलाया बातचीत की उनकी बातों को सुना और फिर एनडीए की प्रत्याशी के समर्थन में वोट देने की बात कहकर उन्हें लखनऊ भेज दिया। अब उनकी बात से सहमत होकर राजभर द्रौपदी मुर्मू का समर्थन कर रहे हैं।

अब जरा अमित शाह (Amit Shah) की इस चाल को समझिए कि कैसे वह राजभर के सहारे पूर्वांचल में बीजेपी को और मजबूत करना चाहते हैं। दरअसल 2017 के चुनाव में जहां राजभर बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे और इसका फायदा बीजेपी को हुआ था। वहीं 2022 में वह अखिलेश के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरे तो बीजेपी को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। चुनाव बाद हुए मंथन में यह बात सभी की जुबान पर भी आई. अब अमित शाह 2024 से पहले राजभर को एक बार फिर से अपने पाले में लेकर पूर्वांचल में बीजेपी के लिए बने गड्ढे को पाटना चाह रहे हैं। राजभर भी अखिलेश के व्यवहार से नए साथी की तलाश में हैं यही वजह है कि दोनों तरफ से ताली बजनी शुरू हो गई है।

बात 2022 के विधानसभा चुनाव की करें तो में भले ही बीजेपी को बहुमत मिल गया हो, पर पार्टी को पूर्वांचल में बड़ा झटका लगा है। खास तौर पर छठवें और सातवें चरण के मतदान में। ये सब तब हुआ है जब बीजेपी पश्चिम और पूरब से खाली हो कर पूरी तरह से पूर्वांचल पर फोकस किया था। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इसी क्षेत्र में रहे। बावजूद उसके बीजेपी ने पूर्वांचल के इन दो चरणों में 15 सीटें खोईं जबकि समाजवादी पार्टी को इन दो चरणों में 27 सीटों पर फायदा पहुंचा।

बीजेपी गठबंधन ने पूर्वांचल के छठवें चरण में जीती 40 सीट

बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने पूर्वांचल के छठवें चरण में 40 सीट पर जीत का परचम लहराया था, जबकि इस बार उसे छह सीट का नुकसान हुआ और समाजवादी पार्टी गठबंधन को 11 सीट का फायदा पहुंचा। बात सातवें चरण की करें तो इसमें बीजेपी ने पिछली बार नौ जिलों की 54 में से 36 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार उसे 27 सीटें मिलीं यानी उसे 9 सीटों का नुकसान हुआ। वहीं समाजवादी पार्टी को 27 सीटें मिली हैं यानी 16 सीटों का मुऩाफा हुआ। अब छठवें और सातवें चरण को मिला कर पूर्वांचल में बीजेपी गठबंधन के 67 तो समाजवादी पार्टी गठबंधन के 42 सीटें हो गई हैं।

इसी समीकरण के आधार पर बीजेपी के चाणक्य राजभर से बंद कमरे में मिले और उन्हें मान सम्मान दिया, जो वह अखिलेश यादव से नहीं पा सके। अब इससे गदगद राजभर भी अमित शाह, सीएम योगी की तारीफ कर नए समीकरण के संकेत दे दिए हैं। बीजेपी के लिए यह हमेशा कहा जाता है कि वह चुनावी मूड में रहती है, खास मौकों को कैसे भूनना है यह बीजेपी नेताओं से बेहतर कोई नहीं जनता और ओपी राजभर का समर्थन हासिल कर अमित शाह ने इसे फिर से साबित कर दिया है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."