दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
गोंडा। कवि परीक्षित तिवारी ‘प्रेम गोण्डवी’ की ये कविता की लाइन एक मुकम्मल किताब की मौजू हो सकती है। एक उस विषय की ये लाइन बुनियाद है जहां से आधुनिक वातावरण की हर खूबियां खामियां आपस में उलझती सुलझती हुई सी लग रही है।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद के जनपदीय इकाई की बैठक साहित्य भूषण डा. सूर्यपाल सिंह की अध्यक्षता व परिषद के जिलाध्यक्ष उमा शंकर शुक्ल ‘आलोक’ के संचालन में कविवर सुरेश मोकलपुरी के आवास पर सम्पन्न हुई।
आयोजन के प्रथम दौर में सर्वप्रथम आजादी का अमृत महोत्सव विषय पर संगोष्ठी का शुभारम्भ सुरेश मोकलपुरी ने किया। कवि शिवाकान्त मिश्र विद्रोही ने आजादी के पूर्व और आजादी के बाद के 75 सालों की एक समीक्षात्मक तुलना गोष्ठी में रखी।
जिला बार एसोशियेशन के अध्यक्ष व कवि रविचंन्द्र त्रिपाठी ने आज के परिवेश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाये जाने की सार्थकता और प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे।
गोष्ठी में लाल बहादुर शास्त्री पोस्ट ग्रेजुएट कालेज के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर डॉ. जय शंकर तिवारी ने आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में हो रही छिटपुट अप्रिय घटनाओं का जिक्र करते हुए विस्तार से अपना वक्तव्य प्रकट किया। यहीं के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्र नाथ मिश्र ने कहा कि आज भारतवासियों को हिन्दू मुस्लिम, सिख, ईसाई से ऊपर उठकर मात्र भारतीय बनने की आवश्यकता है और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संरक्षण पर बल देने की आवश्यकता है।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए साहित्य भूषण डॉ. सूर्यपाल सिंह ने कहा कि गोष्टी में बैठे आप सभी आजाद भारत में पैदा हुए हैं। लेकिन जहाँ तक मेरा सवाल है, आजादी का जन्म इस देश में मेरे जन्म के बाद हुआ है और तमाम उतार-चढ़ाव देश में मेरे सामने से गुजरे हैं। मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि आजादी के इन 75 सालों में देश ने काफी प्रगति की है और देश प्रगति का स्तर वहीं नहीं है जहाँ आजादी वर्ष 1947 में था। वास्तविकता तो यह है कि केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में राष्ट्रीयता का क्षरण हुआ है और आज का आदमी अपने आपको किसी देश तक ही सीमित नहीं रखना चाहता। वरन वह अपने को वैश्विक व्यक्ति कहने में गर्व का अनुभव करता है। आजादी के अमृत महोत्सव पर विचार विमर्श के उपरान्त दूसरे दौर में कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसका संचालन शिवा कान्त मिश्र “विद्रोही“ ने किया।
कवि गोष्ठी का प्रारम्भ कवयित्री सुश्री नीता सिंह की इस वाणी वन्दना से हुई :
अम्बर, धरा तुम्हारा रसपान कर रहे हैं।
ऋषि मुनि और ज्ञानी गुणगान कर रहे हैं।
मधुरिम बजा के बीणा श्वेतधारणी विराजो,
दर पे झुकाये शीश तेरे सुत बुला रहे हैं।
कवि परीक्षित तिवारी ‘प्रेम गोण्डवी’ की यह पंक्तियां श्रोताओं द्वारा खूब सराही गई :
सौ बरस आपकी जिन्दगानी रहे,
तब तलक जिन्दगी में रवानी रहे।
नित हनीप्रीत मिलती रहें आपको,
और गुरमीत जैसी जवानी रहे।
युवा कवि वीपी सिंह वत्स गोण्डवी ने ये पक्तियां पढ़ी :
दिल्लगी से दिल लगाना सीख लें,
नेह की बगिया सजाना सीख लें।
मंजिले चूमें कदम यह सत्य है,
बस गमों में गुस्कुराना सीख लें।
कवयित्री ज्योतिमा शुक्ला ’रश्मि’ की निग्न प्रस्तुति से श्रोतागण भावविभोर हो उठे :
बसे हो तुम मेरे मन में, बसे हो जिन्दगानी में।
कि जैसे चाँद रहता है, किसी नदिया के पानी में।।
कवयित्री डा. उमा सिंह ने देश की वर्तमान स्थिति का चित्रण यूं किया :
दुनिया में तबाही का मंजर क्यू है?
दिखे लहलहाते खेत तो बंजर क्यूँ है?
कोई खामोश तो कोई बोल रहा,
कोई लगता मुसलसल क्यूँ है?
कवि श्री हरीराम शुक्ल “प्रजागर“ ने अपने उद्गार कुछ यूं व्यक्त किए :
है यहीं अब हूक मन में, तुम रहो मैं ना रहूँ।
इस मिलन की प्यास पावन को अधिक मैं क्या कहूँ।।
प्रसिद्ध व्यंग्यकार सुरेश मोकलपुरी ने आज की व्यवस्था पर यह कहा :
नाम भेजा गया है, उनका जो करोड़ों के बकाएदार हैं।
हवालात में तो ये हैं जो सौ पचास के बकाएदार है।
प्रसिद्ध कवि सहित्य भूषण शिवा कान्त मिश्र “विद्रोही“ की ये पंक्तियां श्रोताओं द्वारा खूब सराही गईं :
जब तक भारत में बेच पसीना कोई भूखा नंगा है।
जब तक भारत में धर्म-जाति के नाम भडकता दंगा है।
जब तक भारत का संविधान सत्ता के खड़ा कटघरे में,
कवि माने कैसे लाल किला अपना आजाद तिरंगा है।।
साहित्य परिषद के संरक्षक साहित्य भूषण डॉ. सूर्यपाल सिंह की इन पक्तियों ने खूब वाहवाही लूटी :
जिधर देखिए आज कोहरा घना है।
यहाँ चोर को चोर कहना मना है।
बार एसोशियन के अध्यक्ष व वरिष्ठ साहित्यकार रवि चन्द्र त्रिपाठी एडवोकेट की यह पक्तियां श्रोताओं द्वारा खूब सराही गईं :
देश का इतिहास अब ऐसा सुधारा जायेगा।
अहिंसा की कोख में खंजर उतारा जायेगा।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद के जिला अध्यक्ष कवियर उमा शंकर शुक्ल “आलोक“ ने आजादी का चित्रण निम्न पक्तियों के माध्यम से कुछ यूं किया :
भारत के कोने-कोने में जाएंगे,
आजादी के गीत पुनः हम गाएंगे।
हाथों में हथकडी पांव में बेड़ी थी,
फिर भी जंग लक्ष्य पाने तक छेड़ी थी।
घर का मोह देश हित में जो भूल गए,
ळंस-हंस फांसी के तख्ते पर झूल गए।
लहू से जिनके पुष्पित और पल्लवित है,
हम उनके सपनों का देश बचाएंगे।।
अंत में परिषद के जिलाध्यक्ष उमा शंकर शुक्ल ‘आलोक’ ने गोष्ठी में उपस्थित सभी अतिथियों, साहित्यकारां व सुधी श्रोताओं का आभार व्यक्त किया तथा धन्यवाद ज्ञापित किया।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."