नौशाद अली की रिपोर्ट
कानपुर। ऐसा पहली बार हो रहा है कि गलियों में घूम घूम कर फेरी वाले बकरे बेच रहे हैं। 10 जुलाई बकरीद के मौके पर होने वाली जानवरों की कुर्बानी के लिए तैयारियां होने लगी है। कानपुर हिंसा के कारण अब तक बाजार नहीं लगने से पहली बार गांवों के बकरा व्यापारी फेरी लगाकर बेचने को मजबूर हैं। बाजार लगने पर संदेह के कारण खरीदार भी इन्हें अच्छी कीमत दे रहे हैं। दूसरी वजह ये भी है कि इस बार कुर्बानी देने के लिए गाइडलाइन जारी की गई है।
कानपुर की नई सड़क पर सबसे ज्यादा हिंसा हुई थी और यहीं बकरा बाजार लगता था। इस कारण अब तक शुरुआत नहीं हो सकी है। बड़े जानवरों का बाजार हलीम कॉलेज ग्राउंड पर लगता रहा है लेकिन यहां भी पहल नहीं हुई है। इन स्थानों पर अनुमति के बाद बाजार लगेगा या अन्य स्थान तय किए जाएंगे। बकरीद पर शहर में औसतन दो लाख से ज्यादा बकरों की बिक्री होती है।
बिक्री करने वाले जावेद ने बताया कि वह कानपुर देहात से करीब 12 जानवर लेकर आए थे। अब उनके पास दो जानवर बचे हैं। बाजार नहीं लगा तो गली-कूचों में फेरी कर बेच दिया। बताया 12000 से 16 हजार रुपये के बीच जानवर बेचे हैं। हल्के वजन के जानवरों की कीमत 10 हजार रुपये है। इनके साथ पांच लोग और आए थे जो बाबूपुरवा और रेलबाजार में फेरी लगा कर कुर्बानी के जानवर बेच रहे हैं।
नगर में जानवरों की बिक्री के लिए बाहरी जनपदों के गांवों से बड़ी संख्या में व्यापारी आते हैं। इसमें सबसे ज्यादा इटावा और औरैया, इसके अलावा बाहरी राज्यों में राजस्थान व गुजरात से बड़ी संख्या में जानवर बिक्री के लिए आता है। नई सड़क हिंसा के बाद से अब तक स्थितियां सामान्य न हो पाने के कारण व्यापारी बाहर से आने में ठिठक रहे हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."