दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
बलरामपुर। “लाइसेंस का नवीनीकरण कराना है। आनलाइन करने वाले ने 2000 रुपये लिए थे। बोला था कि कार्यालय में अतुल बाबू से मिल लेना, काम हो जाएगा। कई बार दौड़ चुके हैं, लेकिन अभी काम नहीं हुआ।”
“दोपहिया-चारपहिया का स्थाई लाइसेंस बनवाना है। उम्र अधिक हो चुकी है। यहां के बाबू बोलते हैं कि पहले आनलाइन आवेदन करिए। मेडिकल व परीक्षण के बारे में पूछने पर कहा जाता है कि कुछ रुपये खर्च कर दीजिए, सब हो जाएगा।”
“ड्राइविग लाइसेंस खो गया है। डुप्लीकेट लाइसेंस के लिए आए थे। बाबू ने एप्लीकेशन लिखकर मिल लेने की बात कही है।”
उक्त तीन उदाहरण हैं एआरटीओ कार्यालय का जो यह साबित करता है कि यहां अधिकारियों से पहले बिचौलियों से होकर गुजरना पड़ता है तब कहीं जाकर किसी समस्या को कोई अंजाम मिल पाता है।
बिचौलिए और साहब के बीच अन्योनाश्रय संबंध का नतीजा नियमों का पालन करने की वाहन चालक की चाह एआरटीओ कार्यालय पहुंचते ही दम तोड़ देती है। यहां वाहन फिटनेस, लाइसेंस नवीनीकरण, लर्निंग ड्राइविग लाइसेंस के लिए आवेदकों को बिचौलियों का सहारा लेना ही पड़ता है।
विभागीय अधिकारी व बाबू की सांठगांठ से बिचौलियों की पौ बारह है। आनलाइन आवेदन के बाद भी बिना बिचौलियों के यहां कोई काम नहीं होता है। इससे लोगों को निर्धारित शुल्क से कई गुना अधिक दाम चुकाना पड़ रहा है। बिना बिचौलियों को खुश किए आनलाइन आवेदन की फाइलें अफसरों की टेबल पर धूल फांकती रहती हैं। ड्राइविग टेस्ट के लिए बना ट्रैक बदहाल हैं, जो लाइसेंस प्रक्रिया की असलियत बयां कर रहे हैं।
सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क की बात करें तो दोपहिया-चारहिया के लर्निंग लाइसेंस के लिए 350 रुपये सरकारी शुल्क निर्धारित है। स्थायी लाइसेंस के लिए शुल्क 1000 रुपये है। लाइसेंस नवीनीकरण पर न्यूनतम शुल्क एक हजार रुपये है। प्रति वर्ष विलंब दंड पर 200 रुपये के हिसाब से अतिरिक्त देना होगा। वाहन फिटनेस के लिए 600 से 1000 रुपये शुल्क निर्धारित है।
अधिकारी पूछे जाने पर कार्यालय में संबद्ध अनियमितता की जांच कराए जाने की बात करते जरुर है लेकिन धरातल पर स्थिति ज्यूं की त्यों बनी हुई रह जाती है।
Author: samachar
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