दुर्गा प्रसाद शुक्ला की लाइव रिपोर्ट
हिंदू धर्म में चारधाम एक धार्मिक और पवित्र यात्रा मानी जाती है माना जाता है कि चार धाम यात्रा करने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इन चार धाम में बद्रीनाथ, गुजरात का द्वारका और जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम शामिल हैं। इन चार धाम का उल्लेख हिंदू पुराणों में आदि शंकराचार्य ने किया था। हिंदू मान्यता के मुताबिक व्यक्ति को अपनी जिंदगी में इन चार धाम पर एक बार जरूर जाना चाहिए। इसके अलावा उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को भी चार धाम कहा जाता है लेकिन इन्हे छोटा चार धाम कहा जाता है।
यमुनोत्री, यमुना नदी का स्रोत और हिंदू धर्म में देवी यमुना की सीट है। यह जिला उत्तरकाशी में गढ़वाल हिमालय में 3,293 मीटर (10,804 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। उत्तराखंड के चार धाम तीर्थ यात्रा में यह चार स्थलों में से एक है। यमुना नदी के स्रोत यमुनोत्री का पवित्र गढ़, गढ़वाल हिमालय में पश्चिमीतम मंदिर है, जो बंदर पुंछ पर्वत की एक झुंड के ऊपर स्थित है। यमुनोत्री में मुख्य आकर्षण देवी यमुना के लिए समर्पित मंदिर और जानकीचट्टी (7 किमी दूर) में पवित्र तापीय झरना हैं।
यमुनोत्री मंदिर देवी को समर्पित एक मंदिर है। यह बंदरपंच की पृष्ठभूमि पर स्थित है। यह मंदिर चार धाम तीर्थ यात्रा सर्किट का हिस्सा है।
माना जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने चारधाम यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री धाम से ही की थी। जिसके बाद वो गंगोत्री और केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथ धाम पहुंचे थे। जिसके बाद से यमुनोत्री से ही चारोंधाम की यात्रा का शुभारंभ किया जाता रहा है।
गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थल है। आसान शब्दों में समझें तो उत्तराखंड के गढ़वाल में गंगोत्री हिमनद से गंगा नदी निकलती है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 3042 मीटर है। नदी की धारा को भागीरथी कहा जाता है।
गंगा नदी की धारा देवप्रयाग में अलकनंदा में जा मिलती है। इस जगह से भागीरथी और अलकनंदा गंगा कहलाती है। अतः देवप्रयाग को संगम स्थल कहा जाता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवप्रयाग में गंगा स्नान हेतु आते हैं। कालांतर से गंगोत्री में गंगा माता की पूजा की जाती है। इतिहासकारों की मानें तो पूर्व में गंगा की जलधारा की पूजा की जाती है।
समय के साथ गंगोत्री के आसपास शहर और कस्बे बसने लगे। उस समय लोग गंगा नदी के किनारे गंगा मैया और अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति बनाकर पूजा-उपासना किया करते थे।
अतः गंगोत्री की धार्मिक यात्रा पर जाने के लिए शुभ समय अप्रैल से लेकर नवंबर है। मानसून के दिनों में यात्रा करना अनुकूल नहीं है। दीवाली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते हैं और अक्षय तृतीया के दिन चार धाम के कपाट खुलते हैं। श्रद्धालु हवाई, सड़क और रेल मार्ग के माध्यम से गंगोत्री पहुंच सकते हैं।
आधुनिक इतिहास में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा गंगा मंदिर का निर्माण करवाया गया। वहीं, जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने गंगा मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। आज गंगोत्री में बेहद खूबसूरत गंगा मंदिर है।
गंगोत्री के आसपास के कई अन्य धार्मिक स्थल हैं। इनमें मुखबा गांव, भैरों घाटी, हर्षिल, नंदनवन तपोवन, गंगोत्री चिरबासा और केदारताल प्रमुख हैं। यह पवित्र स्थल शीत ऋतू में बंद रहता है। इसके बाद ग्रीष्मकाल में खुलता है।
भारतीय राज्य उत्तराखंड में गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर। इस संपूर्ण क्षेत्र को केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। यह स्थान छोटा चार धाम में से एक है। केदारनाथ धाम और मंदिर के संबंध में कई कथाएं जुड़ी हुई हैं।
पुराण कथा अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है।
केदार घाटी में दो पहाड़ हैं- नर और नारायण पर्वत। विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है। दूसरी ओर बद्रीनाथ धाम है जहां भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। कहते हैं कि सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना नारायण ने की थी। इसी आशय को शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता में भी व्यक्त किया गया है।
सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहे जाने वाले बद्रीनाथ धाम को बद्रीनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह पवित्र स्थल भगवान विष्णु को समर्पित है। आइए जानते हैं कैसे पड़ा इस धाम का नाम बद्रीनाथ?
बद्रीनारायण मंदिर उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। प्रकृति की गोद में स्थित यह पवित्र स्थान भगवान विष्णु का मंदिर है। यहां भगवान विष्णु की मूर्ति विश्राममुद्रा में है।
माना जाता है कि केदारनाथ के दर्शन के बाद बद्रीनाथ में दर्शन करने वाले मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही विष्णु पुराण, स्कंद पुराण और महाभारत जैसे ग्रंथों में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है। मान्यता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 7वीं-9वीं सदी में हुआ था। इस मंदिर के लिए कई कहावतें और इसकी उत्पत्ति की कहानियां भी प्रचलित हैं।
एक बार जब नारद मुनि भगवान विष्णु के दर्शन के लिए क्षीरसागर आए तो उन्होंने वहां लक्ष्मी माता को विष्णु भगवान के पैर दबाते हुए देखा। इस बात से आश्चर्यचकित होकर जब नारद मुनि ने भगवान विष्णु से इस के संदर्भ में पूछा, तो इस बात के लिए भगवान विष्णु ने स्वयं को दोषी पाया और तपस्या करने के लिए वे हिमालय को चले गए। तपस्या के दौरान जब नारायण योग ज्ञान मुद्रा में लीन थे, तब उन पर बहुत अधिक हिमपात होने लगा। नारायण पूरी तरह बर्फ से ढक चुके थे। उनकी इस हालत को देखकर माता लक्ष्मी बहुत दुखी हुईं और वे खुद विष्णु भगवान के पास जाकर एक बद्री के पेड़ के रूप में खड़ी हो गईं। इसके बाद सारा हिमपात बद्री की पेड़ के रूप में खड़ी हुईं माता लक्ष्मी पर होने लगा। तब मां लक्ष्मी धूप, बारिश और बर्फ से विष्णु भगवान की रक्षा कर रही थीं।
अपनी तपस्या के कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु की आंखें खुलीं तो उन्होंने माता लक्ष्मी को बर्फ से ढका हुआ पाया। तब नारायण ने लक्ष्मी मां से कहा कि, ‘हे देवी! आपने भी मेरे बराबर ही तप किया है। इसलिए आज से इस धाम पर मेरे साथ-साथ तुम्हारी भी पूजा की जाएगी और चूंकि आपने बेर यानी बद्री के पेड़ के रूप में मेरी रक्षा की है। इसलिए इस धाम को भी बद्री के नाथ यानी बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा।’
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."