अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
इस वर्ष मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ी गर्मी ने लोगों को भयभीत कर दिया है। मौसम विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के अनुसार, 1901 के बाद से यानी 121 वर्षों में इस वर्ष मार्च का महीना सबसे गर्म रिकॉर्ड हुआ है। इस महीने में देशभर में अधिकतम तापमान सामान्य से 1.86 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। यही हाल अप्रैल में हुआ। गर्म हवाओं के कारण, उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में अधिकतम तापमान पिछले 122 वर्षों में अप्रैल महीने में सबसे अधिक रहा। कई शहरों में तापमान 43-44 डिग्री सेल्सियस तक चला गया।
अनुमान जताया जा रहा है कि तापमान 50 डिग्री सेल्सियस को पार कर सकता है। भारत के कई प्रदेशों में आरेंज अलर्ट जारी कर दिया गया है। आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने बताया है कि, ‘‘मई के दौरान, पश्चिम-मध्य और उत्तर-पश्चिम भारत के अधिकांश हिस्सों और पूर्वोत्तर भारत के उत्तरी हिस्सों में सामान्य से अधिकतम तापमान रहने की संभावना है। देश के शेष हिस्सों में सामान्य से कम अधिकतम तापमान होने का संभावना है।’’
30 अप्रैल को इनसैट 3डी, कॉपरनिकस सेंटिनल 3 और नासा के एक उपग्रह द्वारा ली गई तस्वीरें और भी भयाक्रांत करती हैं। इन उपग्रह तस्वीरों के अनुसार उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में पृथ्वी की सतह का तापमान 60 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो हमारा शरीर किसी भी हालत में इतना तापमान नहीं झेल सकता। पाकिस्तान के कुछ हिस्सों की स्थिति और भी भयावह है। पाकिस्तान के बलूचिस्तान क्षेत्र के तुरबत में पिछले कुछ हफ्तों से तापमान 50 के पार बना हुआ है।
आंकड़े बताते हैं कि 1990 के दशक में साल का औसत तापमान 26.9 डिग्री सेल्सियस हुआ करता था और आज दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में अप्रैल में दिन का तापमान 40 पार जा रहा है। मतलब दो दशक में तापमान लगभग 10-14 डिग्री तक बढ़ा है। अगर यही रफ्तार जारी रही तो अगले दो दशक में यानी कि साल 2045-50 तक तापमान 50 डिग्री के करीब जा सकता है।
आमतौर पर मार्च-अप्रैल का महीना लू और इतनी तपिश का नहीं होता। सवाल उठता है कि फिर मार्च-अप्रैल में इतनी गर्मी कैसे है? इसका कारण क्या है? क्या मौसम पीछे खिसक रहा है? क्या यह गर्मी अभी और बढ़ेगी? क्या यह बढ़ी हुई गर्मी स्थाई होगी?
लंदन के इम्पीरियल कॉलेज के डॉ. मरियम जकारिया और डॉ. फ्रेडरिक ओट्टो के एक नए अध्ययन में पाया गया है कि मार्च-अप्रैल में भारत में गर्मी के थपेड़े मानव गतिविधियों के कारण वैश्विक तापमान के उच्च स्तर पर जाने का परिणाम हैं। डॉ. जकारिया ने कहा कि भारत में हालिया उच्च तापमान जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ है।
मानव गतिविधियों के कारण वैश्विक तापमान बढ़ने से पहले भारत में इन महीनों में इतनी गर्मी 50 वर्षों में एक बार देखी गई होगी। लेकिन अब यह बहुत आम परिघटना है। हम 4 वर्ष में एक बार ऐसे उच्च तापमान की उम्मीद कर सकते हैं। डॉ. ओट्टो का मानना है कि जब तक ग्रीनहाउस गैसों को उत्सर्जन खत्म नहीं किया जाता, भारत एवं अन्य स्थानों पर लू के थपेड़ों का और गर्म होना, और खतरनाक होना जारी रहेगा।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन पर शोध कर रहे प्रो. अरुण देव सिंह बताते हैं कि तापमान में वृद्धि दो कारणों से होती है। एक कारण तो प्राकृतिक है। पृथ्वी सूर्य के ताप से प्रभावित होती है। सूर्य से 9 से 11 वर्ष के अंतराल में सौर लपटें निकलती हैं। इससे एक अंतराल में पृथ्वी का तापमान अधिक होता है परंतु शेष समय में वह सामान्य हो जाता है। दूसरा कारण मानव जनित है। विकास के विभिन्न उपक्रमों से कार्बन उत्सर्जन होता है। इससे ग्लोबल वार्मिंग होती है।
यह कार्बन उत्सर्जन बढ़ेगा, तो गर्मी का प्रकोप भी बढ़ेगा। फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि मौसम पीछे खिसक रहा है। यदि 20 वर्षों तक मार्च में इतनी गर्मी पड़ती रहे तो मौसम का क्रम बदला हुआ माना जा सकता है। फिलहाल जलवायु परिवर्तन के कारण यह देखने में आ रहा है कि गर्मी, जाड़ा या बारिश, जो भी मौसमी स्थिति है, वह बड़ी तीव्र है। यानी बारिश जब भी होगी, बहुत तेज होगी परंतु उसमें निरंतरता नहीं होगी।
टेरी स्कूल आफ एडवांस स्टडीज में एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. चंदर कुमार सिंह कहते हैं कि 1950 के बाद से तापमान का चार्ट देखें तो तापमान क्रमश: बढ़ रहा है। फिलहाल मार्च-अप्रैल में पड़ी गर्मी के आधार पर न तो इसे स्थाई माना जा सकता है और न ही यह कहा जा सकता है कि मौसम चक्र बदल रहा है। मौसम में परिवर्तन क्रमिक ही होगा, अचानक नहीं। उन्होंने कहा कि तापमान बढ़ने से समुद्र के सतह जल का तापमान बढ़ेगा। इससे समुद्र का जल स्तर भी बढ़ेगा।
जलवायु परिवर्तन के चलते मानसून के दौरान बारिश के पैटर्न में भारी बदलाव देखने में आया है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर समेत देश के तमाम हिमालयी राज्यों में प्राकृतिक जलस्रोत तेजी से सूख रहे हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के शोध में यह बात सामने आई है कि हाल-फिलहाल में बेहद कम समय में तेज बारिश हो रही है। इससे जल स्रोतों के रिचार्ज होने में दिक्कत आ रही है। रिचार्ज होने के लिए धीरे-धीरे और सामान्य बारिश जरूरी है।
फसलों पर असर
देशभर में मार्च-अप्रैल महीने में तापमान अधिक होने का दुष्प्रभाव अनाज उत्पादन पर पड़ रहा है। इस कारण से गेहूं, दाल, चना, गन्ना, सब्जी, मसालों आदि का उत्पादन घट रहा है। तापमान में वृद्धि होने से समय के पूर्व फसलों के पकने के कारण प्रत्येक अनाज का दाना कमजोर हो रहा है। उनका आकार भी घट रहा है। फसलों में बार-बार सिंचाई की जरूरत पड़ रही है। तमाम फलदार पेड़ों-पौधों का भी यही हाल है।
समुद्र और समुद्री जीवन पर असर
इससे पूर्व जनवरी में कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस की ओर से एक रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसके मुताबिक वर्ष 2021 भारत के इतिहास में सबसे गर्म वर्षों में एक रहा। पिछले वर्ष दुनिया भर के समुद्रों ने 14 सेक्किटिलियन जूल्स गर्मी सोखी। इस गर्मी का कारण आर्कटिक, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक की बर्फ का पिघलना है। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में बताया कि वर्ष 2020 की तुलना में वर्ष 2021 में दुनिया भर के समुद्र 70 प्रतिशत अधिक गर्म रहे।
कोलोरोडो स्थित नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फियर के वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्र की गर्मी बढ़ने की वजह मानव प्रेरित जलवायु परिवर्तन है। समुद्र न केवल गर्मी, बल्कि मानव द्वारा उत्पन्न किए जा रहे कार्बन डाई आॅक्साइड का 20 से 30 प्रतिशत हिस्सा भी सोख रहे हैं जिससे समुद्रों की अम्लीयता बढ़ रही है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के प्रोफेसर एन.बी. सिंह ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग से तापमान बढ़ रहा है। तापमान बढ़ने के कारण जिस प्रकार मनुष्य प्रभावित होते हैं, उसी प्रकार पशु-पक्षी भी प्रभावित होते हैं। सामान्यत: तापमान जब 30 डिग्री के ऊपर जाता है, उस समय अगर पीने का पानी उपलब्ध न हो या फिर पानी कम पिया जाए तो शरीर के अंदर का प्रोटीन पिघलने लगता है। ऐसे में जीवित रह पाना मुश्किल हो जाता है। जीवन संकट में आ जाता है। ग्लोबल वार्मिंग का असर यह है कि 700 से ज्यादा पक्षियों की प्रजाति दिखनी बंद हो चुकी है और 1500 से ज्यादा पेड़-पौधों की प्रजातियां नष्ट हो चुकी हैं।
Author: samachar
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