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12 January 2025 7:20 am

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“ऐसा नियम बना दो दाता, छुए न लोग बुराई को, भ्रष्टाचार को भंग कर दो, कुछ कम कर दो महंगाई को”

35 पाठकों ने अब तक पढा

नौशाद अली की रिपोर्ट

कानपुर,  महंगाई की मार से हर वर्ग के आदमी परेशान है। पिछले दो दशक में तेल से लेकर चीनी और आटा से लेकर चावल तक की कीमतों में भारी उछाल आया, वहीं लोगों की आमदनी में भी इजाफा हुआ। वैश्विक महामारी कोरोना आने के बाद जब कामकाज बंद हुआ तो स्थितियां अधिक बिगड़ गई। इस दौरान खाद्य पदार्थों की कीमतों ने आसमान छू लिया। सबसे अधिक दाम सरसों का तेल, रिफाइंड, अरहर की दाल पर बढ़े। लेकिन बीस साल पहले इतनी महंगाई नहीं थी। एक-दो रुपये में घरेलू वस्तुएं मिल जाया करती थी।

हरी सब्जियां लोग घरों में ही उगाया करते थे। लौकी, तरोई, कद्दू, भिंडी, कटहल आदि सब्जियां लोग बाजार से कम ही खरीदते थे। घर और आसआस खाली जमीन में सब्जियां उगाते थे। वह खुद भी इस्तेमाल करते और दूसरे गरीब परिवारों को भी बांट दिया करते थे।

लेकिन जैसे-जैसे लोगों की आमदनी बढ़ी, महंगाई भी बढ़ती गई। बीस साल पहले चार रुपये किलो बिकने वाला गेहूं का आटा इस समय 27 रुपये में बिक रहा है।

इसी तरह दो से तीन रुपये किलो बिकने वाला चावल 32 रुपये तक पहुंच गया है। उरद दाल से पांच रुपये से उछलकर सौ रुपये, अरहर की दाल 20 रुपये किलो से 90, गूंग की दाल 25 रुपये किलो से सौ रुपये, धनिया पांच से छह रुपये किलो से अब 120, मिर्च दस रुपये किलो से 240, हल्दी आठ रुपये किलो से 120, सरसों का तेल दस रुपये किलो से उछलकर 180, वनस्पति घी 35 रुपये किलो से 135 तक पहुंच गया है। वहीं दस से 12 रुपये किलो बिकने वाला राजमा और छोला 100 से 120 रुपये किलो तक बिक रहा है।

20 साल पहले मीट 20 रुपये किलो मिल जाया करता था जो आज छह सौ रुपये किलो बिक रहा है। बीस साल पहले की अपेक्षा खाद्य पदार्थों की कीमतों में 80 फीसदी बढ़ोतरी हो चुकी है। ऐसे में लोगों के घर का बजट बिगड़ गया है।

पहले की अपेक्षा घर चलाने के लिए लोगों को ज्यादा हिसाब किताब लगाना पड़ रहा है। तरफ बच्चों की पढ़ाई तो दूसरी तरफ महंगाई ने लोगों को कर्ज में डुबा दिया है।

डिनर की कमाई खा गई मंहगाई

किसी भी होटल या रेस्टोरेंट की असली कमाई उसके डिनर से होती है। कानपुर शहर में करीब दो सौ होटल हैं लेकिन, इनमें से अच्छे होटलों की संख्या सौ के अंदर है। पांच हजार रेस्टोरेंट, ढाबे, फूड़ कार्नर हैं। महंगाई ने जिस तरह से आम आदमी की रसोई का बजट बिगाड़ा है, उसी तरह होटल की स्थिति को भी डांवाडोल किया है क्योंकि रसोई में भी खाना बनता है और होटल में भी लोग कुछ हटकर खाने के लिए पहुंचते हैं। बहुत से होटलों के नियमित ग्राहक भी बन जाते हैं जो सप्ताह के अंत यानी शनिवार और रविवार में जरूर पहुंचते हैं। होटलों व रेस्टोरेंट की असली कमाई इन्हीं से होती है। कोरोना की वजह से लाकडाउन में बंद रहने के बाद होटल, रेस्टोरेंट संचालकों को जब दोबारा इसे चलाने का मौका मिला तो अब तक पहले की तरह लोगों का आना शुरू नहीं हुआ है। इस वजह से होटल व रेस्टोरेंट संचालक मार्च 2020 के बाद से अपने रेट नहीं बढ़ा सके हैं। मजबूरी में कच्चे माल की कीमतें बढ़ने की वजह से उन्हें अपने लाभ में ही कटौती करने पड़ रही है। 30 प्रतिशत का यह लाभ अब घटते-घटते 15 प्रतिशत हो गया है।

होटल, रेस्टोरेंट में शहर में करीब छह हजार परिवार हैं जो हर शनिवार और रविवार किसी न किसी रेस्टोरेंट या होटल में जाकर डिनर करते हैं। शहर के 100 अच्छे होटल व रेस्टोरेंट की काफी कमाई इन्हीं परिवारों के आने से चलती है।

2020 से पहले होटल और रेस्टोरेंट संचालकों को डिनर पर 30 प्रतिशत तक लाभ मिलता था लेकिन, ईंधन, कच्चे माल की कीमतें बढ़ने से लागत बढ़ गई है। आपसी प्रतिस्पर्धा और ग्राहकों की कमी की वजह से कीमतें नहीं बढ़ा सकते, इसलिए अपने पुराने रेट पर ही कायम हैं। कारोबारियों के मुताबिक अब उनका लाभ 15 प्रतिशत ही रह गया है। इसी में उन्हें सारे खर्च निकालने पड़ रहे हैं।

40 प्रतिशत गिरी ग्राहकों की आवक : होटल व रेस्टोरेंट में पिछले कुछ माह में 40 प्रतिशत तक ग्राहकों की आवक कम हुई है। इसका असर खाने की लागत पर पड़ रहा है, क्योंकि ज्यादा लोगों के लिए जब खाना बनाया जाता है तो सस्ता पड़ता है। जब खाना कम लोगों के लिए बनता है तो संचालक की जेब पर भारी हो जाता है।

आइसक्रीम पार्लर में भी घटा लाभ : रेस्टोरेंट और होटल की तरह आइसक्रीम पार्लर पर भी दूध, कामर्शियल गैस सिलिंडर की कीमतों की मार पड़ी है लेकिन, पार्लर संचालक कीमतें नहीं बढ़ा पाए हैं। उन्होंने अपनी कीमतों को फिलहाल कम कर लिया है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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