-जगदीश सिंह
बलिया। गजब साहब आज भी बलिया की बागी धरती से रणबांकुरों के सिंहनाद की गर्जना वैसे ही बरकरार है जैसे ब्रितानिया हुकूमत के दौर में हुआ करता था।
बलिया में पत्रकारों के साथ सरकारी अमला ने जिस तरह से नाइंसाफी किया उससे आक्रोशित बलिया का जर्रा जर्रा बगावत की राह पर इंसाफ की मसाल लिये निकल पड़ा है। पत्रकारों को इंसाफ दिलाने के लिये गांव कस्बा शहर शनिवार के दिन अपना सारा कारोबार बन्द कर आन्दोलन में शरीक हो गया। सारा दिन बिना किसी दबाव सारा शहर सन्नाटे में डूब गया। दो पहिया से लेकर चार पहिया वाहन तक नहीं चले। किसान खेत खलिहान दूकान सब बन्द कर दिये।
इतनी बड़ी बन्दी शायद गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन में भी नहीं हुआ था? स्कूल कालेज कोचिंग सेन्टर बन्द हो गये। छात्र संगठन, ब्यापार मंडल, सामाजिक संगठन यहां तक कि टैक्सी यूनियन आटो यूनियन , रिक्शा यूनियन तक दिल खोलकर समर्थन किये। दिन भर प्रशासन हांफता रहा मगर लोकतांत्रिक तरीके से आन्दोलन मिसाल कायम करता रहा। न कहीं टकराव न बिखराव। हर तरफ सम्भाव। दिल में प्रशासन के कूकृत्य का लिये घाव पत्रकार सड़कों पर लोगों के सहयोग से अभिभूत धन्यबाद देता रहा ।
यूं ही नहीं बलिया को बागी कहा जाता है। आजाद भारत के इतिहास में पत्रकार समाज के लिये पूरे देश में इतना बड़ा आन्दोलन न देखा गया न सुना गया। जिस तरह का आन्दोलन बलिया की बागी धरती पर 16अप्रैल को देखने को मिला।
किंबदन्ती नहीं साहब! सच की सतह पर हकीकत भरी मायूसी के आलम में समर्थन सहयोग में कल पछुआ हवा तक नहीं चली पवन देव भी सहयोग करते रहे। दर-दर मुनी व बाबा भृगु की बरदानी स्वाभिमानी धरती से जो आवाज निकली है देश के परिवेश में पत्रकार समाज के लिये इंकलाब बनकर मील का पत्थर साबित होगी ।
शासन प्रशासन ने सोचा भी नहीं होगा कि जिन पत्रकारों को सच लिखने की सजा दिया है उसका खामियाजा इस स्तर पर भुगतना पड़ेगा ? अफसरशाही के नशा में मगरुर जिलाधिकारी व पुलिस कप्तान अब तुम्हारी खैर नहीं?यही सरकार तुम्हारे लिये भष्मासुर बनेगी। शुरु हो चुकी है ऊल्टी गिनती । बकरे की मां अबतक खैर मनायेगी? जिन्दगी भर बलिया की धरती याद आयेगी। आज नहीं तो कल पत्रकार रिहा हो जायेंगे। लेकिन तेरी किस्मत में जो दाग लगा जायेंगे कभी भूल नहीं पाओगे। अच्छे घर बगावत का निमंत्रण दिया। ईमानदारी का अच्छा सिला दिया। झूठ बोलकर अपनी कमजोरी को छिपाने अपनी कर्तब्य निष्ठा दिखाने व भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिये जिनसे रिश्र्वत खाते रहे। उनके लिये ईमानदारी के साथ पत्रकारिता जगत में अपनी पहचान रखने वाले पत्रकारों को बलि का बकरा बना दिया। मदान्ध धृतराष्ट्र के तरह फैसला सुना दिया। महाभारत का शंखनाद हो चुका है। पत्रकारों का चीरहरण करने वाले अब तेरी खैर नहीं। तुम्हें होने वाले अनर्थ का भी पता हो गया होगा। बहुत जल्द सचिवालय में बस्ता रिक्शे पर लादकर लखनऊ की गलियों में घूमते नजर आगे डीएम साहब। तुमको हर हाल में इसकी सजा मिलनी है। तूने बलिया में बड़ा रंग जमा रखा है। आगाज अभी देखा है अन्जाम भी देख लेना।
यह पत्रकार आन्दोलन तब तक चलेगा जब तक परिणाम सार्थक नहीं मिलेगा। बलिया के पत्रकारो की अब बात नहीं रही पत्रकार समाज के सम्मान का बात बन गया है।अब याचना नहीं रण होगा संघर्ष महाभीषण होगा। बागी बलिया से सम्मान की निकली चिंगारी भारत वर्ष में मंगल पांडे की ललकार बनकर इतिहास कायम करेगा। इस बार आर पार के साथ ही सरकार को भी बताया जायेगा! पत्रकार लोकतन्त्र का सजग प्रहरी है। उसके सुरक्षा सम्मान उसके अधिकार की भी जिम्मेदारी भी सरकार की है।समय आ गया है। इस बार अपनी बात को मजबूती से रखकर सुरक्षा कानून को अमली जामा पहना दिया जाय। हालात रोज नया मोड़ ले रहा है। बलिया से जो आवाज उठी है। वह पूरे देश की आवाज़ बन चुकी है। सारे पत्रकार संगठनों को एक मंच पर आकर निर्णय करना होगा। वरना अफसरशाही का शिकार पत्रकार समाज होता रहेगा। फैसला इस बार आर पार का जरुरी है। यह आज के समय की मजबूरी है।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."