Explore

Search
Close this search box.

Search

November 25, 2024 5:25 pm

लेटेस्ट न्यूज़

ऐसा कत्लेआम कि सुनकर कांप जाती है रुह ; 34 शव मिले सैकड़ों शवों को गंगा में बहा दिया गया

14 पाठकों ने अब तक पढा

राजा कुमार साह की रिपोर्ट

आज के दिन ठीक 103 साल पहले 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) हुआ था। उस दिन फिरंगी हुकूमत के कार्यवाहक ब्रिगेडियर-जनरल रेजिनाल्ड डायर (Reginald Dyer) के आदेश पर ब्रिटिश-भारतीय सेना की टुकड़ियों ने जलियांवाला बाग में इकट्ठा निहत्थे भारतीयों की भीड़ पर गोलीबारी की थी। घटना में 379 बेकसूर लोगों की मौत हुई थी तथा 1100 से अधिक लोग घायल हुए थे। ऐसी ही एक घटना बिहार के मुंगेर जिले के तारापुर (Tarapur Massacre) में भी 15 फरवरी 1932 को हुई थी, जिसमें चार सौ से अधिक क्रांतिकारियों पर ब्रिटिश पुलिस ने गोलीबारी की थी। आधिकारिक आंकड़ाें के अनुसार 34 लोगों की मौत हुई थी। हालांकि, स्‍थानीय लोग बताते हैं कि घटना में सौ से अधिक लोग मारे गए थे, जिनके शव पुलिस ने ट्रैक्टरों व ट्रकों से भागलपुर के सुल्‍तानगंज गंगा घाट ले जाकर नदी में बहा दिए थे।

फिरंगी गोलीबारी से बेपरवाह फहरा ही दिया तिरंगा

15 फरवरी 1932 को मुंगेर के तारापुर अनुमंडल के जमुआ सुपौर से चार सौ से अधिक क्रांतिकारियों का धावक दल अंग्रेजों द्वारा स्थापित तारापुर थाने पर तिरंगा फहराने का संकल्प लेकर घरों से निकल पड़ा। उनका हौसला बढ़ाने के लिए सड़कों पर हजारों लोगों की भीड़ उतर पड़ी। इसकी पूर्व सूचना मिलने पर तत्कालीन कलेक्टर ई.ओ. ली औ एसपी डब्लू.एस. मैग्रेथ तारापुर थाने पर आ चुके थे। क्रांतिकारी जब तिरंगा फहराने के लिए तारापुर थाना पर चढ़ने लगे, तब अंग्रेज अफसरों ने गोलीबारी का आदेश दिया, लेकिन भारी गाेलीबारी के बीच क्रांतिकारियों ने तिरंगा फहरा कर ही दम लिया। एक गिरता तो दूसरा तिरंगा थाम लेता और अंतत: मदन गोपाल सिंह, त्रिपुरारी सिंह, महावीर सिंह, कार्तिक मंडल व परमानन्द झा ने तिरंगा फहरा ही दिया। 

34 क्रांतिकारियों के मिले शव, सैकड़ों को गंगा में बहाया

घटना के दौरान 34 क्रांतिकारी शहीद हो गए। उनमें 21 की पहचान नहीं हो सकी। 13 शहीद, जिनकी पहचान सकी, उनमें विश्वनाथ सिंह, शीतल चमार, सुकुल सोनार, महिपाल सिंह, संता पासी, झोंटी झा, सिंहेश्वर राजहंस, बदरी मंडल, वसंत धानुक, रामेश्वर मंडल, गैबी सिंह, अशर्फी मंडल एवं तथा चंडी महतो शामिल थे। हालांकि, स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां सौ से अधिक आंदोलनकरी शहीद हुए थे।

तारापुर के व्‍यवसायी राजीव यादव बताते हैं कि घटना के बाद अंग्रेज अफसरों ने शवों को ट्रैक्‍टरों व ट्रकों में भर-भर कर भागलपुर के सुल्तानगंज गंगा घाट पर भेजा, जहां उन्‍हें नदी में बहा दिया गया। उनमें से जो 34 शव छोड़ दिए गए, वही मिल सके। तारापुर के मनोज मिश्रा कहते हैं कि यह 13 अप्रैल 1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद देश में अंग्रेजों द्वारा किया गया दूसरा बड़ा नरसंहार था।

तारापुर के शहीदों की स्‍मृति में बने शहीद स्मारक व पार्क

घटना की स्‍मृति में यहां शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया है। यहां घटना के 13 ज्ञात शहीदों की आदमकद प्रतिमाएं लगाई गई हैं। अज्ञात शहीदों के चित्र भी उकेरे गए हैं।

तारापुर के शहीदों की चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कर चुके हैं। इसी साल 15 फरवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तारापुर के शहीदों के सम्मान में यहां शहीद पार्क का लोकार्पण किया। शहीद स्मारक के बनाए गए पार्क की दीवारों पर शहीदों की अमर गाथा चित्रों के रूप में उकेरी गई है। 

हर साल इसी साल शहीद दिवस के अवसर पर शहीद पार्क का लोकार्पण करते हुए मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने 15 फरवरी को शहीद दिवस राजकीय समारोह के आयोजन की घोषणा भी की थी।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़