दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
गोरखपुर। जिलाधिकारी की गोपनीय जांच ने परिवहन विभाग (आरटीओ दफ्तर) में व्याप्त भ्रष्टाचार की कलई खोल दी है। नामजद होमगार्ड तो सिर्फ एक मोहरा है, दफ्तर और शहर में उसके जैसे दर्जनों एजेंट (दलाल) घूम रहे हैं। जो प्रशिक्षु (लर्निंग) और स्थायी (परमानेंट) ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने वाले अभ्यर्थियों को झांसे में लेकर मोटी रकम वसूल रहे हैं। यह रकम चरगांवा स्थित चालक प्रशिक्षण कार्यालय (डीटीआइ) के काउंटरों पर बैठे पटल कर्मचारियों (बाबू), संभागीय क्षेत्रीय निरीक्षक (आरआइ) सहित अधिकारियों तक पहुंचता है। सबका अलग-अलग फिक्स कमीशन निर्धारित है।
आलम यह है कि अभ्यर्थियों को छह माह के अंदर एक लाइसेंस बनवाने में दस हजार रुपये खर्च करने पड़ जा रहे हैं। लर्निंग लाइसेंस के लिए निर्धारित शुल्क 350 की जगह चार से पांच हजार और परमानेंट के लिए निर्धारित शुल्क एक की जगह पांच से छह हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। जो अभ्यर्थी एजेंटों और दलालों के मनमाफिक पैसा खर्च नहीं करते वे फेल कर दिए जाते हैं या उनके टेस्ट का समय आगे बढ़ा दिया जाता है। जानकारों के अनुसार पुलिस की गिरफ्त में आया होमगार्ड और उसके एजेंट बाबुओं और अधिकारियों की मिलीभगत से घर पर लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस का आनलाइन टेस्ट देने वाले अभ्यर्थियों का डेट बढ़वा देते थे।
अभ्यर्थी डेट दुरुस्त कराने के लिए दफ्तर पहुंचते या फोन करते थे तो उन्हें अपने जाल में फंसाकर टेस्ट का डेट जल्दी करवा देते थे। निर्धारित डेट पर नजदीक के साइबर कैफे वाले के यहां पहुंचकर अभ्यर्थी को पास करा देते थे। यह काम वह अकले नहीं बल्कि उसकी पूरी टीम करती थी। जानकारों के अनुसार होमगार्ड और उसकी टीम के पास कप्यूटर सिस्टम खोलने वाला अधिकारियों का पासवर्ड भी रहता था। यहां जान लें कि प्रतिदिन घर पर बैठकर 100 तथा दफ्तर पहुंचकर 50 से 60 अभ्यर्थी आनलाइन टेस्ट देते हैं।
घर टेस्ट देने के नाम पर सभी अभ्यर्थी पास हो जाते हैं। जो दफ्तर पहुंचते हैं उनमें भी पैसा देने वाले 80 से 90 प्रतिशत अभ्यर्थी उत्तीर्ण हाे जाते हैं। यह तब है जब व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए शासन ने पूरे सिस्टम को आनलाइन कर दिया है।
फाइलों पर दर्ज रहता है कोड, आरआइ बोलते हैं इमला
एजेंट और दलाल पास कराने के नाम पर पैसा देने वाले अभ्यर्थियों के फाइलों पर निर्धारित कोड दर्ज कराते हैं। यह कोड संबंधित अधिकारी और आरआइ की सहमति से दर्ज होता है। अभ्यर्थी जब टेस्ट देने पहुंचते हैं तो आरआइ फाइल पर कोड देखकर इमला बोलकर परीक्षार्थी को उत्तीर्ण करा देते हैं। शाम को कोड वाले फाइलों का हिसाब होता है। हिसाब में मिले पैसों का बंटवारा होता है। पैसे के बंदरबांट में कोई खेला न हो जाए, इसके लिए दो आरआइ में से एक-एक की एक माह के लिए डीटीआइ में ड्यूटी लगती है।
बिना टेस्ट लिए रोजाना बनाते हैं एक सौ प्रशिक्षित चालक
डीटीआइ में टेस्ट के लिए बना आधुनिक ट्रैक बना है। लेकिन वह शो पीस बनकर रह गया है। आइआइ कभी उसका उपयोग ही नहीं करते। जो अभ्यर्थी एजेंटों के माध्यम से नहीं आते हैं, उन्हें फाइल देखकर ही फेल करते हैं। जिन्हें एजेंट लेकर पहुंचते हैं उन्हें फाइल देखकर ही बिना टेस्ट लिए पास कर देते हैं। वे ऐसे अभ्यर्थी होते हैं जो कभी चार पहिया वाहन का स्टेयरिंग भी नहीं पकड़े होते। ऐसे ही प्रशिक्षित चालक आगे चलकर मार्ग दुर्घटनाओं को बढ़ाते हैं।
दफ्तर में बाबुओं के भी तैनात है बाबू
आरटीओ दफ्तर में अधिकारियों ने बाबुओं के अलावा अपने लिए मानदेय पर अलग से निजी कर्मचारी तैनात किए हैं। निजी कर्मचारी भी एजेंट का कार्य करते हैं। इसके अलावा पटल कर्मचारी अपने कार्य के लिए भी अलग से निजी कर्मचारी रखे हैं। यह सभी निजी कर्मचारी कंप्यूटर से लगायत फाइलों का हिसाब-किताब करने तथा लेन देन करते हैं। यह निजी कर्मचारी भी अपने कर्मचारी रखे हैं जो कार्यालय परिसर में अभ्यर्थियों को अपने झांसे में लेते हैं।
Author: samachar
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