राजीव कुमार झा
भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ब्रिटिश शासन को देश में खत्म करने के अलावा यहाँ की पुरानी सामाजिक व्यवस्था और संस्कृति के कई पहलुओं के प्रति भी जनमानस के विरोध का स्वर उभरकर सामने आया और वर्ण व्यवस्था में व्याप्त असमानता के अलावा नारियों की सोचनीय दशा को बदलने का संकल्प भी जोर पकड़ने लगा । आजादी की लड़ाई में देश के सभी तबकों के लोग शामिल थे इसलिए स्वतंत्रता के बाद हमारे देश में जब गणतंत्र की स्थापना हुई तो यहाँ 26 जनवरी 1950 ई . को लागू संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किए गये ।
भारत में गणतंत्र की स्थापना के बाद यहाँ लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना हुई और इसमें समाज के सभी वर्गों की सहभागिता से देश के समग्र उत्थान का संकल्प है । भारत का गणतंत्र अपनी सात दशक की इस यात्रा में व्यापक सामाजिक – राजनीतिक परिवर्तनों से गुजरता स्वतंत्रता , समानता और बंधुत्व के आदर्शों के अनुरूप नित नवीन उपलब्धियों को पाने की दिशा में अग्रसर है ।
हमारा देश संसार का एक प्राचीन देश है और हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक फैली इसकी विस्तृत सीमाओं में अनेक जनगणों का निवास है । गणतंत्र दिवस इस देश के सभी निवासियों को विविधता में एकता का संदेश देता है और धर्म , जाति , भाषा , क्षेत्र के बारे में फैली भ्रांतियों से दूर रहकर देशहित में यहाँ की सामासिक संस्कृति की धारा में समग्र भारत को आबद्ध करता है ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत का गणतंत्र निरंतर मजबूत हुआ है और इस दौर में सांप्रदायिक अलगाव और हिंसा से उपजी आपसी घृणा के बीच अलगाव के कई भ्रमित नारों के बीच अपनी एकजुटता से यह देश सदैव संसार का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करता रहा है । आजादी के बाद भारत को विभाजन के संकट को भी झेलना पड़ा और जिन्ना के साथ इस अपराध में गाँधी – नेहरू की चुप्पी आज भी बौद्धिक हलकों में सवालों को जन्म देती रहती है । खैर गाँधी और नेहरू की विवशता को भी हम समझ सकते है और पाकिस्तान के कुचक्रों का हमने समुचित जवाब दिया है।
किसी दिन कश्मीर की पावन भूमि पर ही सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी जाएगी और इसके लिए हमारी सेना हर वक्त तैयार है। हमारा यह पावन दिन जय हिंद जय भारत के साथ जय जवान जय किसान के नारे को भी चरितार्थ करता है ।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."