मथुरा की 98 वर्षीय विद्या देवी ने 29 वर्षों तक खुद को जिंदा साबित करने और पुश्तैनी ज़मीन के लिए लड़ाई लड़ी। सिस्टम ने उनकी मौत के बाद दोषियों को पकड़ा। जानिए पूरा मामला।
मथुरा की दर्दनाक सच्चाई: 29 वर्षों तक ज़िंदा होने की लड़ाई, मौत के बाद मिला न्याय
मथुरा जिले से आई यह खबर न सिर्फ हैरान करती है, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था पर भी कई सवाल खड़े करती है। यहां की रहने वाली विद्या देवी ने लगभग तीन दशक तक खुद को ज़िंदा साबित करने की लड़ाई लड़ी, लेकिन अंततः उनकी ज़िंदगी की यह जंग मौत पर आकर थम गई।
1975 से शुरू हुई थी कहानी
यह पूरा मामला शुरू होता है साल 1975 से, जब विद्या देवी के पिता निद्धा सिंह ने 12.45 एकड़ पुश्तैनी ज़मीन की वसीयत अपनी बेटी के नाम कर दी थी। इसके एक साल बाद, निद्धा सिंह का देहांत हो गया। उस समय विद्या देवी अपनी ससुराल अलीगढ़ में रह रही थीं।
छल और साजिश: मृत दिखाकर हड़प ली ज़मीन
वर्षों बाद, करीबी रिश्तेदारों ने राजस्वकर्मियों से मिलीभगत कर विद्या देवी को दस्तावेजों में मृत घोषित कर दिया। यही नहीं, निद्धा सिंह को जीवित बताते हुए एक फर्जी वसीयत तैयार की गई और 19 मई 1996 को जमीन का रिकॉर्ड दिनेश, सुरेश और ओमप्रकाश के नाम चढ़ा दिया गया।
शुरू हुआ संघर्ष: थानों से तहसील तक दौड़
जब विद्या देवी को इस साजिश की खबर मिली, तब उन्होंने अपनी पहचान और हक़ की लड़ाई शुरू की। वे अपने बेटे के साथ अलीगढ़ से मथुरा आतीं, डीएम, एसपी, थाने और तहसील के चक्कर काटतीं, अपने जीवित होने के प्रमाण पेश करतीं, लेकिन प्रशासन आंखें मूंदे बैठा रहा।
29 साल बाद दर्ज हुआ मुकदमा
लगातार 29 साल की जद्दोजहद के बाद, महिला आयोग और उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप से मामला कुछ आगे बढ़ा। 18 फरवरी 2025 को विद्या देवी के बेटे सुनील द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र पर थाना सुरीर में फर्जीवाड़े का मुकदमा दर्ज किया गया। इस बीच, जिस ज़मीन की लड़ाई 1975 में शुरू हुई थी, उसकी कीमत अब 19 करोड़ रुपये हो चुकी थी।
जीवन की आख़िरी सांस: एक अधूरी जीत
इस लंबे संघर्ष और उपेक्षा ने विद्या देवी को अंदर से तोड़ दिया। 18 मार्च 2025 को उन्होंने अलीगढ़ के गांव बाढोन में अंतिम सांस ली। वे अपने ज़िंदा होने का सबूत देने में असफल रहीं, लेकिन उनकी मौत ने प्रशासन को झकझोर कर रख दिया।
मौत के बाद मिली “न्याय की आहट”
विडंबना यह है कि विद्या देवी की मौत के 15 दिन बाद, पुलिस हरकत में आई और दिनेश व सुरेश को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। वहीं, तीसरे आरोपी ओमप्रकाश की तलाश अब भी जारी है।
विद्या देवी की कहानी सिर्फ एक महिला की व्यक्तिगत पीड़ा नहीं, बल्कि व्यवस्था की लापरवाही और इंसाफ में देरी की भयावह तस्वीर है। यह घटना यह साबित करती है कि हमारे देश में कभी-कभी न्याय की शुरुआत मौत के बाद होती है।
अब देखना यह होगा कि क्या प्रशासन ऐसे मामलों से सबक ले पाएगा या फिर अगली विद्या देवी किसी और दस्तावेज़ में फिर से “मृत घोषित” कर दी जाएगी।
➡️ब्रजकिशोर सिंह की रिपोर्ट

Author: samachardarpan24
जिद है दुनिया जीतने की