संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट
श्रीप्रकाश शुक्ला! 90 के दशक में अपराध की दुनिया में एक ऐसा नाम जिसके खौफ से पूरा उत्तर प्रदेश कांपता था। पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का 25-26 साल का शार्प-शूटर और ‘सुपारी किलर’ श्रीप्रकाश शुक्ला से पुलिस के साथ अपराधी भी खौफ खाते थे। श्रीप्रकाश और उसके पास मौजूद एके-47 दहशत का दूसरा नाम था। इस माफिया को पकड़ने के लिए ही यूपी में एसटीएफ का गठन हुआ था। एसटीएफ को भी माफिया को अंजाम तक पहुंचाने के लिए नाको चने चबाने पड़े थे।
11 जनवरी 1997 की शाम—जब सड़कों पर कोहरा घना था, तभी एक शख्स अपने खतरनाक इरादों के साथ आगे बढ़ रहा था। यह कोई आम व्यक्ति नहीं, बल्कि अपराध की दुनिया का नया चेहरा था—श्रीप्रकाश शुक्ला। उसकी बंदूकों की गूंज ने लखनऊ की सड़कों को थर्रा दिया। गोलियों की बौछार इतनी तेज थी कि सुनने वालों के कान सुन्न हो गए।
22 साल की उम्र में रेलवे के ठेकों में कदम रखने वाले पेशेवर शूटर श्रीप्रकाश शुक्ला को मोकामा, बिहार के माफिया सूरजभान ‘दादा’ का समर्थन मिला था। श्रीप्रकाश और ‘दादा’ की जोड़ी ने बाहुबली वीरेंद्र प्रताप शाही और बाहुबली हरिशंकर तिवारी के साम्राज्य को काफी चोट पहुंचाई।
श्रीप्रकाश के नाम से बड़े-बड़े सूरमा अंडरग्राउंड हो गए या खुद को रेलवे के ठेके से दूर कर लिया। हत्या, अपहरण, फिरौती आम बात हो गई। यह समय रेलवे अफसरों के लिए कठिन था। श्रीप्रकाश का दौर करीब चार सालों तक चला। श्रीप्रकाश के एनकाउंटर के बाद भी खूनी खेल का सिलसिला थमा नहीं। बंदूक की नाल के दम पर ठेके हथियाने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। उस समय में श्रीप्रकाश शुक्ला के सामने कोई शख्स रेलवे का टेंडर भी नहीं डाल पाता था। रेलवे का टेंडर लेना मतलब मौत को गले लगाना था। श्रीप्रकाश ने बंदूक की नोक पर रेलवे का ठेका अपने नाम करवा लेता था।
श्रीप्रकाश का खौफ इतना ज्यादा था कि वह ठेकेदारों से गुंडा टैक्स वसूलने लगा और लोग बिना किसी को बताए यह टैक्स देने भी लगे। श्रीप्रकाश के बाद माफिया बृजेश सिंह भी गुंडा टैक्स लेने लगे। वाराणसी मंडल के कार्यों में बिना बृजेश से सांठगांठ किए ठेका लेना आसान नहीं था। अब तो किसी को किसी का डर नहीं। ई-टेंडरिंग ने रेलवे में दबंगई खत्म कर दी। किसने, कितना टेंडर डाला है सभी लोग देख सकते हैं। इस व्यवस्था से ठेकेदारों को बहुत सहूलियत हुई है।
पुलिस के हाथ कभी जिंदा नहीं आया था श्रीप्रकाश शुक्ला
अपराध जगत में श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम खौफ और बर्बरता का प्रतीक बन चुका था। पुलिस के लिए वह सिर्फ एक अपराधी नहीं, बल्कि चुनौती था। उसका खौफ इतना था कि न केवल आम लोग, बल्कि पुलिस भी उससे थर-थर कांपती थी। वजह साफ थी—वह कभी अकेला नहीं चलता था और हमेशा आधुनिक हथियारों से लैस रहता था।
हालांकि, अपराध की दुनिया में उसका अंत भी तय था। पुलिस के हाथों वह कभी जिंदा नहीं आया। जब वह पकड़ा गया, तब उसकी कहानी खत्म हो चुकी थी।
जब बीच सड़क पर बरसीं 50-60 गोलियां
श्रीप्रकाश शुक्ला की निर्दयता को दर्शाने के लिए कई घटनाएं सामने आती हैं, लेकिन लखनऊ के लॉटरी व्यापारी विवेक श्रीवास्तव की हत्या उनमें सबसे ज्यादा चर्चित रही।
पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पांडेय ने एक पॉडकास्ट में इस घटना का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि मायावती के शासनकाल में लॉटरी का कारोबार चरम पर था। विवेक श्रीवास्तव, जिन्हें “लॉटरी किंग” कहा जाता था, लखनऊ में इस धंधे के सबसे बड़े नामों में से एक थे। उनका एक बड़ा लॉटरी हाउस लाटूस रोड पर था, जहां लोगों की भीड़ हमेशा बनी रहती थी।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
एक दिन, श्रीप्रकाश शुक्ला ने विवेक श्रीवास्तव को फोन किया और अपने बहनोई को अमीनाबाद का लॉटरी एरिया देने की मांग की। लेकिन विवेक ने उसकी यह मांग ठुकरा दी और उसे फटकार लगा दी। चूंकि विवेक खुद एक रसूखदार व्यक्ति थे और उनकी राजनीतिक पकड़ भी मजबूत थी, इसलिए उन्होंने श्रीप्रकाश को नजरअंदाज कर दिया।
बाद घातक टकराव का समय आ गया
कुछ ही दिनों बाद, जब विवेक श्रीवास्तव अपना ऑफिस बंद करके घर लौट रहे थे, तभी लाटूस रोड पर श्रीप्रकाश शुक्ला ने उनकी गाड़ी को रोका। बिना कोई चेतावनी दिए, उसने अपनी बंदूक निकाली और विवेक पर 50-60 गोलियों की बरसात कर दी।
यह घटना इतनी भयानक थी कि पूरे लखनऊ में सनसनी फैल गई। सिर्फ चंद मिनटों में, विवेक श्रीवास्तव का खात्मा हो चुका था।
अपराध की दुनिया का खूंखार चेहरा
इस घटना ने साफ कर दिया कि श्रीप्रकाश शुक्ला सिर्फ एक अपराधी नहीं, बल्कि मौत का दूसरा नाम बन चुका था। उसकी बेरहमी, आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल और खुलेआम हत्याएं उसे यूपी का सबसे खतरनाक गैंगस्टर बना चुकी थीं।
हालांकि, श्रीप्रकाश के एनकाउंटर के बाद भी अपराध का सिलसिला पूरी तरह नहीं थमा, लेकिन धीरे-धीरे नए कानूनों और पुलिस कार्रवाई के चलते अपराध कम हुआ।
हर अपराधी का अंत तय होता है। कुछ ही समय बाद पुलिस ने उसका एनकाउंटर कर दिया, लेकिन उत्तर प्रदेश की अपराध गाथाओं में उसका नाम आज भी एक खौफनाक अध्याय की तरह दर्ज है।
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की