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November 22, 2024 4:15 pm

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मैं लखनऊ हूँ… बड़े-बड़े अपराधियों का ठौर और संसाधनों का उपयुक्त साधन रहा हूँ मैं‌…बाहुबलियों को खूब रास आता हूँ… जानते हैं क्यों? 

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

लखनऊ: देश की राजधानी दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है, इसलिए जरूरी है कि अपने आपको पहले क्षेत्रीय राजनीति से ऊपर उठकर लखनऊ में स्थापित किया जाए। 

लखनऊ राजनीति का मुख्य केंद्र है। लखनऊ को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की कर्मभूमि भी कहा जाता है। लखनऊ ने अगर एक से बढ़कर एक नेताओं को दिया है तो वहीं माफिया से नेता बने बाहुबलियों की भी लखनऊ पहली पसंद थी। 

लखनऊ बाहुबली नेताओं को खूब रास आती थी। इसके कई प्रमुख वजहें भी थीं। लखनऊ में रेल के ठेके से लेकर कॉम्प्लेक्स के व्यवसाय बाहुबली नेताओं की आंखों में चमक पैदा करते थे। 

एक समय में बाहुबली नेता मानते थे कि जिसने लखनऊ में अपनी पकड़ मजबूत बना ली, उसकी ताकत में चार चांद लग जाते थे।

एक समय ऐसा था कि सदन के सम्मानित सदस्य होने के बावजूद ऐसे कई माननीय थे, जो उस वक्त आपराधिक गतिविधियों पर नजर रखते थे। साथ ही लखनऊ के भीतर और बाहर अपराधों को अंजाम तक पहुंचाने के गुरेज नहीं करते थे। जिसके चलते माफिया भी आपस में टकराते रहते थे। 

लखनऊ में रेल के ठेके से लेकर निर्माण गतिविधियां, आवास परियोजनाएं, टेलीफोन के ठेके, बहुमंजिला इमारतों और कॉम्पलेक्स का व्यवसाय बाहुबली नेताओं की आंखों में चमक पैदा करता रहा है। हजारों करोड़ रुपये के इन कारोबार पर काबिज होने के लिए गैंगवार चलती रही है।

गुनाह के सौदागारों को यूपी की राजधानी हमेशा रास आती थी। उन्होंने इस धरती का इस्तेमाल न सिर्फ ‘ठौर’ के रूप में किया, बल्कि संसाधन हासिल करने में भी खूब किया था। 

माफिया बृजेश सिंह, बबलू श्रीवास्तव, श्रीप्रकाश शुक्ला, मुन्ना बजरंगी, कृपाशंकर, सत्यप्रकाश उर्फ सत्तू पाण्डेय, पवन पाण्डेय जैसे लोगों ने अण्डरवर्ल्ड की राजधानी मुम्बई से रिश्तों का जो नाता जोड़ा था, उसी का छोर थामकर आईएसआई एजेंटों, आतंकियों और माफियाओं ने लखनऊ में डेरा जमा लिया था। लाल किले पर हमला हो या फिर अयोध्या हमले की साजिश, अपराधियों ने इस सरजमी का इस्तेमाल किया था।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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