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11 March 2025 7:51 am

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दुनिया का सबसे बड़ा फ्री किचन: जहां रोज़ लाखों को मिलता है प्रेम और भोजन

5 पाठकों ने अब तक पढा

हर दिन इंसानियत की मिसाल पेश करता है यह लंगर

अरुणेश की रिपोर्ट

अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि दुनिया के सबसे बड़े फ्री किचन के रूप में भी जाना जाता है। यहां हर दिन बिना किसी भेदभाव के 50,000 से 1,00,000 लोगों को मुफ्त भोजन परोसा जाता है। यह न केवल भूख मिटाने का माध्यम है, बल्कि समानता, सेवा और मानवता के सिख सिद्धांतों का भी प्रतीक है।

हर जाति, धर्म और वर्ग के लिए खुला दरवाजा

स्वर्ण मंदिर के इस लंगर में आने वाले हर व्यक्ति का खुले दिल से स्वागत किया जाता है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या सामाजिक वर्ग का हो। यहां भोजन करने वाले सभी लोग समान पंक्ति में जमीन पर बैठते हैं, जिससे सिख धर्म के समानता के संदेश को बल मिलता है।

24 घंटे चलने वाला लंगर

स्वर्ण मंदिर का लंगर सप्ताह के सातों दिन, 24 घंटे बिना रुके संचालित होता है। सबसे खास बात यह है कि इस विशाल रसोईघर को मुख्य रूप से स्वयंसेवक (सेवेदार) चलाते हैं। यहां लगभग 300 स्थायी कर्मचारी हैं, जबकि हजारों श्रद्धालु सेवा कार्य में योगदान देते हैं। यह पूरी व्यवस्था सिख समुदाय और अन्य श्रद्धालुओं से मिले दान पर आधारित है।

लंगर के लिए सब्जियां और मसालों की सफाई और तैयारी

लंगर का भोजन: शुद्ध शाकाहारी और पौष्टिक

यहां परोसा जाने वाला भोजन पूरी तरह से शाकाहारी होता है, जिसमें मुख्य रूप से दाल, सब्जी, रोटी और खीर शामिल होती है। भोजन बनाने और परोसने की प्रक्रिया इतनी सुव्यवस्थित होती है कि हजारों लोग बिना किसी अव्यवस्था के भोजन ग्रहण कर सकते हैं।

हाई-टेक किचन: जहां आधुनिक मशीनें बनाती हैं हजारों रोटियां

स्वर्ण मंदिर की इस रसोई में एडवांस मशीनों की मदद से भोजन तैयार किया जाता है। यहां एक खास रोटी बनाने की मशीन लगी है, जिसे एक लेबनानी श्रद्धालु ने दान किया था। यह मशीन एक घंटे में 25,000 रोटियां बनाने की क्षमता रखती है। इसके अलावा, आटा गूंथने और दाल-चावल छानने के लिए भी बड़े-बड़े उपकरण लगाए गए हैं।

 

रोजाना बनने वाले भोजन की मात्रा

स्वर्ण मंदिर के लंगर में प्रतिदिन लगभग:

  • 5000 किलोग्राम गेहूं
  • 2000 किलोग्राम दाल
  • 1400 किलोग्राम चावल
  • 700 किलोग्राम दूध
  • 100 गैस सिलेंडर

का उपयोग किया जाता है। इतनी बड़ी मात्रा में भोजन तैयार करना आसान नहीं होता, लेकिन सेवादार इसे पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ पूरा करते हैं।

गुरु नानक द्वारा शुरू की गई परंपरा

लंगर की यह परंपरा सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक द्वारा वर्ष 1481 में शुरू की गई थी। यह केवल भोजन सेवा नहीं है, बल्कि सिख धर्म के मूल सिद्धांत – सेवा और समानता को दर्शाने वाला एक महत्वपूर्ण कार्य है। दुनियाभर के सभी गुरुद्वारों में लंगर की व्यवस्था होती है, लेकिन स्वर्ण मंदिर का लंगर अपने आप में सबसे विशाल और अनोखा है।

स्वर्ण मंदिर का लंगर दुनिया के सबसे बड़े फ्री किचन के रूप में हर दिन हजारों लोगों की भूख मिटाने का कार्य कर रहा है। यहां बिना किसी भेदभाव के हर कोई समान रूप से भोजन करता है। यह लंगर सिर्फ एक भोजनालय नहीं, बल्कि सेवा, समानता और मानवता की अद्भुत मिसाल है, जो हमें सिखाता है कि भोजन और सम्मान हर इंसान का अधिकार है।

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