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6 March 2025 2:31 pm

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ना नौकरी मिली न न्याय : देवदत्त मिश्रा का सरकारी सिस्टम से 40 साल का संघर्ष, चौंकाने वाली है ये खबर

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ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के सुभाष नगर थाना क्षेत्र में स्थित मढ़ीनाथ के निवासी देवदत्त मिश्रा की जिंदगी न्याय की तलाश में सरकारी दफ्तरों और अदालतों के चक्कर काटते-काटते बीत गई। कभी ग्रामीण अभियंत्रण सेवा में कार्यरत रहे देवदत्त मिश्रा को 1984 में बिना किसी ठोस कारण के नौकरी से हटा दिया गया। इसके बाद उन्होंने अपना हक पाने के लिए कानूनी लड़ाई शुरू की, लेकिन चार दशक बीत जाने के बाद भी न्याय के लिए भटक रहे हैं।

लेबर कोर्ट ने सुनाया था फैसला, फिर भी नहीं मिला न्याय

देवदत्त मिश्रा ने बरेली लेबर कोर्ट में अपनी लड़ाई लड़ी, जहां कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें दोबारा नौकरी पर रखने का आदेश दिया। हालांकि, कुछ समय के लिए उन्हें फिर से नियुक्त किया गया, लेकिन वेतन नहीं दिया गया। इसके बाद, उन्हें दोबारा बिना किसी कारण के नौकरी से निकाल दिया गया। जब विभाग ने लेबर कोर्ट के आदेश की अनदेखी की, तो उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की।

हाईकोर्ट के आदेश की भी अनदेखी

हाईकोर्ट ने भी देवदत्त मिश्रा के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए उनकी पुनर्नियुक्ति और बकाया वेतन देने का निर्देश दिया। लेकिन, विभाग ने इस आदेश को भी नजरअंदाज कर दिया और कोई कार्रवाई नहीं की। चार दशकों तक न्याय के लिए संघर्ष करने के बावजूद, उन्हें उनका हक नहीं मिला। सरकारी विभागों की लापरवाही और अधिकारियों की अनदेखी के कारण उन्हें सिर्फ तारीखें मिलती रहीं, लेकिन न्याय नहीं मिला।

उप श्रमायुक्त ने जारी किया भुगतान का आदेश

लगातार शिकायतों और संघर्षों के बाद, बरेली के उप श्रमायुक्त दिव्य प्रताप सिंह ने ग्रामीण अभियंत्रण सेवा के अधिशासी अभियंता को नोटिस जारी किया। आदेश में कहा गया कि 15 दिनों के भीतर देवदत्त मिश्रा को 9,05,768 रुपए का भुगतान किया जाए। यदि समय पर भुगतान नहीं किया जाता, तो आरसी (Recovery Certificate) जारी कर वसूली की जाएगी और अधिशासी अभियंता के खिलाफ कार्रवाई होगी।

क्या अब मिलेगा न्याय?

देवदत्त मिश्रा का मामला सरकारी कर्मचारियों के साथ होने वाले अन्याय की एक मिसाल है। 40 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बावजूद, वह अब भी अपने हक के इंतजार में हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या उप श्रमायुक्त के आदेश के बाद उन्हें उनका बकाया वेतन मिलेगा? या फिर यह मामला भी सरकारी फाइलों में दबकर रह जाएगा?

अब देखने वाली बात यह होगी कि प्रशासन इस मामले में ठोस कार्रवाई करता है या नहीं, या फिर यह मामला भी तारीखों के फेर में उलझा रह जाएगा।

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