चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां एक मृत व्यक्ति के नाम पर गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया गया, जिससे उसके परिजन परेशान हैं। पुलिस अब मृतक के घरवालों से मृत्यु प्रमाण पत्र मांग रही है, जो उनके पास उपलब्ध नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
हरबंश मोहाल निवासी विनोद दीक्षित के छोटे भाई दुर्गेश दीक्षित की मृत्यु वर्ष 2015 में हो चुकी थी। वे ज्यादातर विजय नगर कॉलोनी में अपने रिश्तेदार के साथ रहते थे। वर्ष 2009 में उनका स्थानीय युवकों से झगड़ा हुआ था, जिसके बाद उन पर मारपीट और धमकी जैसी धाराओं में केस दर्ज किया गया था। लेकिन, वर्ष 2015 में अत्यधिक शराब के सेवन से उनका लिवर खराब हो गया और इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
मृत्यु प्रमाण पत्र न होने से बढ़ी मुश्किलें
चूंकि दुर्गेश अकेले रहते थे, इसलिए परिजनों ने उनकी मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं बनवाया। हालांकि, श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार की पर्ची उनके पास मौजूद है। कुछ दिनों पहले पुलिस दुर्गेश को ढूंढते हुए उनके रिश्तेदार के घर पहुंची, जहां बताया गया कि उनकी मृत्यु दस साल पहले हो चुकी है। जब पुलिस ने प्रमाण मांगा, तो घरवालों ने बताया कि मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं है, जिसके बाद पुलिस ने गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया।
परेशान परिवार, कोर्ट में कैसे होगा हाजिर?
अब सबसे बड़ी समस्या यह है कि पुलिस ने 19 मार्च को दुर्गेश को कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया है। परिवार परेशान है और कह रहा है कि जो व्यक्ति मर चुका है, उसे कोर्ट में कैसे पेश करें?
क्या है आगे की राह?
परिवार अब इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए उपाय ढूंढ रहा है। कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, परिवार को अधिकारिक रूप से मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाना होगा या फिर श्मशान घाट की पर्ची और अस्पताल के रिकॉर्ड के आधार पर कोर्ट में उचित दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे।
यह मामला दिखाता है कि मृत्यु प्रमाण पत्र न होने की वजह से कानूनी दिक्कतें हो सकती हैं। सरकारी कागजातों में अपडेट न होने के कारण मृत व्यक्ति को जिंदा मानकर पुलिस कार्रवाई कर सकती है। ऐसे में, परिजनों को समय पर मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने की सलाह दी जाती है, ताकि भविष्य में ऐसी परेशानियों से बचा जा सके।
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की