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31 January 2025 3:27 am

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संगम तट पर बिछड़े अपने: आस्था के मेले में चीख-पुकार और इंतजार की दर्दभरी गूँज… करेजा चीर देती है… 

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चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

प्रयागराज, संगम तट।माघ मेले का समय था। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम पर लाखों श्रद्धालु डुबकी लगाने पहुंचे थे। चारों ओर भक्ति और आस्था का वातावरण था, लेकिन तभी श्रद्धा और आस्था के इस समुद्र में दर्द और चीख-पुकार की लहरें उठने लगीं। एक छोटी-सी भगदड़ ने देखते ही देखते कई परिवारों को बिछड़ने का दर्द दे दिया।

माँ के हाथ से छूटा बच्चा, पिता की गोद से गुम हुआ बेटा

“माँ… माँ… मुझे छोड़कर मत जाओ!” पाँच साल का रोहन रोते-रोते लोगों की भीड़ में इधर-उधर दौड़ रहा था। उसकी आँखों में डर था, चेहरे पर आंसू, और आवाज में ऐसा कंपन था कि किसी का भी दिल पिघल जाए। भगदड़ के दौरान माँ का हाथ छूट गया था और अब वह सहमा हुआ, अपने चारों ओर अजनबियों की भीड़ देख रहा था।

संगम किनारे ऐसा ही दृश्य हर तरफ देखने को मिल रहा था। कोई माँ अपने बेटे को ढूँढ रही थी, कोई भाई अपनी बहन का नाम पुकार रहा था, तो कोई बुजुर्ग माता-पिता की चिंता में इधर-उधर दौड़ रहे थे।

कैसे हुई भगदड़?

सुबह से ही संगम पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी थी। गंगा तट पर एक विशेष पूजा का आयोजन किया गया था, जिसमें शामिल होने के लिए हजारों लोग एक साथ आगे बढ़ने लगे। तभी, किसी ने जोर से “साँप… साँप!” चिल्लाया, और कुछ लोगों के धक्का-मुक्की के कारण संतुलन बिगड़ गया। एक के गिरने से दूसरे गिरे और देखते ही देखते भगदड़ मच गई।

कई लोगों ने जान बचाने के लिए इधर-उधर भागना शुरू कर दिया। इसी बीच, छोटे बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएँ भीड़ के दबाव में अलग हो गए। रोने-चीखने की आवाजें गूंज उठीं। कुछ लोग ज़मीन पर गिर गए, तो कुछ अपनों से बिछड़कर बेसहारा इधर-उधर भटकने लगे।

“माँ, मैं यहाँ हूँ!” लेकिन माँ नहीं थी…

10 साल का अमित अपने पापा का हाथ पकड़कर चल रहा था, लेकिन भगदड़ के दौरान किसी ने उन्हें धक्का दे दिया और उसका हाथ छूट गया। अब वह रोते हुए, हर महिला के पास जाकर पूछ रहा था, “माँ, आप मेरी माँ हो?” लेकिन उसे अपनी माँ कहीं नहीं मिली।

इसी तरह, 70 साल के रामलाल जी भी अपनी पत्नी को खोजते फिर रहे थे। वह कई बार गिर पड़े, उनके घुटनों से खून निकल आया, लेकिन उनका दर्द इस बात का था कि वह अपनी पत्नी को खो चुके थे।

राहत बचाव कार्य शुरू हुआ, लेकिन देर हो चुकी थी…

जब पुलिस और स्वयंसेवकों को सूचना मिली, तब तक भगदड़ में कई लोग घायल हो चुके थे। कई बच्चे अकेले, डरे-सहमे एक किनारे बैठे थे। पुलिस ने लाउडस्पीकर से अनाउंसमेंट करना शुरू किया:

“जो भी अपने परिवार से बिछड़ गए हैं, वे सूचना केंद्र पर आकर जानकारी दें।”

संगम तट पर बिछड़े परिवारों का दर्द

हर तरफ यही मंजर था – कोई माँ अपने बच्चे को खोज रही थी, कोई पति अपनी पत्नी को। पुलिस और स्वयंसेवकों की मदद से कुछ परिवार फिर से मिल गए, लेकिन कुछ अब भी अपनों के इंतज़ार में रो रहे थे।

“क्या मेरा बच्चा मिलेगा?”

एक महिला, जो सिर पर आँचल डाले, रोते हुए बैठी थी, उसने एक स्वयंसेवक से कहा, “भैया, मेरा बेटा पाँच साल का है, लाल रंग की जैकेट पहने है… क्या वह कहीं मिला?”

स्वयंसेवक ने उसे दिलासा देने की कोशिश की, लेकिन उसकी आँखों में भी निराशा झलक रही थी।

आस्था का पर्व, लेकिन सुरक्षा का सवाल?

यह पहली बार नहीं था जब संगम किनारे इस तरह की भगदड़ हुई हो। हर साल मेले में लाखों लोग आते हैं, लेकिन भीड़ नियंत्रण के पर्याप्त इंतज़ाम न होने के कारण ऐसे हादसे होते रहते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे?

सांकेतिक तस्वीर

संगम, जो मोक्ष देने वाली गंगा और यमुना का संगम स्थल है, आज असंख्य चीखों का गवाह बना। हर साल यहाँ श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने आते हैं, लेकिन किसी के लिए यह आस्था का संगम होता है, तो किसी के लिए बिछड़ने का मंजर।

जो परिवार मिल गए, उनके लिए यह एक नया जीवन था। लेकिन जो अपनों को नहीं ढूँढ पाए, उनके लिए यह संगम जीवनभर का इंतजार बनकर रह गया…

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