अब्दुल मोबीन सिद्दीकी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में एआरटीओ आरसी भारती ने जो किया, वह न केवल उनके मानवीय संवेदनाओं को दर्शाता है, बल्कि समाज को यह भी याद दिलाता है कि इस दुनिया में अब भी इंसानियत जिंदा है। उनकी दरियादिली और दयालुता ने एक गरीब परिवार की आर्थिक कठिनाई को दूर करने के साथ-साथ समाज को नई प्रेरणा भी दी है।
गरीब ऑटो चालक पर भारी पड़ा चालान
घटना महाराजगंज जिले की है, जहां सिंहपुर ताल्ही गांव का विजय कुमार अपने पिता राजकुमार के ऑटो का भारी भरकम ₹24,500 का चालान भरने के लिए एआरटीओ कार्यालय पहुंचा। विजय के पिता राजकुमार पेशे से ऑटो चालक हैं और उनकी दृष्टि भी कमजोर है। चालान की भारी राशि भरने के लिए मजबूर विजय ने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण एक ऐसा कदम उठाया, जिसने सबको झकझोर कर रख दिया।
मां का मंगलसूत्र बेच दिया, फिर भी पैसे कम पड़े
राजकुमार के पास चालान भरने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। ऐसे में उनके बेटे विजय ने अपनी मां का मंगलसूत्र बेच दिया, जिससे वह सिर्फ ₹13,000 ही जुटा सका। लेकिन यह राशि भी पूरी रकम के लिए नाकाफी थी। जब वह अधूरी रकम लेकर एआरटीओ कार्यालय पहुंचा तो उसकी परेशानी और बेबसी साफ झलक रही थी।
एआरटीओ की संवेदनशीलता ने बदली कहानी
जब एआरटीओ आरसी भारती ने विजय को परेशान देखा तो उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और उसकी परेशानी का कारण पूछा। विजय ने अपनी पूरी स्थिति बताई, जिससे आरसी भारती का दिल पिघल गया। उन्होंने न केवल विजय की बात ध्यान से सुनी, बल्कि उसकी मजबूरी को भी समझा।
एआरटीओ ने खुद भरी चालान की पूरी राशि
इस गरीब परिवार की विपदा को महसूस करते हुए आरसी भारती ने अपनी सैलरी से खुद चालान की पूरी राशि जमा कर दी। इतना ही नहीं, उन्होंने ऑटो का इंश्योरेंस भी करवाया, जिससे आगे किसी भी परेशानी से बचा जा सके। यह देखकर वहां मौजूद अन्य कर्मचारी और लोग भी भावुक हो गए और सभी ने एआरटीओ की भूरी-भूरी प्रशंसा की।
विजय की पढ़ाई का खर्च भी उठाने का वादा
विजय कुमार ने बताया कि वह हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं कर सका था, क्योंकि फेल होने के बाद आर्थिक स्थिति ने उसे मजदूरी करने पर मजबूर कर दिया। जब यह बात आरसी भारती को पता चली तो उन्होंने विजय की पढ़ाई का खर्च भी उठाने की पेशकश की।
एआरटीओ बोले— यह सिर्फ इंसानियत का तकाजा था
जब मीडिया ने इस अनोखी पहल पर आरसी भारती से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने ज्यादा कुछ न कहते हुए केवल इतना कहा—
“मैंने उसकी पीड़ा सुनी और मुझे यह वाजिब लगी। इसलिए मैंने चालान की राशि खुद भर दी।”
समाज को मिला नई उम्मीद का संदेश
आज जब चारों ओर स्वार्थ और संवेदनहीनता का माहौल बना हुआ है, ऐसे में एआरटीओ आरसी भारती जैसे लोग एक मिसाल पेश कर रहे हैं। उनकी यह दरियादिली न केवल विजय और उसके परिवार के लिए राहत लेकर आई, बल्कि पूरे समाज को यह याद दिलाने के लिए भी काफी है कि इंसानियत अभी भी जिंदा है।