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6 January 2025 12:43 am

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जहाँ प्रेम भी आपसे बात करती है, उस अमर-दीप से रोशन भूरागढ़ की पौराणिकता को आज भी ताजा करता है, “नटवली का मेला”

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संतोष कुमार सोनी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थित भूरागढ़ का किला, इतिहास और प्रेम की अनोखी कहानियों को समेटे हुए, हर साल मकर संक्रांति के दिन एक विशेष मेले का आयोजन करता है। इसे स्थानीय लोग ‘नटवली का मेला’ कहते हैं। यह मेला न केवल क्षेत्रीय संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि यह प्रेम, विश्वास और बलिदान की एक अमर गाथा भी सुनाता है।

प्रेम कहानी जो अमर हो गई

करीब छह सौ साल पहले की बात है। भूरागढ़ दुर्ग के किलेदार की बेटी का दिल एक नट पर आ गया। यह प्रेम केवल एक आकर्षण नहीं था, बल्कि दोनों के दिलों में एक-दूसरे के लिए गहरी मोहब्बत थी। जब किलेदार को इस प्रेम संबंध के बारे में पता चला, तो पिता का गर्व और बेटी का विद्रोह आमने-सामने आ खड़े हुए।

पिता ने अपनी बेटी की जिद को तो स्वीकार कर लिया, लेकिन एक शर्त रख दी—नट को सूत की रस्सी पर चलते हुए केन नदी पार करनी होगी। यह शर्त जितनी कठिन थी, उतनी ही नट के प्रेम के प्रति उसकी निष्ठा और साहस की परीक्षा थी।

मकर संक्रांति का वह दिन

मकर संक्रांति के पावन दिन, जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं, नट ने अपनी प्रेमिका से किए वादे को निभाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने का मन बना लिया। उसने रस्सी बांधी और अपने साहस के साथ केन नदी को पार करना शुरू किया। हर कदम के साथ उसकी आँखों में अपनी प्रेमिका का चेहरा और दिल में अपने प्रेम का विश्वास था।

परंतु जब नट नदी के बीचोंबीच पहुँचा, तो किलेदार ने अपने सैनिकों को आदेश देकर रस्सी कटवा दी। नट नदी में गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई। उसकी प्रेमिका का दिल टूट गया, लेकिन उनका प्रेम इस दुनिया में अमर हो गया।

प्रेम के प्रतीक का उदय

नट के बलिदान की स्मृति में भूरागढ़ किले के पास एक मंदिर बनाया गया। यह स्थान प्रेम, बलिदान और विश्वास का प्रतीक बन गया। हर साल मकर संक्रांति के दिन यहाँ ‘नटवली का मेला’ आयोजित होता है। इस मेले में प्रेमी जोड़े आते हैं, किले की दीवारों पर अपने नाम लिखते हैं और एक-दूसरे के साथ जीवन भर साथ निभाने की मन्नत मांगते हैं।

भूरागढ़ का मेला: प्रेमियों का उत्सव

मेले के दिन भूरागढ़ किला जीवंत हो उठता है। पारंपरिक गीतों की धुनें और प्रेम की कहानियाँ यहाँ की फिजाओं में गूँजती हैं। ऐसा लगता है मानो किला अपनी पुरानी कहानियों को दोबारा जी रहा हो। लोग यहाँ सिर्फ मन्नत मांगने नहीं आते, बल्कि अपने पूर्वजों की इस प्रेम कथा को श्रद्धांजलि देने भी आते हैं।

संस्कृति का अमर दीप

भूरागढ़ का यह मेला हमें यह सिखाता है कि प्रेम केवल दो दिलों का मिलन नहीं, बल्कि साहस, विश्वास और त्याग का प्रतीक है। यह किला और इसका मेला भारतीय संस्कृति में प्रेम के महत्व और उसके संघर्ष को याद दिलाने वाला एक जीवंत स्मारक है।

इस किले के हर पत्थर में प्रेम की कहानी छुपी है, हर कोने में नट और उसकी प्रेमिका की यादें बसी हैं। और यह मेला, जो मकर संक्रांति के दिन आयोजित होता है, न केवल एक परंपरा है, बल्कि उस प्रेम कहानी को पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रखने का एक प्रयास भी है।

भूरागढ़ किला आज भी खड़ा है, उन सभी प्रेम कहानियों के लिए, जो साहस और बलिदान के पथ पर चलने को तैयार हैं।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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