अनिल अनूप
तेरे आगमन के अवसर पर मैं, एक चरणवादी साहित्यकार, साहित्य आचार संहिता को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूं। इस बार मेरे संकल्प ना केवल मेरी लेखनी के लिए हैं, बल्कि साहित्यिक समाज की उस मूक हंसी को भी समर्पित हैं, जो हर बार मेरी मासूमियत पर खिलखिला उठती है।
संकल्प-1: मौलिक लेखन का व्रत
मैं संकल्प लेता हूं कि नए साल में जो भी लिखूंगा, मौलिक होगा। किसी और की रचना को अपना नाम देकर प्रकाशित करने का अपराध नहीं करूंगा। हां, मुझे पता है कि मेरे इस संकल्प पर मेरे मित्र हंसेंगे। कहेंगे, “भाई! साहित्यिक चोरी तो परंपरा है, इसे क्यों तोड़ रहे हो?” लेकिन मैं ठान चुका हूं। मेरे लिए लेखन केवल शब्दों का जाल नहीं, आत्मा का प्रकटीकरण है।
संकल्प-2: एक रचना, एक पत्रिका
नए साल में मेरी प्रत्येक रचना केवल एक ही पत्रिका में जाएगी। यह कठिन है, क्योंकि साहित्यकारों के लिए अपनी रचनाओं को दस जगह भेजना एक अनकही परंपरा बन चुकी है। लेकिन इस बार, मैं इस आदत पर नियंत्रण रखूंगा। हां, संपादक शायद हंसेंगे, लेकिन मुझे उनकी हंसी की परवाह नहीं। मेरी रचना मेरी पहचान होगी, और मैं उसे कहीं भी बिखेरने का विचार त्याग रहा हूं।
संकल्प-3: गोष्ठी में अध्यक्षता का मोह छोड़ना
इस बार मैं गोष्ठी का अध्यक्ष बनने के लिए एड़ी-चोटी का जोर नहीं लगाऊंगा। मंच पर माइक संभालकर खुद को सबसे बड़ा साहित्यकार सिद्ध करने की आदत छोड़कर अपनी ऊर्जा लेखन पर लगाऊंगा। यह संकल्प कठिन है, क्योंकि अध्यक्षता का सुख तो हर साहित्यकार की कमजोरी है। पर मैंने ठान लिया है।
संकल्प-4: मठभाइयों की टांग खींचने से तौबा
मैं थक चुका हूं दूसरों की टांग खींचने से। जितनी ऊर्जा मैंने दूसरों को गिराने में लगाई, उतनी अगर अपने लेखन पर लगाता, तो शायद पद्मश्री मेरे नाम होता। इस साल, मैं इस उथली प्रतियोगिता से बाहर रहूंगा। हां, मेरे मठभाई इस पर हंसेंगे, मेरी मंशा को तोड़ने की कोशिश करेंगे, लेकिन अब मुझे इन बातों का असर नहीं होता।
संकल्प-5: पुरस्कारों के पीछे भागना बंद
मैंने देख लिया है कि पुरस्कार लेखन की गुणवत्ता से नहीं, पुरस्कार देने वालों के पीछे भागने से मिलते हैं। लेकिन इस भागदौड़ ने मेरी टांगों को थका दिया है। अब मैं पुरस्कारों के पीछे नहीं भागूंगा। अगर मेरा लेखन सच्चा है, तो पुरस्कार अपने आप मेरे पास आएंगे।
नए साल के प्रति मेरी आकांक्षा
हे नए साल, मेरे इन संकल्पों को साक्षी मानकर, मैं यह भी संकल्प करता हूं कि मैं अपनी आलोचनाओं को मुस्कुराकर स्वीकार करूंगा। मुझे हंसी और ताने आदत सी लग चुके हैं, लेकिन मैं जानता हूं कि यही आलोचनाएं मेरी प्रेरणा बनेंगी।
नए साल में मेरी लेखनी समाज का आईना बने, मेरी रचनाएं पाठकों के दिल में जगह बनाएं और मेरी सादगी मेरे शब्दों में झलके। साहित्य मेरा धर्म है, और मैं इसे अपनी आत्मा की सच्चाई के साथ निभाऊंगा।
हे नए साल! तेरा स्वागत है, तुझसे यह आशा है कि तू मेरे इन संकल्पों को मेरी आत्मा का हिस्सा बना दे।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."
1 thought on “हे नए साल! अपने आगमन पर “चरणवादी साहित्यकार” के पांच संकल्पों को पूरा करना”
नव वर्ष के उपलक्ष में आप द्वारा लिए गए पंच महा व्रत केवल आप तक की सीमित न रहकर समस्त कलम धर्मियों के लिए बहुत बड़ा संदेश है। आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आपका यह संदेश साहित्य जगत में बहुत लंबी दूरी तय करेगा।