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29 December 2024 1:07 am

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15 साल की लडकी माँ को रोज नींद की गोलियां खिलाकर करती थी ये काम जिसे सुनकर सब लोग हैं हैरान

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ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट

लखनऊ के कृष्णनगर क्षेत्र से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां एक 15 वर्षीय किशोरी ने अपनी मां को लगातार तीन महीने तक खाने में नींद की गोलियां मिलाकर दीं। इस साजिश का उद्देश्य मां को बेहोश रखकर अपने दोस्त से फोन पर बात करना और कभी-कभी उससे मिलने के लिए घर से निकल जाना था।

नींद की गोलियां और जहर की साजिश

किशोरी ने कबूल किया कि वह रोजाना अपनी मां के खाने में 3-4 नींद की गोलियां मिला देती थी। जांच के दौरान यह भी खुलासा हुआ कि उसके पास नींद की गोलियों के साथ-साथ जहर की एक शीशी भी मिली। यह सभी चीजें उसे उसके दोस्त ने लाकर दी थीं।

मामले की गंभीरता तब बढ़ी, जब लगातार नींद की दवाओं के असर से मां की तबीयत बिगड़ने लगी। परिवार वालों को शक हुआ और मां को अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें लंबे समय से नींद की दवाओं की भारी डोज दी जा रही थी। जब घरवालों ने सख्ती से पूछताछ की तो किशोरी ने सच्चाई उगल दी।

फोन छीनने पर बनाई साजिश

मामले की शुरुआत तब हुई, जब किशोरी के स्कूल आते-जाते समय अपने दोस्त से फोन पर बातचीत करने की आदत पर मां ने रोक लगाई। मां ने उसका फोन छीन लिया, जिससे वह गुस्से में आ गई। इस वजह से उसने मां से कई बार झगड़ा और मारपीट भी की। जब मां ने उसे फोन वापस नहीं दिया, तो उसने अपनी मां को रास्ते से हटाने का खतरनाक तरीका ढूंढ निकाला।

पहले मारने की योजना, फिर बदला मन

शुरुआत में लड़की ने मां को जहर देकर मारने की योजना बनाई थी, लेकिन बाद में उसने अपनी योजना बदल दी। जहर देने के बजाय उसने मां को नींद की गोलियां देना शुरू कर दिया, ताकि वह सोई रहें और वह अपनी मर्जी से काम कर सके।

परिवार ने किया शेल्टर होम भेजने का फैसला

जब परिवार को इस साजिश की पूरी सच्चाई पता चली, तो उन्होंने लड़की को घर पर रखने से इनकार कर दिया। लोकबंध अस्पताल वन स्टॉप सेंटर की मैनेजर अर्चना सिंह ने बताया कि परिवार की काउंसिलिंग कराई गई, लेकिन वे लड़की को रखने के लिए तैयार नहीं हुए। अंततः उसे शेल्टर होम में भेज दिया गया।

यह घटना समाज के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। माता-पिता और बच्चों के बीच संवादहीनता और तकनीकी युग में बच्चों के व्यवहार पर नियंत्रण की कमी ऐसी गंभीर घटनाओं को जन्म दे सकती है। इस मामले ने यह भी दिखाया कि किशोरावस्था में बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

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