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19 December 2024 2:25 pm

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संविधान की बहस, मुद्दे छूटे, राजनीति हावी ; मोदी के सामने एक और मौका गंवा दिया राहुल ने

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

संविधान को स्वीकार करने के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर संसद में विशेष चर्चा का आयोजन किया गया। इस चर्चा ने भारतीय राजनीति के मौजूदा परिदृश्य को स्पष्ट कर दिया, जहां सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने अपने-अपने एजेंडे को सामने रखा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बहस के दौरान करीब 1 घंटा 50 मिनट लंबा भाषण दिया। उन्होंने कांग्रेस पार्टी और गांधी-नेहरू परिवार के लंबे शासन को घेरते हुए उनके कार्यकाल की आलोचना की। हालांकि, उन्होंने कांग्रेस का नाम सीधे नहीं लिया, लेकिन उनके इशारे स्पष्ट थे। पीएम मोदी ने इंदिरा गांधी द्वारा लागू किए गए आपातकाल का उल्लेख करते हुए इसे संविधान का “काला अध्याय” बताया। उन्होंने 55 वर्षों के शासन के दौरान संविधान के साथ किए गए संशोधनों और निर्णयों की भी आलोचना की।

बीजेपी सांसदों ने पीएम मोदी के भाषण की तारीफ करते हुए इसे “ऐतिहासिक” बताया। अभिनेता और सांसद रवि किशन ने कहा कि विपक्ष को प्रधानमंत्री से सीख लेनी चाहिए कि भाषण कैसे दिया जाता है। वहीं, गिरिराज सिंह और मनोज तिवारी ने कांग्रेस पर तीखे हमले किए, जिसमें कांग्रेस पर संविधान की मर्यादा का उल्लंघन करने और ग़रीबी हटाने में विफल रहने के आरोप लगाए गए।

वहीं, विपक्ष ने पीएम मोदी के भाषण को न केवल आलोचनात्मक दृष्टि से देखा, बल्कि इसे “राजनीतिक प्रहार” करार दिया। विपक्षी दलों के नेताओं ने कहा कि संविधान पर गंभीर चर्चा के बजाय, प्रधानमंत्री ने राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में समय बिताया।

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री के भाषण की तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा कि उनका भाषण उबाऊ और पुनरावृत्त था, जिसमें कोई नई बात नहीं कही गई। प्रियंका गांधी ने तंज कसते हुए कहा कि ऐसा लग रहा था जैसे “स्कूल के मैथ के डबल पीरियड” में बैठी हुई हूं। उन्होंने प्रधानमंत्री के 11 संकल्पों को खोखला बताया और भ्रष्टाचार पर “ज़ीरो टॉलरेंस” की बात पर अदानी समूह का मुद्दा उठाया।

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सावरकर का जिक्र करते हुए बीजेपी की विचारधारा पर सवाल उठाए। उन्होंने सावरकर के संविधान के प्रति विचारों की आलोचना की और कहा कि बीजेपी उस संविधान की दुहाई देती है जिसमें उसके नेताओं का विश्वास नहीं है। हालांकि, कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी ने एक बड़ा मौका गंवा दिया। वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने कहा कि राहुल गांधी को संविधान निर्माण में कांग्रेस के योगदान पर जोर देना चाहिए था। इसके अलावा, जातिगत जनगणना, समान नागरिक संहिता और चुनाव सुधार जैसे मुद्दों पर सवाल खड़े करने का अवसर भी उन्होंने छोड़ दिया।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री के भाषण को “जुमलों का संकल्प” बताया। उन्होंने राम मनोहर लोहिया की विचारधारा का उल्लेख किया, लेकिन समाजवाद पर गंभीर चर्चा नहीं की।

राजनीतिक विश्लेषकों ने इस चर्चा पर निराशा व्यक्त की। उनका कहना था कि संविधान पर गहराई से बात करने के बजाय दोनों पक्षों ने राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की। वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा ने कहा कि यह बहस “पक्षपातपूर्ण” थी। बीजेपी ने नेहरू-गांधी परिवार पर हमला किया जबकि असल मुद्दों को नज़रअंदाज़ किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को भविष्य की योजनाओं और संविधान के विकास पर बात करनी चाहिए थी।

रशीद किदवई ने भी कांग्रेस की रणनीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसा लगा मानो कांग्रेस का मकसद केवल सरकार को यह याद दिलाना था कि संविधान सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने बहस को सार्थक बनाने का मौका खो दिया।

इस बहस के दौरान न केवल सत्ता पक्ष और विपक्ष की रणनीतियां स्पष्ट हुईं, बल्कि यह भी जाहिर हुआ कि संसद में संविधान जैसे गंभीर मुद्दे पर भी गहरी और ईमानदार चर्चा का अभाव था।

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