कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
लखनऊ में ट्रैफिक निदेशालय की यूजर आईडी और पासवर्ड का दुरुपयोग कर एक निलंबित सिपाही ने 116 गाड़ियों के चालान डिलीट कर दिए। इस फर्जीवाड़े का पर्दाफाश तब हुआ, जब उन्नाव में चालान की गई एक गाड़ी को छुड़ाने का मामला सामने आया। घटना के बाद ट्रैफिक लाइन के आईटी सेल प्रभारी आनंद कुमार ने सुशांत गोल्फ सिटी थाने में आरोपित सिपाही अजय शर्मा के खिलाफ धोखाधड़ी और आईटी ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया है। मामले की जांच शुरू हो गई है, और इस गड़बड़ी में अन्य पुलिसकर्मियों की भी संलिप्तता की संभावना जताई जा रही है।
फर्जीवाड़े का खुलासा कैसे हुआ?
25 अक्टूबर को उन्नाव में तैनात सिपाही मुकेश राजपूत ने लखनऊ ट्रैफिक लाइन के कार्यालय में कार्यरत आदित्य दुबे को सूचित किया कि 24 अक्टूबर को गाड़ी नंबर यूपी 35 क्यू 7005 का चालान ट्रैफिक निदेशालय की आईडी uptp@nic.in से गलत तरीके से डिलीट कर दिया गया है। इस सूचना ने ट्रैफिक विभाग के अधिकारियों के होश उड़ा दिए।
जांच में पता चला कि चालान डिलीट करने की प्रक्रिया केवल उच्चाधिकारियों की अनुमति से ही की जा सकती है। ट्रैफिक निदेशालय ने एनआईसी से मामले की जानकारी मांगी, तो खुलासा हुआ कि इस आईडी से कुल 116 चालान डिलीट किए जा चुके हैं। इनमें से कुछ चालान को कोर्ट से रिहा करने की अनुमति भी दी गई थी।
निलंबित सिपाही ने कैसे किया फर्जीवाड़ा?
जांच में पता चला कि निलंबित सिपाही अजय शर्मा, जो पहले आईटी सेल में तैनात था, ने ट्रैफिक निदेशालय की यूजर आईडी और पासवर्ड हासिल कर चालान डिलीट करने का काम किया। उसने अधिकारियों की बिना अनुमति यह कार्य किया।
जांच में यह भी सामने आया कि उसने यह फर्जीवाड़ा सुनियोजित तरीके से किया और लाखों रुपये का गबन किया। पुलिस को शक है कि इस गड़बड़ी में अजय शर्मा का कोई करीबी भी शामिल हो सकता है।
सिपाही फरार, मोबाइल फोन भी बंद
जब ट्रैफिक लाइन के अधिकारियों ने अजय शर्मा से संपर्क करने की कोशिश की, तो उसने शुरुआत में आरोपों को झूठा बताया। लेकिन कुछ समय बाद उसने अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया और फरार हो गया। पुलिस की टीमें उसकी तलाश कर रही हैं और उसके कॉल डिटेल की जांच करने की तैयारी में हैं।
एनआईसी पासवर्ड सुरक्षा पर सवाल
एनआईसी के एक अधिकारी ने बताया कि विभागों को निर्देश है कि तीन माह में पासवर्ड बदलना अनिवार्य है। पासवर्ड अल्फाबेट, न्यूमरिक और सिंबॉल का उपयोग कर गोपनीय रखा जाना चाहिए। सामान्यतः किसी विभाग में केवल एक या दो लोगों को ही पासवर्ड की जानकारी होती है। ऐसे में यह फर्जीवाड़ा किसी आंतरिक मिलीभगत का नतीजा हो सकता है।
आगे की कार्रवाई
गोसाईंगंज थाना प्रभारी इंस्पेक्टर अंजनी कुमार मिश्रा का कहना है कि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि 116 चालानों की कुल कीमत कितनी थी। जांच पूरी होने के बाद ही सही जानकारी मिल सकेगी। पुलिस इस मामले में गहराई से पड़ताल कर रही है और अन्य संबंधित लोगों की भूमिका की भी जांच कर रही है।
यह मामला न केवल पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि ट्रैफिक विभाग के डिजिटल सिस्टम की सुरक्षा पर भी गंभीर प्रश्न उठाता है।