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18 January 2025 7:17 am

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बेटियों की सुरक्षा और शिक्षा पर मंडराता खतरा : एक गंभीर सामाजिक चुनौती

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मोहन द्विवेदी की रिपोर्ट

दिल्ली के शाहदरा के आनंद विहार इलाके में नवंबर 2024 में एक स्कूली छात्रा के साथ कथित यौन उत्पीड़न की घटना ने एक बार फिर हमारे समाज के समक्ष बेटियों की सुरक्षा का सवाल खड़ा कर दिया है। यह घटना अकेली नहीं है, बल्कि पूरे देश में स्कूली छात्राओं और महिलाओं के शोषण की खबरें आए दिन सुनाई देती हैं। दुखद है कि इन मामलों में अधिकतर आरोपी वही लोग होते हैं, जो शिक्षा संस्थानों से जुड़े होते हैं। यह सिर्फ अपराध नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक और नैतिक ढांचे की विफलता का प्रमाण है।

बेटियों की शिक्षा पर मंडराता खतरा

देश के छोटे-छोटे गांवों से लेकर बड़े शहरों और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों तक यौन शोषण की घटनाएं सामने आ रही हैं। ये घटनाएं न केवल लड़कियों के आत्मसम्मान और सुरक्षा को ठेस पहुंचाती हैं, बल्कि उनकी शिक्षा को भी प्रभावित करती हैं। अक्सर लड़कियां या तो स्कूल छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं, या उनके माता-पिता उन्हें पढ़ाई से दूर कर देते हैं। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में पांच में से एक लड़की निम्न-माध्यमिक शिक्षा तक नहीं पहुंच पाती। भारत में भी स्थिति चिंताजनक है, जहां प्राइमरी शिक्षा पूरी करने के बाद लगभग 65% लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं।

शिक्षा मंत्रालय की “ग्रामीण भारत में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति” रिपोर्ट के अनुसार, लड़कियों के स्कूल छोड़ने के पीछे यौन उत्पीड़न एक बड़ा कारण है। इसके अलावा, सामाजिक कुरीतियां, लैंगिक भेदभाव, और परिवार की आर्थिक स्थिति भी उनकी पढ़ाई में बाधा बनती हैं।

पॉक्सो कानून: प्रभावी या अप्रभावी?

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने के लिए 2012 में पॉक्सो (POCSO) कानून बनाया गया था। इस कानून के तहत कड़े प्रावधान हैं, लेकिन अपराधों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट बताती है कि 2016 से 2020 के बीच बाल यौन शोषण के मामलों में 31% की वृद्धि हुई है। 2020 में 47,000 से अधिक मामले दर्ज हुए, जिनमें अधिकांश पीड़ित लड़कियां थीं।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह संख्या भी वास्तविकता का केवल एक छोटा हिस्सा है। कई मामले तो पुलिस तक पहुंचते ही नहीं, क्योंकि परिवार बदनामी के डर से उन्हें दबा देते हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी यौन शोषण के नए माध्यम बन गए हैं।

लड़कियों की सुरक्षा पर सवाल

गांवों के स्कूलों में “गुड टच-बैड टच” जैसी जागरूकता का अभाव है। सुरक्षा के इंतजाम न के बराबर हैं। जब तक कोई बड़ी घटना नहीं होती, प्रशासन और समाज इस ओर ध्यान नहीं देता। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई बार शोषण की घटनाएं “इज्जत” के नाम पर दबा दी जाती हैं।

क्या करना होगा?

1. सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम:

स्कूलों और कॉलेजों में लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सीसीटीवी कैमरों, महिला सुरक्षाकर्मियों, और हेल्पलाइन नंबरों की व्यवस्था होनी चाहिए।

2. सख्त कानून और उनका क्रियान्वयन:

पॉक्सो कानून को और प्रभावी बनाने के साथ ही, अपराधियों को सख्त सजा दी जानी चाहिए। त्वरित न्याय प्रणाली सुनिश्चित करनी होगी।

3. जागरूकता अभियान:

स्कूलों में बच्चों को यौन शोषण से बचने की जानकारी देने के लिए विशेष सत्र आयोजित करने चाहिए। “गुड टच-बैड टच” और आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए।

4. सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव:

समाज को लड़कियों की शिक्षा और सुरक्षा को प्राथमिकता देनी होगी। माता-पिता को विश्वास दिलाना होगा कि उनकी बेटियां स्कूल में सुरक्षित हैं।

हम चाहे चांद पर पहुंच गए हों, लेकिन जब तक हमारी बेटियां स्कूल और समाज में सुरक्षित नहीं हैं, तब तक हमारा विकास अधूरा है। यह केवल सरकार या प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज के हर वर्ग को मिलकर बेटियों की सुरक्षा और शिक्षा के लिए काम करना होगा। आखिरकार, एक सशक्त और सुरक्षित बेटी ही एक सशक्त समाज की नींव रख सकती है।

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