कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के एटा जिले में योगी सरकार ने बड़ी कार्रवाई करते हुए कलक्ट्रेट में 30 वर्ष पहले हुई फर्जी नियुक्तियों के मामले में 24 लिपिकों को बर्खास्त कर दिया है। यह नियुक्तियां 1993 और 1995 के बीच बिना किसी आधिकारिक आदेश के की गई थीं। इनमें से 13 कर्मचारी एटा जिले के थे, जबकि 11 कासगंज जिले के, जो उस समय एटा का हिस्सा था। इन नियुक्तियों में फर्जीवाड़े का खुलासा होने के बाद सेवानिवृत्त हो चुके 15 लिपिकों समेत सभी पर सैलरी की रिकवरी के आदेश दिए गए हैं।
कैसे हुआ फर्जीवाड़ा?
1995 में उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद से एटा के तत्कालीन जिलाधिकारी (डीएम) मेजर आर.के. दुबे को 24 लिपिकों की नियुक्ति का फर्जी पत्र मिला। इस आधार पर डीएम ने इन लोगों को नौकरी दे दी। चार वर्षों तक यह मामला चला, लेकिन 1999 में किसी ने शिकायत की कि यह आदेश फर्जी था।
जांच में पता चला कि राजस्व परिषद ने ऐसा कोई आदेश जारी ही नहीं किया था। इसके बाद डीएम को जांच के निर्देश दिए गए, लेकिन यह मामला लंबे समय तक दबा रहा।
2019 में फिर खुला मामला
यह मामला 2019 में फिर उठाया गया, जब अलीगढ़ मंडलायुक्त को शिकायत दी गई। तत्कालीन डीएम सुखलाल भारती ने जांच के आदेश दिए। इस दौरान नियुक्ति से जुड़ी फाइलें गायब पाई गईं। अधिकारियों ने कर्मचारियों से पूछताछ की, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
जांच और कार्रवाई
जांच में खुलासा हुआ कि नियुक्ति पत्र फर्जी था और इसे गलत तरीके से प्रयोग कर इन कर्मचारियों को तैनात किया गया।
वर्तमान में कार्यरत चार कर्मचारियों को तत्काल सेवा से हटा दिया गया।
इनसे उनकी अब तक की सैलरी और अन्य भुगतानों की रिकवरी की जाएगी।
15 सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन रोकने और उनसे भी रिकवरी के आदेश जारी हुए हैं।
इसके अलावा दो संदिग्ध कर्मचारियों के खिलाफ पेंशन रोकने की कार्रवाई शुरू की गई है।
फर्जी नियुक्तियों का विवरण
1993 और 1995 में कुल 30 सीजनल सहायक तैनात किए गए थे। इनमें से एक ने नौकरी ज्वाइन नहीं की। बाकी 29 कर्मचारियों ने काम शुरू कर दिया। जिनमें कई सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
जिनके खिलाफ कार्रवाई हुई
जिन कर्मचारियों पर कार्रवाई हुई, उनके नामों में महेश यादव, नरेंद्र सिंह यादव, विनीत कुमार (कार्यरत), कैलाश नारायण, सर्वेश कुमार शर्मा, अशोक कुमार (सेवानिवृत्त) और अन्य शामिल हैं।
सरकार का सख्त रुख
इस मामले में एसआईटी ने जांच की और शासन की प्रमुख सचिव की अध्यक्षता में बैठक के बाद इन नियुक्तियों को नियम विरुद्ध पाया गया। कार्रवाई के तहत डीएम कासगंज को कासगंज के 11 कर्मचारियों के खिलाफ कदम उठाने के निर्देश दिए गए हैं।
आगे की प्रक्रिया
सरकार ने साफ कर दिया है कि किसी भी प्रकार का फर्जीवाड़ा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही, सार्वजनिक संपत्ति या सरकारी धन के दुरुपयोग करने वालों से हर हाल में वसूली की जाएगी।
यह कार्रवाई प्रदेश सरकार की पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रतिबद्धता को दर्शाती है। 30 वर्षों बाद हुई यह कार्रवाई उन लोगों के लिए कड़ा संदेश है, जो सरकारी तंत्र का गलत उपयोग कर लाभ उठाने की कोशिश करते हैं।