कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश में आधुनिक शिक्षा देने के लिए मदरसों में नियुक्त शिक्षकों को कई सालों से मानदेय नहीं मिला है। यह शिक्षण योजना 1993-94 में शुरू हुई थी, जिसमें 60% ख़र्च केंद्र सरकार और 40% राज्य सरकार को वहन करना था। परंतु, केंद्र सरकार ने 2017 से और राज्य सरकार ने 2022-23 से इन शिक्षकों का मानदेय देना बंद कर दिया है। इस कारण करीब 22,000 शिक्षक, जो अंग्रेज़ी, गणित, विज्ञान और हिन्दी जैसे विषय पढ़ाने के लिए नियुक्त किए गए थे, आज संकट में हैं।
शिक्षकों की स्थिति
राज्य में लगभग 7442 मदरसों में आधुनिक शिक्षा देने के लिए ये शिक्षक नियुक्त किए गए थे। अब मानदेय न मिलने के कारण इनमें से कई शिक्षकों ने पढ़ाना छोड़कर दूसरा रोज़गार अपना लिया है। कुछ मदरसों ने चंदा इकट्ठा करके शिक्षकों को मामूली भुगतान जारी रखा है, लेकिन यह राशि इतनी कम है कि इसे स्वीकार करना भी मुश्किल है। उदाहरण के लिए, गोंडा ज़िले के वीरपुर स्थित खुर्शीदुल इस्लामिया मदरसे की शिक्षिका निगहत बानो बताती हैं कि पिछले आठ वर्षों से केंद्र से और पिछले डेढ़ साल से राज्य सरकार से कोई मानदेय नहीं मिला। इसी तरह, राबिया बानो, जो कटरा बाज़ार के एक मदरसे में पढ़ाती हैं, कहती हैं कि मदरसे की प्रबंधन समिति द्वारा इकट्ठा किए गए चंदे से उन्हें 1000-2000 रुपए मिलते हैं, जिससे गुजारा मुश्किल है।
रोजगार का संकट
कई शिक्षकों ने मानदेय न मिलने की वजह से दूसरे काम करने शुरू कर दिए हैं। मोहम्मद मसूद, जो पहले मदरसे में पढ़ाते थे, अब अपने भाई की परचून की दुकान में मदद कर रहे हैं। वहीं, मोहम्मद आसिम अंसारी ने वेल्डिंग का काम शुरू कर दिया है। शिक्षकों का कहना है कि उनके पास कोई और विकल्प नहीं बचा है।
मदरसों की शिक्षा व्यवस्था
उत्तर प्रदेश में लगभग 25,522 मदरसे हैं, जिनमें से 16,513 मदरसे मान्यता प्राप्त हैं और 8449 गैर-मान्यता प्राप्त हैं। इनमें से 560 मदरसे पूरी तरह से सरकारी सहायता से चलते हैं। इन मदरसों में ग़रीब तबके के बच्चे, बिना किसी शुल्क के, दीनी और आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। राज्य के मदरसा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष इफ़्तिख़ार अहमद जावेद के अनुसार, वर्तमान में सरकार की ओर से इस योजना को जारी रखने या समाप्त करने के संबंध में कोई स्पष्टता नहीं है।
सरकार और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने बताया कि सरकार केंद्र से बातचीत कर रही है ताकि शिक्षकों को उनका बकाया मिल सके। हालांकि, उन्होंने मदरसों पर गड़बड़ियों का आरोप लगाते हुए कहा कि कई मदरसों में फर्जीवाड़ा पाया गया था, जिसके कारण 500 से अधिक मदरसों ने अपनी मान्यता खत्म करने के लिए आवेदन दिया है।
वहीं, विपक्षी दलों ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाए हैं। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता फखरूल हसन चांद ने कहा कि सरकार को बकाया मानदेय देना चाहिए। कांग्रेस नेता अनिल यादव का कहना है कि बीजेपी सरकार की नीयत मुस्लिम संस्थानों के प्रति ठीक नहीं है और सरकार मदरसों को बंद करने की कोशिश में लगी हुई है।
न्यायालय की स्थिति
आधुनिक मदरसा शिक्षकों के मामले को सुप्रीम कोर्ट में भी उठाया गया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा क़ानून, 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फ़ैसले को रद्द करते हुए कहा कि हाई कोर्ट का निर्णय ग़लत था। याचिकाकर्ता के वकील ने आरोप लगाया कि यूपी और त्रिपुरा सरकारें मदरसों को बंद कराने और बच्चों को अन्य स्कूलों में भेजने की कोशिश कर रही थीं।
भविष्य की चुनौतियाँ
इस मुद्दे के समाधान के लिए सरकार से कई स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। हाल ही में, प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर इस योजना में आ रही कठिनाइयों का समाधान कराने की गुजारिश की है। वहीं, विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार अल्पसंख्यकों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दे रही है।
इस तरह, उत्तर प्रदेश के मदरसों में आधुनिक शिक्षा देने वाले शिक्षकों के सामने गंभीर रोजगार संकट है, जो केवल मानदेय की कमी के कारण नहीं, बल्कि राजनीतिक और प्रशासनिक अव्यवस्था का भी परिणाम है। अगर यह स्थिति यूँ ही बनी रही, तो न केवल इन शिक्षकों का भविष्य प्रभावित होगा, बल्कि उन हजारों छात्रों का भी, जो इन मदरसों में पढ़ रहे हैं।