कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
लखनऊ की तहसील सरोजनी नगर में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे और भ्रष्टाचार का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है।
बताया जा रहा है कि ग्राम पंचायत नीवा बरौली में करोड़ों रुपए की सरकारी भूमि पर भूमाफियाओं का अवैध कारोबार फल-फूल रहा है।
इस पूरे प्रकरण में ग्राम प्रधान कुन्ती चौरसिया, जो कि ओमकार चौरसिया की पत्नी हैं, पर गंभीर आरोप लगे हैं। उनका नाम जमीन की अवैध बिक्री और फर्जी दस्तावेज तैयार करने में सामने आया है। यह सबकुछ सरकारी अधिकारियों के संरक्षण और मिलीभगत से हुआ है, जिसके कारण ग्राम पंचायत और स्थानीय निवासियों में भारी आक्रोश है।
फर्जी दस्तावेज और मनगढ़ंत प्रस्ताव की साजिश
ग्राम प्रधान कुन्ती चौरसिया पर आरोप है कि उन्होंने एक सुनियोजित साजिश के तहत ग्राम पंचायत की सरकारी जमीन को अपने सहयोगी मुकेश कुमार जिंदल के नाम कर दिया।
इस कार्य को अंजाम देने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए, मनगढ़ंत कहानियां बनाई गईं और सदस्यों के हस्ताक्षर जाली तरीके से किए गए। यहां तक कि प्रस्ताव पारित करने के लिए पंचायत सदस्यों को कोई सूचना नहीं दी गई।
सरकारी अधिकारियों से मिलीभगत कर प्रस्ताव को मंजूरी दिलाई गई, जिससे मुकेश कुमार जिंदल के हाथों सरकारी जमीन बेचकर करोड़ों की उगाही की गई।
ग्रामीणों का गुस्सा और प्रशासनिक लापरवाही
इस घोटाले से नाराज ग्राम नीवा के ग्रामीणों ने पंचायत सदस्यों के साथ मिलकर विरोध दर्ज किया है। ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम प्रधान ने अधिकारियों के साथ साठगांठ कर प्रॉपर्टी डीलरों के इशारों पर काम किया।
हालांकि, स्थानीय लोगों द्वारा कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन तहसील सरोजनी नगर के भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
आरोप है कि 2022 से 2024 के बीच मुकेश कुमार जिंदल ने मोहनलाल गंज रोड के किनारे की अधिकांश सरकारी भूमि पर कब्जा कर लिया है। ग्रामीणों का कहना है कि तमाम शिकायतों के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
गायब हुई न्यायालय की फाइलें: भ्रष्टाचार की परतें
इस मामले में एक और सनसनीखेज खुलासा हुआ है। ग्राम पंचायत नीवा द्वारा वाद संख्या 5675/2022 के तहत धारा 101 के तहत सरकारी भूमि के हस्तांतरण को चुनौती दी गई थी। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि तहसील सरोजनी नगर के कार्यालय से 2022 में जारी आदेश की फाइल ही गायब कर दी गई। इससे साफ जाहिर होता है कि उच्चाधिकारियों और रसूखदारों का गठजोड़ कितना मजबूत है।
योगी सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी नीति पर सवाल
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दावा करती रही है, लेकिन यह मामला सरकार के उन दावों पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है। जब खुद सरकारी अधिकारी ही सरकारी संपत्तियों की हिफाजत नहीं कर पा रहे हैं, तो आम जनता को न्याय कैसे मिलेगा? इस मामले में जांच की मांग जोर पकड़ रही है।
ग्रामीणों का कहना है कि योगी सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एक निष्पक्ष और ईमानदार अधिकारी से जांच करानी चाहिए, ताकि सरकारी खजाने को हो रहे करोड़ों के नुकसान की भरपाई की जा सके।
क्या होगी निष्पक्ष जांच?
यह प्रकरण उत्तर प्रदेश में सरकारी अधिकारियों और भूमाफियाओं के गठजोड़ का एक जीता-जागता उदाहरण है। जहां एक ओर सरकार भ्रष्टाचार को खत्म करने के दावे करती है, वहीं दूसरी ओर उसके अपने अधिकारी ही अवैध गतिविधियों में लिप्त पाए जा रहे हैं। यह देखना अब बाकी है कि क्या योगी सरकार इस मामले में कोई ठोस कदम उठाएगी या फिर यह भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में ही दबकर रह जाएगा।
सरकार को चाहिए कि इस मामले को तत्काल संज्ञान में लेते हुए दोषी अधिकारियों और ग्राम प्रधान पर सख्त कार्रवाई करे, ताकि आम जनता का सरकार और प्रशासन पर भरोसा बना रहे।