सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
गोरखपुर मंडल, जो उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, हमेशा से ही राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। यह मंडल चार जिलों गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, और देवरिया में बंटा हुआ है, और यहां की राजनीति का असर पूरे राज्य की राजनीति पर पड़ता है।
यहाँ के राजनीतिक परिदृश्य पर चर्चा करने के लिए, हमें चुनावी तैयारियों, पार्टियों की रणनीतियों, लोगों के रुझान और चर्चित नेताओं के बारे में गहराई से जानने की आवश्यकता है।
चुनावी तैयारियों और पार्टियों की रणनीतियाँ
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) – गोरखपुर, खासकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ माना जाता है। गोरखनाथ मठ के महंत होने के नाते, योगी आदित्यनाथ का इस क्षेत्र पर जबरदस्त प्रभाव है।
भाजपा यहां पर हिन्दुत्व और विकास के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। पार्टी का जोर क्षेत्र में सड़कों, बिजली, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा में सुधार पर है, जिसे विकास की राजनीति कहा जा सकता है। 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर दिया है, और योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता का लाभ उठाने की योजना बनाई जा रही है।
समाजवादी पार्टी (सपा)- सपा की पकड़ इस क्षेत्र में मुस्लिम और यादव समुदाय पर मजबूत है। अखिलेश यादव ने हाल के महीनों में गोरखपुर मंडल में कई जनसभाएं की हैं, जिसमें किसानों की समस्याएं, बेरोजगारी, और जातीय राजनीति को प्रमुख मुद्दा बनाया गया है। समाजवादी पार्टी का प्रयास है कि वह भाजपा के हिन्दुत्व एजेंडे का मुकाबला ‘समावेशी विकास’ के नारे से करे।
बहुजन समाज पार्टी (बसपा)- मायावती के नेतृत्व वाली बसपा की पकड़ गोरखपुर मंडल के दलित और पिछड़े वर्ग में अभी भी बरकरार है। हालांकि पार्टी की गतिविधियां अपेक्षाकृत कम हो गई हैं, लेकिन मायावती की चुप्पी का मतलब रणनीतिक योजना भी हो सकता है। बसपा का जोर सामाजिक न्याय और कानून व्यवस्था को लेकर है, और वह अपने पारंपरिक वोट बैंक को एकजुट करने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस- कांग्रेस पार्टी ने इस क्षेत्र में अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने के लिए कड़ी मेहनत शुरू की है। प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता ने कांग्रेस में एक नई ऊर्जा का संचार किया है। पार्टी किसानों के मुद्दे, महिला सुरक्षा, और युवाओं की बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उछालकर जनता का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रही है।
लोगों के रुझान
गोरखपुर मंडल की जनता का रुझान जाति, धर्म और विकास के मुद्दों पर आधारित है। इस क्षेत्र में जातिगत समीकरण काफी प्रभावशाली हैं।
क्षत्रिय और ब्राह्मण मतदाता पारंपरिक रूप से भाजपा के समर्थक माने जाते हैं, खासकर योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में।
यादव और मुस्लिम समुदायों का झुकाव सपा की ओर है, जबकि दलित वोटर अभी भी मायावती के प्रति निष्ठावान हैं।
युवा मतदाताओं में बेरोजगारी और शिक्षा की समस्याओं को लेकर नाराजगी है, जो उनके रुझान को प्रभावित कर सकती है।
हालांकि, यह भी देखा जा रहा है कि क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में विकास कार्य हुए हैं, जिनके चलते भाजपा की स्थिति मजबूत दिखाई देती है। लेकिन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस भी इस बार अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव करके भाजपा को चुनौती देने की कोशिश कर रही हैं।
गोरखपुर मंडल में चुनावी मुद्दे कुछ इस प्रकार हैं
विकास कार्य: सड़कों, बिजली, और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार भाजपा के मुख्य एजेंडे का हिस्सा है।
किसान समस्याएं: MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर फसलों की खरीद, गन्ना किसानों की समस्या, और सिंचाई के मुद्दे प्रमुख हैं।
जातिगत समीकरण: क्षेत्रीय पार्टियों के लिए जातिगत समीकरण और जाति आधारित राजनीति महत्वपूर्ण है।
बेरोजगारी: युवा मतदाताओं के बीच बेरोजगारी का मुद्दा प्रमुख है, जिसे सपा और कांग्रेस ने अपने एजेंडे में शामिल किया है।
गोरखपुर मंडल की राजनीति पर नजर डालें तो यह साफ है कि आगामी चुनाव में यहां की राजनीतिक लड़ाई बेहद दिलचस्प होने वाली है। भाजपा अपने मजबूत गढ़ को बनाए रखने की कोशिश करेगी, वहीं समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस इस गढ़ को भेदने की रणनीति पर काम कर रही हैं।
योगी आदित्यनाथ की छवि के चलते भाजपा के पास एक मजबूत बढ़त है, लेकिन जातिगत समीकरण और क्षेत्रीय मुद्दों पर विपक्षी पार्टियां अपना जोर लगा रही हैं। आगामी चुनाव में विकास और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर होने वाली यह लड़ाई पूरे प्रदेश की राजनीति को प्रभावित कर सकती है।