इरफान अली लारी की रिपोर्ट
भाटपार रानी, देवरिया। “ग्रंथालय केवल ग्रंथों का संग्रह नहीं, बल्कि मानव का हृदय होता है,” यह विचार मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कॉलेज, गोरखपुर के ग्रंथालय निदेशक विभाष कुमार मिश्र ने व्यक्त किए। वे शुक्रवार को मदन मोहन मालवीय पीजी कॉलेज, भाटपार रानी में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “पुस्तकालय प्रबंधन प्रणाली, सर्वोत्तम प्रथाएं और नई प्रोद्योगिकी” के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे। इस संगोष्ठी का आयोजन केंद्रीय तक्षशिला ग्रंथालय और आंतरिक गुणवत्ता सुनिश्चयन प्रकोष्ठ के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
डॉ. मिश्र ने कहा कि आज के तकनीकी युग में ग्रंथालय का स्वरूप बदल चुका है। अब ग्रंथालय केवल पारंपरिक रूप में पुस्तकें उपलब्ध कराने का केंद्र नहीं रह गया है, बल्कि तकनीक के जरिए पाठक के घर तक पहुंच चुका है। डेलनेट सदस्यता के अंतर्गत वे पुस्तकें, जो बाजार में उपलब्ध नहीं हैं, उन्हें भी पाठकों तक पहुंचाया जा रहा है। इसके लिए पाठकों को केवल पुस्तकों के मंगाने और वापस करने का खर्च देना होता है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ग्रंथालयों को अब परंपरागत पद्धति से आगे बढ़ते हुए डिजिटल रूप अपनाना होगा। हालांकि, पूर्ण डिजिटलीकरण कॉपीराइट कानूनों के कारण संभव नहीं है, लेकिन ई-ग्रंथालय की स्थापना के लिए उच्च स्तरीय सॉफ़्टवेयर आवश्यक है ताकि तकनीकी खामियों के दौरान डाटा सुरक्षित रह सके। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि ग्रंथालयों में सुझाव पेटिका रखी जानी चाहिए ताकि पाठकों से फीडबैक प्राप्त किया जा सके।
विशिष्ट अतिथि डॉक्टर देवेंद्र मणि पांडेय ने कहा कि अब ग्रंथालय बारकोड और डिजिटल तकनीक से जुड़ गए हैं। आईएनएफएलआईबीएनईटी की सदस्यता के तहत 8 करोड़ से अधिक ई-पुस्तकें, ऑडियो, वीडियो और व्याख्यान उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी के माध्यम से किया जा सकता है।
इस अवसर पर, कॉलेज के प्रबंधक और संगोष्ठी के संरक्षक राघवेंद्र वीर विक्रम सिंह ने कहा कि तक्षशिला ग्रंथालय संस्थान का मुकुट है, और इसे आधुनिक बनाना उनकी प्राथमिकता है। उन्होंने यह भी कहा कि ग्रामीण क्षेत्र के छात्र, विशेष रूप से माध्यम वर्ग और गरीब परिवारों से आने वाले छात्र, इसका विशेष रूप से लाभ उठा सकेंगे।
मुख्य वक्ता डॉ. मनोज द्विवेदी ने पुस्तकालय प्रबंधन, डेलनेट सदस्यता, डिजिटल लाइब्रेरी, ऑनलाइन लाइब्रेरी और अन्य तकनीकी पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दी। वहीं, डॉ. गणेश दत्त शुक्ल ने विद्वानों के जर्नल, लेख, और डिजिटल दस्तावेजों के बारे में चर्चा की। उन्होंने ई-लर्निंग और ई-जर्नल्स के उपयोग के महत्व को भी रेखांकित किया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रोफेसर सतीश चंद्र गौड़ ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और संगोष्ठी के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए संस्थान के सभी शिक्षकों और कर्मचारियों को संकल्प दिलाया। संगोष्ठी के आयोजक पुस्तकालय अधीक्षक राजेश धर द्विवेदी ने तक्षशिला ग्रंथालय के बारे में विस्तृत जानकारी दी, जिसमें पचास हजार से अधिक पुस्तकें और दस हजार से अधिक सहायक ग्रंथ शामिल हैं।
संगोष्ठी का शुभारंभ अतिथियों द्वारा सरस्वती पूजन, दीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदना के साथ हुआ। इस अवसर पर अतिथियों को अंगवस्त्र और पुस्तकों से सम्मानित किया गया। संगोष्ठी का संचालन डॉ. रंजीत सिंह ने किया और आंचल तिवारी द्वारा सरस्वती गीत प्रस्तुत किया गया।
द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डॉ. केएन मिश्र ने की, जिसमें विभिन्न महाविद्यालयों के विद्वान आचार्यों ने शोध पत्र प्रस्तुत किए। इनमें डॉ. हरेंद्र कुमार चौहान, डॉ. राम आशीष, डॉ. गायत्री जयसवाल, डॉ. सुशील कुमार पांडेय और अन्य विद्वान शामिल थे। संगोष्ठी के समापन पर पूर्व प्राचार्य डॉ. राकेश कुमार ने सभी प्रतिभागियों का आभार प्रकट किया।
Author: samachar
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