सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
कोलकाता के आरजी कर राजकीय अस्पताल में एक डॉक्टर के साथ बलात्कार और उसकी अमानवीय हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। यह घिनौना अपराध किसी भी राज्य में हो सकता है, लेकिन पश्चिम बंगाल में यह मामला और भी गंभीर बन गया है। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने अपराधियों को बचाने और सबूत मिटाने में सक्रिय भूमिका निभाई, जिससे स्थिति और भी पेचीदा हो गई है।
पश्चिम बंगाल सरकार की आलोचना की जा रही है कि उसने इस जघन्य अपराध को आत्महत्या के रूप में दिखाने की कोशिश की और अपराधियों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया।
जब मामला तूल पकड़ने लगा, तो घटना स्थल से सबूत मिटाने के लिए लगभग सात हजार लोगों की भीड़ को एकत्रित किया गया।
पुलिस ने इस अव्यवस्था को मूकदर्शक की तरह देखा और हस्तक्षेप नहीं किया। इस भीड़ ने अस्पताल पर हमला किया और उस सेमिनार हाल को नुकसान पहुंचाया, जहां डॉक्टर की हत्या की गई थी।
डॉक्टरों ने इस हत्या के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन किया और कॉलेज के निदेशक डॉ. संदीप घोष पर भ्रष्टाचार और लावारिस शवों की बिक्री के आरोप लगने लगे।
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घोष के तृणमूल कांग्रेस से जुड़ाव को लेकर भी संदेह उठे। घटनास्थल पर भीड़ को इकट्ठा करने वाले गैंग के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस भीड़ को बुलाने वाले लोग संजय राय को बचाने में लगे हुए थे। पुलिस की निष्क्रियता और भीड़ को नियंत्रण में रखने के बजाय अपराधियों को समर्थन देने का आरोप लगाया गया।
ममता बनर्जी ने संदीप घोष को तुरंत दूसरे मेडिकल कॉलेज का प्रिंसिपल बना दिया और सड़क पर जुलूस निकालकर विरोध करने वालों को चुप कराने की कोशिश की। इस जुलूस में सरकार के खिलाफ जो लोग प्रिंसिपल की सजा और जांच की मांग कर रहे थे, उन्हें सरकार के विरोधी के रूप में प्रस्तुत किया गया।
ममता बनर्जी की सरकार पर यह आरोप भी है कि वह बलात्कार के मामलों में अपराधियों के साथ खड़ी दिखाई देती है, जैसे कि संदेशखाली और आरजी कर अस्पताल के मामलों में। इस कारण उच्च न्यायालय और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। सीबीआई ने अपराध के सबूतों को बचाने और आरोपी को सजा दिलाने की जिम्मेदारी ली।
हालांकि, ममता बनर्जी ने बंगाल में सीबीआई की जांच पर रोक लगाकर अपने पुराने हथकंडे अपनाए। इस पूरे घटनाक्रम में कपिल सिब्बल की भूमिका भी विवादास्पद रही।
उन्होंने उच्च न्यायालय में बंगाल सरकार को बचाने की कोशिश की, जिससे बार एसोसिएशन के सदस्य असंतुष्ट हो गए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी संदीप घोष की सदस्यता निलंबित कर दी।
अंततः सवाल यह है कि मृत डॉक्टर को न्याय मिल सकेगा या नहीं और क्या अपराधियों को उनके कृत्य की सजा मिलेगी। यह मामला पश्चिम बंगाल की राजनीति और कानून व्यवस्था की गंभीरता को उजागर करता है।
কলকাতার আরজি কর রাজকীয় হাসপাতালে এক ডাক্তারকে ধর্ষণ এবং তার বর্বর হত্যাকাণ্ড পুরো দেশকে震িত করে দিয়েছে। এই জঘন্য অপরাধ যে কোনও রাজ্যে হতে পারে, কিন্তু পশ্চিমবঙ্গে এটি আরও গুরুতর হয়ে উঠেছে। রাজ্যের মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের সরকার অপরাধীদের রক্ষা এবং প্রমাণ ধ্বংসের জন্য সক্রিয় ভূমিকা পালন করেছে, যা পরিস্থিতিকে আরও জটিল করে তুলেছে।
পশ্চিমবঙ্গ সরকারের সমালোচনা করা হচ্ছে যে তারা এই নৃশংস অপরাধকে আত্মহত্যা হিসেবে দেখানোর চেষ্টা করেছে এবং অপরাধীদের রক্ষা করার জন্য সর্বাত্মক চেষ্টা করেছে। যখন ঘটনা আলোচনায় আসে, তখন প্রমাণ ধ্বংস করতে প্রায় সাত হাজার মানুষের একটি ভিড় একত্রিত করা হয়। পুলিশ এই বিশৃঙ্খলাকে নিরব দর্শক হিসেবে দেখেছে এবং হস্তক্ষেপ করেনি। এই ভিড় হাসপাতালের ওপর আক্রমণ করে এবং সেই সেমিনার হলের ক্ষতি করে, যেখানে ডাক্তারটি হত্যা করা হয়েছিল।
ডাক্তাররা এই হত্যার বিরুদ্ধে রাস্তায় প্রতিবাদ জানিয়েছে এবং কলেজের অধ্যক্ষ ডা. সন্দীপ ঘোষের বিরুদ্ধে দুর্নীতি এবং অবহেলিত লাশ বিক্রির অভিযোগ উঠেছে। ঘোষের তৃণমূল কংগ্রেসের সাথে সম্পর্ক নিয়ে সন্দেহ উত্থিত হয়েছে। ঘটনাস্থলে ভিড় জড়ো করার গ্যাং সম্পর্কে কোনও স্পষ্ট তথ্য নেই, তবে স্পষ্ট যে এই ভিড়কে ডাকতে যারা জড়িত ছিল তারা সঞ্জয় রায়কে রক্ষা করতে ব্যস্ত ছিল। পুলিশের নিষ্ক্রিয়তা এবং ভিড়কে নিয়ন্ত্রণে না রেখে অপরাধীদের সমর্থনের অভিযোগ আনা হয়েছে।
মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় সন্দীপ ঘোষকে তৎক্ষণাৎ অন্য একটি মেডিক্যাল কলেজের অধ্যক্ষ বানিয়ে দেন এবং সড়কে মিছিল করে প্রতিবাদকারীদের চুপ করানোর চেষ্টা করেন। এই মিছিলে সরকারবিরোধীরা অধ্যক্ষের সাজা এবং তদন্তের দাবি জানিয়েছে, তাদের সরকারবিরোধী হিসেবে উপস্থাপন করা হয়।
মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের সরকারের বিরুদ্ধে এই অভিযোগও আছে যে তারা ধর্ষণ মামলাগুলিতে অপরাধীদের পাশে দাঁড়িয়ে থাকে, যেমন মেসেজখালি এবং আরজি কর হাসপাতালের মামলায়। এই কারণে উচ্চ আদালত এবং পরে সুপ্রিম কোর্ট মামলাটির তদন্ত সিবিআইকে দেওয়ার সিদ্ধান্ত নিয়েছে। সিবিআই অপরাধের প্রমাণ রক্ষা এবং অভিযুক্তকে শাস্তি দেওয়ার দায়িত্ব গ্রহণ করেছে।
তবে, মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় পশ্চিমবঙ্গে সিবিআইয়ের তদন্তে বাধা দিয়ে পুরনো কৌশল গ্রহণ করেছেন। এই পুরো ঘটনায় কপিল সিব্বল-এর ভূমিকা বিতর্কিত হয়েছে। তিনি উচ্চ আদালতে পশ্চিমবঙ্গ সরকারের রক্ষা করার চেষ্টা করেছেন, যার ফলে বার অ্যাসোসিয়েশনের সদস্যরা অসন্তুষ্ট হয়েছেন। ইন্ডিয়ান মেডিকেল অ্যাসোসিয়েশনও সন্দীপ ঘোষের সদস্যপদ স্থগিত করেছে।
অবশেষে, প্রশ্ন হচ্ছে যে মৃত ডাক্তারকে ন্যায় পাবেন কিনা এবং অপরাধীদের তাদের কৃত্যর শাস্তি মিলবে কিনা। এই মামলা পশ্চিমবঙ্গের রাজনীতি এবং আইন ব্যবস্থা সম্পর্কে গুরুতর পরিস্থিতি তুলে ধরে।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."