सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
नटवर सिंह एक प्रतिष्ठित कूटनीतिज्ञ और राजनेता थे, जिन्होंने अपनी बहुआयामी क्षमताओं से राजनीति और लेखन दोनों में खास पहचान बनाई। उनके जीवन की प्रमुख विशेषताएँ उनकी हाजिरजवाबी और साफगोई थीं, जो उन्हें दशकों तक लोकप्रिय बनाए रखने में सहायक साबित हुईं।
नटवर सिंह का जन्म 1931 में राजस्थान के भरतपुर जिले में हुआ। वे भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे और 1953 में इस सेवा में शामिल हुए। कूटनीति के क्षेत्र में अपने अनुभवों के आधार पर, उन्होंने 1984 में राजनीति में प्रवेश किया और कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर केंद्रीय मंत्री बने।
2004 में, जब कांग्रेस सत्ता में आई, तो नटवर सिंह को विदेश मंत्री बनाया गया। हालांकि, 18 महीने बाद, संयुक्त राष्ट्र की वोल्कर समिति द्वारा इराकी तेल घोटाले में संलिप्तता के आरोपों के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और कांग्रेस पार्टी से भी दूरी बनानी पड़ी। इसके परिणामस्वरूप, उनका सोनिया गांधी के साथ मनमुटाव और पार्टी से बाहर होना तय हो गया।
नटवर सिंह ने राजनीति से पहले विदेश सेवा में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया, जिनमें चीन, अमेरिका, पाकिस्तान, और ब्रिटेन जैसे देशों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ शामिल थीं। उन्होंने 1983 में नयी दिल्ली में आयोजित सातवें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन का महासचिव और राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक का मुख्य समन्वयक भी कार्य किया।
उनकी कूटनीतिक उपलब्धियों के साथ, उन्होंने कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों में भी कार्य किया, जिसमें इस्पात, कोयला, खान और कृषि मंत्रालय शामिल हैं। उन्हें 1984 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और 1985 में विदेश राज्य मंत्री बने।
हालांकि, कांग्रेस पार्टी छोड़ने के बाद उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को भी जॉइन किया, लेकिन वहां भी अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें निष्कासित कर दिया गया। नटवर सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन के अंत में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने की अटकलों को खारिज कर दिया और इसके बजाय अपने बेटे के साथ बसपा का हाथ थाम लिया।
सोनिया गांधी के आलोचक के रूप में उनकी पहचान बन गई और उन्होंने कई बार अपनी राय सार्वजनिक रूप से रखी। उनके लेखन में ‘द लिगेसी ऑफ नेहरू: अ मेमोरियल ट्रिब्यूट’ और ‘माई चाइना डायरी 1956-88’ जैसी किताबें शामिल हैं, जबकि उनकी आत्मकथा ‘वन लाइफ इज़ नॉट इनफ’ ने भी पाठकों को प्रभावित किया।
नटवर सिंह का निधन 93 वर्ष की आयु में 10 अगस्त 2024 में हुआ। वे मेयो कॉलेज, अजमेर, ग्वालियर के सिंधिया स्कूल और दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज के पूर्व छात्र थे। उनके जीवन की जटिलताओं और उपलब्धियों के बावजूद, उन्हें एक कुशल राजनेता और एक विचारशील लेखक के रूप में याद किया जाएगा।
नटवर सिंह के जीवन की कुछ और महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं
- विदेशी दूतावास में सेवाएं : नटवर सिंह ने अपने कूटनीतिक करियर में कई प्रमुख विदेशी दूतावासों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। उन्होंने 1972-76 तक लंदन में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में काम किया और 1980-82 तक चीन में भारतीय राजदूत के रूप में कार्य किया। इन भूमिकाओं में उन्होंने भारत के विदेश नीति के लक्ष्यों को मजबूत किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति को सशक्त किया।
- स्वतंत्र जांच रिपोर्ट : 2005 में वोल्कर समिति की रिपोर्ट के बाद, नटवर सिंह पर इराकी तेल घोटाले में संलिप्तता के आरोप लगे। इस रिपोर्ट ने कांग्रेस पार्टी और नटवर सिंह के परिवार पर आरोप लगाए, जिसके कारण नटवर सिंह को विदेश मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा और कांग्रेस से दूरी बनानी पड़ी।
- लेखन कार्य : नटवर सिंह ने अपनी कूटनीतिक यात्रा और अनुभवों को साझा करते हुए कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं। उनकी आत्मकथा ‘वन लाइफ इज़ नॉट इनफ’ ने उनकी राजनीतिक यात्रा और निजी जीवन की झलक प्रस्तुत की, जबकि ‘माई चाइना डायरी’ ने उनके चीन में बिताए गए समय की व्यक्तिगत और पेशेवर घटनाओं को साझा किया।
- राजनीतिक उतार-चढ़ाव : कांग्रेस पार्टी से बाहर होने के बाद, नटवर सिंह ने कई राजनीतिक अटकलों के बावजूद भाजपा में शामिल होने के विचार को ठुकराया और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में शामिल हो गए। लेकिन वहां भी उन्हें पार्टी की अनुशासनहीनता के आरोपों के चलते निकाल दिया गया।
- शिक्षा और प्रारंभिक जीवन : नटवर सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मेयो कॉलेज, अजमेर और सिंधिया स्कूल, ग्वालियर से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
उनकी जटिल और विविध जीवन यात्रा ने उन्हें भारतीय राजनीति और कूटनीति के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में स्थापित किया। उनकी कूटनीतिक साख, राजनीतिक ऊंचाइयाँ और लेखन के क्षेत्र में योगदान ने उन्हें भारतीय सार्वजनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
नटवर सिंह के जीवन और करियर की कुछ और प्रमुख बातें इस प्रकार हैं
- सहयोगी और विरोधी : नटवर सिंह ने अपनी राजनीतिक यात्रा में विभिन्न प्रमुख नेताओं के साथ काम किया और उनके साथ रिश्ते की जटिलताओं का सामना किया। वे इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के करीबी सहयोगी थे, लेकिन बाद में उनके और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बीच मतभेद हो गए। खासकर सोनिया गांधी के साथ उनके रिश्ते में खटास आ गई, जो उनकी राजनीतिक यात्रा की एक महत्वपूर्ण घटना रही।
- राजनीतिक प्रभाव : नटवर सिंह ने अपने करियर के दौरान भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कांग्रेस पार्टी में उनकी उपस्थिति और उनके नेतृत्व ने भारतीय राजनीति के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रभावित किया। उनका अनुभव और राजनीतिक दृष्टिकोण उनकी लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण थे।
- पार्टी के प्रति निष्ठा और विवाद : कांग्रेस पार्टी में अपने कार्यकाल के दौरान, नटवर सिंह ने कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों में काम किया और कई महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों में भूमिका निभाई। लेकिन तेल घोटाले के आरोपों के बाद उनकी छवि को धक्का लगा, और उनकी पार्टी के प्रति निष्ठा में कमी आई। उनके पार्टी छोड़ने के बाद, उनकी आलोचनात्मक टिप्पणियाँ और राजनीतिक दृष्टिकोण ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक विवादास्पद व्यक्ति बना दिया।
- संस्कृत और सांस्कृतिक योगदान : नटवर सिंह का भारतीय सांस्कृतिक और साहित्यिक जीवन में भी योगदान था। उन्होंने अपने लेखन और भाषणों के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को उजागर किया और विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
- व्यक्तिगत जीवन और परिवार : नटवर सिंह का परिवार भी राजनीति में सक्रिय रहा। उनके बेटे जगत सिंह ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने से पहले बसपा का हाथ थामा, लेकिन बाद में भाजपा में शामिल हो गए। परिवार की राजनीतिक गतिविधियाँ नटवर सिंह की राजनीतिक छवि को भी प्रभावित करती रही हैं।
- मरणोपरांत सम्मान : नटवर सिंह की मृत्यु के बाद, उन्हें उनकी राजनीतिक और कूटनीतिक योगदान के लिए सम्मानित किया गया। उनके निधन के समय, कई नेताओं और प्रशंसा करने वालों ने उनके कार्यों और उनके जीवन की उपलब्धियों को सराहा।
नटवर सिंह का जीवन भारतीय राजनीति और कूटनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा, और उनके कार्यों और विचारों ने भारतीय सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं ने उन्हें एक जटिल और प्रेरणादायक व्यक्तित्व के
नटवर सिंह का पारिवारिक जीवन भी उनके सार्वजनिक जीवन के साथ जुड़ा रहा:
- पत्नी : नटवर सिंह की पत्नी का नाम विजयलक्ष्मी था। वे एक प्रतिष्ठित और शिक्षित महिला थीं और उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण सहायक भूमिका निभाई।
- बेटा : उनके बेटे का नाम जगत सिंह था। जगत सिंह भी राजनीति में सक्रिय रहे। उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा में कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) का हाथ थामा। वे एक समय पर बसपा के सदस्य रहे लेकिन अनुशासनहीनता के आरोपों के बाद पार्टी से निष्कासित हो गए। बाद में, उन्होंने भाजपा में शामिल होकर भारतीय राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
- राजनीतिक प्रभाव : नटवर सिंह का परिवार भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उनके परिवार के सदस्य, विशेषकर उनके बेटे, ने भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई, जिससे परिवार की राजनीतिक गतिविधियाँ और नटवर सिंह की छवि पर असर पड़ा।
- पारिवारिक संबंध : नटवर सिंह का परिवार उनके राजनीतिक जीवन और करियर में सहयोगी रहा। परिवार के सदस्य अक्सर उनके सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन के विभिन्न पहलुओं में सक्रिय थे।
नटवर सिंह का पारिवारिक जीवन उनके सार्वजनिक जीवन की महत्वपूर्ण कड़ी रहा और उनके परिवार के सदस्य भी राजनीति में अपनी भूमिका निभाते रहे।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."