मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
देश के विभिन्न हिस्सों में लगातार हो रही ट्रेन दुर्घटनाओं ने ऐसा माहौल बना दिया है जैसे दुर्घटनाएं अब आम बात हो गई हों और लोग इस पर सहज होने लगे हैं। हर बार जब कोई बड़ा हादसा होता है, सरकार औपचारिक घोषणा करती है कि घटना की जांच की जाएगी और ऐसे उपाय किए जाएंगे कि भविष्य में इस तरह की दुर्घटनाएं न हों।
लेकिन कुछ ही दिनों बाद किसी अन्य हिस्से से एक और बड़ी रेल दुर्घटना की खबर आ जाती है, और रेल मंत्री को कभी भी जिम्मेदारी लेने की जरूरत महसूस नहीं होती।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में चंडीगढ़ से डिब्रूगढ़ जा रही एक एक्सप्रेस ट्रेन के आठ डिब्बे पटरी से उतर गए, जिनमें से पांच पलट गए। इस घटना में चार लोगों की मौत हो गई और कम से कम बीस अन्य घायल हो गए।
यह हादसा दर्शाता है कि रेल यात्रा को सुरक्षित बनाने के सरकार के दावे मात्र आश्वासन हैं।
यह सवाल उठता है कि एक तरफ तो रेल महकमे को आधुनिक बनाने और उच्च तकनीकी से लैस करने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ पटरियों पर होने वाली दुर्घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं।
इस घटना के बाद फिर से इसके कारणों की जांच की जाएगी, लेकिन आम जनता को शायद ही कभी पता चलता है कि असल वजह क्या थी, किसे जिम्मेदार ठहराया गया, क्या कार्रवाई हुई और भविष्य में ऐसे हादसे रोकने के लिए क्या उपाय किए गए।
अफसोस की बात है कि हर हादसे के बाद यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन कुछ समय बाद होने वाले हादसे सरकारी आश्वासनों की हकीकत बयां कर देते हैं।
ट्रेनों के टकराने के अलावा हाल के दिनों में पटरियों से उतरने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इससे साफ है कि या तो पटरियों से छेड़छाड़ की आपराधिक घटनाएं हो रही हैं या फिर रखरखाव के मामले में रेल महकमा पर्याप्त निगरानी और मरम्मत का काम सुनिश्चित करने में नाकाम है।
हर बार कहा जाता है कि रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए आधुनिक तकनीकी का सहारा लिया जा रहा है। ‘कवच प्रणाली’ के जरिए ट्रेनों के टकराने को रोकने का दावा किया जाता है, लेकिन समय-समय पर होने वाली टक्करें और दुर्घटनाएं इस प्रणाली की सीमाओं को उजागर करती हैं।
रेलवे की गति बढ़ाने को यात्री सुविधा के रूप में पेश किया जाता है, लेकिन पटरियों की गुणवत्ता को प्राथमिकता नहीं दी जाती। बुलेट ट्रेन और अन्य तेज रफ्तार ट्रेनों के दावे सुर्खियों में होते हैं, लेकिन मौजूदा रेल संचालन को पूरी तरह सुरक्षित नहीं बनाया जा पा रहा है।
रेल महकमे में कितने पद खाली हैं और उन पर भर्तियों को लेकर क्या योजना है, इस पर विचार करना और इसे हादसों के कारण के रूप में चिह्नित करना एक उपेक्षित मुद्दा है।
सवाल उठता है कि पटरियों पर हर वक्त जोखिम के साथ दौड़ती ट्रेनों को किस भरोसे अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने का दावा किया जा रहा है?
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."