मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
लखनऊ में 14 जुलाई 2024 को बीजेपी की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में यूपी सरकार के दो शीर्ष नेताओं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, ने यूपी में पार्टी के खराब प्रदर्शन के अलग-अलग कारण बताए।
योगी आदित्यनाथ का बयान
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए अति आत्मविश्वास को जिम्मेदार ठहराया। उनका मानना था कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने यूपी के चुनावों में बहुत अधिक आत्मविश्वास दिखाया, जिसके परिणामस्वरूप पार्टी का प्रदर्शन खराब हुआ।
केशव प्रसाद मौर्य का बयान
वहीं, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने संगठन के सरकार से बड़ा होने की बात कही। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यूपी में योगी सरकार पार्टी से बड़ी हो गई है। मौर्य के इस बयान को योगी सरकार के खिलाफ टिप्पणी के रूप में देखा गया।
विभिन्न बयान और विवाद
इन दोनों नेताओं के बयानों के बाद यूपी में बीजेपी के भविष्य को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं। ये सवाल केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं।
योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक सफर
योगी आदित्यनाथ 1998 में गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए थे, तब उनकी उम्र महज 26 साल थी। योगी आदित्यनाथ की पहचान हिंदुत्व वाली राजनीति के प्रमुख चेहरे के रूप में रही है। वे कभी भी कोई चुनाव नहीं हारे हैं, जिससे उनकी राजनीतिक शक्ति और प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है।
केशव प्रसाद मौर्य का राजनीतिक सफर
दूसरी ओर, केशव प्रसाद मौर्य एक बार विधानसभा और एक बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। वे विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की पृष्ठभूमि से आते हैं। मौर्य का संगठनात्मक अनुभव और संघ से जुड़ाव उन्हें पार्टी के अंदर एक महत्वपूर्ण नेता बनाता है।
चुनौती और महत्व
अब सवाल यह है कि क्या केशव प्रसाद मौर्य योगी आदित्यनाथ को चुनौती दे पाएंगे? और बीजेपी के लिए अधिक महत्वपूर्ण कौन है – केशव प्रसाद मौर्य या योगी आदित्यनाथ?
योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य दोनों ही बीजेपी के महत्वपूर्ण नेता हैं, जिनकी अपनी-अपनी राजनीतिक महत्वता और ताकत है। योगी की लोकप्रियता और लगातार चुनाव जीतने की क्षमता उन्हें एक शक्तिशाली नेता बनाती है। वहीं, मौर्य का संगठनात्मक अनुभव और संघ के साथ गहरा जुड़ाव उन्हें पार्टी के अंदर एक मजबूत स्तंभ के रूप में स्थापित करता है।
इस प्रकार, यूपी में बीजेपी के भविष्य को लेकर चल रही इन चर्चाओं का सही उत्तर समय ही बता पाएगा। दोनों नेताओं की भूमिका और उनके बयानों का प्रभाव आने वाले समय में पार्टी की दिशा और दशा को निर्धारित करेगा।
यूपी और बीजेपी: महत्वपूर्ण तारीखों पर एक नजर
योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के बीच चल रही अटकलों को समझने के लिए हाल की कुछ महत्वपूर्ण तारीखों पर ध्यान देना आवश्यक है।
4 जून 2024
लोकसभा चुनावी नतीजों में यूपी में बीजेपी के हिस्से आईं 33 सीटें, जो 2019 की तुलना में 29 सीटें कम हैं। यह परिणाम पार्टी के लिए निराशाजनक रहा और यूपी में बीजेपी के प्रदर्शन पर सवाल खड़े हो गए।
जून से जुलाई 2024
यूपी में कई जगहों पर प्रशासन और बीजेपी नेताओं के बीच विवाद और बहस की खबरें सामने आईं, जिससे पार्टी के भीतर असंतोष की स्थिति बनी।
14 जुलाई 2024
लखनऊ में बीजेपी कार्यसमिति की बैठक हुई। इस बैठक में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने संगठन को सरकार से बड़ा बताया। उनका बयान था, “संगठन, प्रदेश और देश के नेतृत्व के सामने कह रहा हूं- संगठन सरकार से बड़ा है। संगठन से बड़ा कोई नहीं होता है।”
16 जुलाई 2024
दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से केशव प्रसाद मौर्य और यूपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने मुलाक़ात की। इस मुलाकात से पार्टी के भीतर चल रही खींचतान के संकेत मिले।
17 जुलाई 2024
केशव प्रसाद मौर्य ने एक बार फिर सोशल मीडिया पर संगठन को सरकार से बड़ा बताया। उन्होंने कहा, “संगठन सरकार से बड़ा है। कार्यकर्ताओं का दर्द मेरा दर्द है, संगठन से बड़ा कोई नहीं, कार्यकर्ता ही गौरव है।”
17 जुलाई 2024
यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने राज्यपाल से मुलाकात की। राज्यपाल के दफ़्तर की ओर से इसे शिष्टाचार मुलाकात बताया गया, लेकिन इस मुलाकात को भी राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा गया।
यूपी, योगी और अटकलें
बीते डेढ़ महीने में इन तारीखों पर हुई घटनाओं और बयानबाज़ी से अटकलें तेज़ हो गई हैं। सवाल उठने लगे हैं कि क्या मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की कुर्सी सुरक्षित है?
यह सवाल सबसे पहले बड़े स्तर पर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उठाया था। 11 मई 2024 को एक चुनावी सभा में केजरीवाल ने कहा था, “अगर ये चुनाव जीत गए तो मेरे से लिखवा लो- दो महीने के अंदर उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बदल देंगे ये लोग। योगी आदित्यनाथ की राजनीति ख़त्म करेंगे, उनको भी निपटा देंगे।”
लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्ता में आने और यूपी में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के बाद यह सवाल फिर उठने लगा है। बीजेपी आलाकमान यूपी में पार्टी की बड़ी जीत ना होने से नाराज़ है। कुछ लोग इसके लिए योगी आदित्यनाथ को जिम्मेदार मानते हैं और कुछ शीर्ष नेतृत्व को।
केशव प्रसाद मौर्य के ताज़ा बयान और सक्रियता को विपक्षी नेता इसी कड़ी से जोड़कर देख रहे हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि यूपी में बीजेपी के भीतर चल रही यह खींचतान पार्टी के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है।
योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली पर सवाल
योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली पर सवाल उठाने वालों में निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद भी शामिल रहे हैं। 16 जुलाई को संजय निषाद ने बयान दिया, “बुलडोज़र माफिया के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होना चाहिए। अगर यह बेघर और ग़रीब लोगों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होगा तो एकजुट होकर ये लोग हमें चुनाव में हरवा देंगे।”
बुलडोज़र की राजनीति
योगी आदित्यनाथ की राजनीति में बुलडोज़र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। चुनाव प्रचार के दौरान योगी की रैलियों में कई जगहों पर बुलडोज़र खड़े किए गए थे। योगी सरकार के कार्यकाल में कई जगहों पर बुलडोज़र से कार्रवाई की गई और लोगों के घर गिराए गए।
अनुप्रिया पटेल की शिकायत
इससे पहले, बीजेपी की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) की नेता और एनडीए सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी योगी आदित्यनाथ से अपनी शिकायत सार्वजनिक की थी। अनुप्रिया ने योगी को चिट्ठी लिखकर कहा था कि सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े लोगों को रोज़गार देने के मामले में भेदभाव कर रही है। अनुप्रिया की इस चिट्ठी के बाद जानकारों ने कहा था कि यह योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जमीन तैयार की जा रही है।
ओबीसी नेताओं की असंतुष्टि
अनुप्रिया पटेल, संजय निषाद और केशव प्रसाद मौर्य तीनों ही ओबीसी नेता हैं। दूसरी तरफ़, योगी आदित्यनाथ को ‘अगड़ी’ जातियों के नेता के तौर पर देखा जाता है।
योगी बनाम केशव प्रसाद मौर्य
सवाल यह उठता है कि कुछ जानकार योगी बनाम केशव की जो सियासी लड़ाई देख रहे हैं, वह आंकड़ों और अतीत में कैसी रही है। इसे समझने के लिए योगी आदित्यनाथ की चुनावी राजनीति को समझना अहम रहेगा।
योगी आदित्यनाथ की चुनावी सफलता
2024 लोकसभा चुनाव में, बीजेपी भले ही यूपी में पहले के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन न कर पाई हो, मगर योगी आदित्यनाथ अपने गढ़ गोरखपुर के आसपास की सीटें बचाने में सफल रहे। बीजेपी ने गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया, कुशीनगर और बाँसगाँव सीटें जीतने में सफलता पाई।
केशव प्रसाद मौर्य का प्रदर्शन
वहीं, कौशांबी, प्रयागराज और प्रतापगढ़ में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। इन तीनों सीटों पर केशव प्रसाद मौर्य का असर माना जा रहा था। बीजेपी केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी के ओबीसी चेहरे के तौर पर पेश करती रही है, मगर इन चुनावों में मौर्य पार्टी को वह सफलता नहीं दिलवा पाए, जिसकी उम्मीद बीजेपी को थी।
योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के बीच की सियासी खींचतान से यह स्पष्ट होता है कि पार्टी के भीतर सत्ता संघर्ष तेज हो गया है। योगी आदित्यनाथ अपनी चुनावी सफलता और बुलडोज़र की राजनीति के जरिए अपनी पकड़ बनाए हुए हैं, जबकि केशव प्रसाद मौर्य और अन्य ओबीसी नेता पार्टी में अपनी जगह मजबूत करने के प्रयास में लगे हैं। इन घटनाओं से यूपी में बीजेपी की राजनीति के भविष्य पर गहरा असर पड़ सकता है।
बीजेपी की मौर्य और योगी पर सोच
जेपी नड्डा, भूपेंद्र चौधरी और केशव प्रसाद मौर्य की ताजा मुलाकात को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, इन नेताओं की बैठक में एक नेता ने बताया कि यूपी के नेताओं ने योगी आदित्यनाथ के काम करने के तरीके की आलोचना की है। इसमें योगी के विधायकों, कार्यकर्ताओं और नेताओं की तुलना में अफसरों पर ज्यादा निर्भर रहने की बात भी की गई।
सूत्रों के अनुसार, पार्टी नेतृत्व ने इन नेताओं की बात सुनी और 10 विधानसभा सीटों पर उप-चुनाव की ओर ध्यान दिलाया। ये चुनाव अगस्त में होने हैं और तब तक किसी बदलाव की उम्मीद कम ही है।
अखबार यह भी लिखता है कि योगी आदित्यनाथ के अति आत्मविश्वास वाली बात के मद्देनजर इन चुनावों में योगी को खुली छूट दी जा सकती है ताकि यह देखा जा सके कि वे क्या कर सकते हैं।
योगी समर्थक का बयान
योगी आदित्यनाथ के समर्थक एक विधायक ने द हिंदू से कहा, “टिकट का फैसला बाबा (योगी) करते हैं क्या?” यह बयान भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
यूपी की 10 विधानसभा सीटें जहां उपचुनाव होने हैं
यूपी में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। इनमें से नौ सीटें विधायकों के लोकसभा चुनाव में लड़ने और जीतने के बाद खाली हुई हैं।
एक सीट
सीसामऊ, से सपा विधायक इरफान सोलंकी को एक क्रिमिनल केस में दोषी करार दिए जाने के बाद खाली हुई थी।
उपचुनाव की तारीखें
चुनाव आयोग ने अभी इन उपचुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं किया है। सपा और कांग्रेस ने घोषणा की है कि वे इंडिया गठबंधन के तहत चुनाव मैदान में उतरेंगे।
बीजेपी की तैयारी
बीजेपी की अगुवाई में एनडीए ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है।
इन 10 विधानसभा सीटों में स्थिति
इन 10 विधानसभा सीटों में से:
पांच सीटें- सपा ने 2022 में जीती थीं।
एक सीट:- सपा के साथ गठबंधन में रही राष्ट्रीय लोक दल ने जीती थी, जो अब आरएलडी बीजेपी के साथ है।
तीन सीटें:- बीजेपी ने जीती थीं।
एक सीट:- निषाद पार्टी ने जीती थी।
यूपी की 10 विधानसभा सीटें जहां उपचुनाव होने हैं
- फूलपुर
- कटेहरी
- करहल
- मिल्कीपुर
- मीरापुर
- गाजियाबाद
- मझवां
- सीसामऊ
- खैर
- कुंदरकी
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."