संजय सिंह राणा की खास रिपोर्ट
चित्रकूट। उस गांव में आज भी गूंजती है गोलियों की तड़तड़ाहट, आज भी खौफनाक मंजर याद कर सहम जाते हैं इलाकाई लोग और गोलियों के निशां बयां करते हैं उस सबसे भीषण मुठभेड़ की कहानी जिसने यूपी पुलिस को कटघरे में खड़ा कर दिया था।
एक ऐसा मुठभेड़ जिसका लाइव टेलीकास्ट उस समय दुनिया ने अपने टेलीविजन सेट पर देखा। खाकी के 4 जाबांज इस मुठभेड़ में शहीद हो गए जबकि 6 पुलिसकर्मी घायल हुए। घायलों में आईजी व डीआईजी स्तर के खाकी के लम्बरदार भी शामिल थे।
खाकी की मजबूरी कहें या हताशा कि उस डकैत को मारने के लिए पूरे गांव में आग लगा दी गई और ग्रामीणों के आशियाने जलकर खाक हो गए। कुछ ऐसा ही दहशत भरा मंजर था 52 घण्टे तक चली उस मुठभेड़ का।
पाठा के बीहड़ों से लेकर तराई के अनसुलझे रास्तों पर आज तक खौफ के कई ऐसे सौदागर हुए जिन्हें कानून की भाषा में डकैत कहा जाता है।
कुख्यात ददुआ ठोकिया रागिया बलखड़िया और वर्तमान में बबुली कोल ने यदि बीहड़ों में अपनी दहशत का साम्राज्य कायम किया है तो तराई के इलाकों में खूंखार शंकर केवट उसके शागिर्द घनश्याम केवट ने खौफ की इबारत लिखी है।
घनश्याम केवट ने तो दस्यु इतिहास के पन्नों में कभी न भूलने वाली उस मुठभेड़ को अंजाम दिया जिसने देश के सबसे राज्य यूपी की खाकी के पसीने छुड़ा दिए थे।
तारीख थी 16 जून 2009, दिन के 11 बजे की चिलचिलाती गर्मी, और जगह थी उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के राजापुर इलाके का जमौली गांव। पुलिस को मुखबिरों से खबर मिली थी कि कुख्यात डकैत घनश्याम केवट इस गांव के एक घर में छिपा हुआ है।
शुरुआत में पुलिस ने सोचा कि अकेले घनश्याम को पकड़ने के लिए कुछ पुलिसवाले काफी होंगे। इसी सोच के साथ 2-4 थानों की फोर्स गांव में घुसकर उस घर को घेर लिया।
जैसे ही पुलिस ने घनश्याम को सरेंडर करने के लिए कहा, उसने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस को जल्दी ही एहसास हो गया कि घनश्याम केवट को काबू में करना इतना आसान नहीं होगा। इसके बाद, चित्रकूट और आसपास के चार थानों की पुलिस के करीब 400 जवान मौके पर पहुंचकर मोर्चा संभालने लगे।
घनश्याम ने अपनी राइफल से लगातार गोलियां बरसानी शुरू कर दी। गोलियों की आवाज से पूरा चित्रकूट गूंज रहा था और इस मुठभेड़ की गर्मी लखनऊ तक महसूस की जा रही थी। सुबह 11 बजे से शुरू हुई फायरिंग रात तक जारी रही। इस बीच प्रदेश के आला पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए।
घनश्याम ने दो मंजिला मकान की खिड़की से .305 बोर की राइफल से पुलिस पर बारूद बरसाना जारी रखा। उसने ऐसी पोजिशन ले रखी थी कि ऊपर से गोलियां चला रहा था।
यूपी पुलिस और स्पेशल टास्क फोर्स के जवान भी अपनी-अपनी पोजिशन ले चुके थे। लेकिन ना तो घनश्याम केवट सरेंडर करने को तैयार था और ना ही पुलिस पीछे हटने को। गांव को खाली करा लिया गया था और जब दूसरे दिन भी घनश्याम की राइफल की आवाजें नहीं थमीं, तो पुलिस ने उसके मकान के आसपास के छप्पर वाले घरों में आग लगा दी।
पुलिस के अधिकारी मान रहे थे कि आग का धुआं घर में घुसेगा तो घनश्याम को बाहर निकलना ही पड़ेगा। 6 घंटे तक आग सुलगती रही लेकिन घनश्याम बाहर नहीं निकला।
एक बार फिर यूपी पुलिस की बंदूकें उस मकान की तरफ घूम गईं और बुलेट्स बरसने लगीं। देशभर में टीवी पर इस मुठभेड़ की खबरें लाइव थीं। मीडिया के कैमरे गांव के बाहर ही रोक दिए गए थे, लेकिन गांव से आने वाली गोलियों की आवाजें नहीं थम रही थीं।
इसी बीच खबर आई कि घनश्याम के साथ मुठभेड़ में पीएसी के जवान बेनी माधव सिंह, एसओजी के सिपाही शमीम इकबाल, वीर सिंह और एक अन्य पुलिसकर्मी शहीद हो गए। इनके अलावा 6 पुलिसवाले गोलियां लगने से जख्मी भी हुए थे।
इस तरह घनश्याम केवट ने 52 घंटों तक अकेले अपनी राइफल से 400 पुलिसवालों को रोके रखा। गोलियों की धांय-धांय से पूरा चित्रकूट और आसपास के इलाकों में खौफ का माहौल था, और यह मुठभेड़ उत्तर प्रदेश पुलिस की सबसे लंबी मुठभेड़ों में से एक मानी जाती है।
गोलियां हुईं खत्म तो छत से कूदकर भागा घनश्याम
जमौली गांव 16 जून से लेकर 18 जून तक गोलियां की तड़तड़ाहट से गूंजता रहा। दोपहर करीब 2 बजे के आसपास मकान की छत पर कुछ हलचल हुई। शायद घनश्याम डकैत के पास गोलियां खत्म हो चुकी थीं। वो छत पर पहुंचा और गांव से बाहर निकलने के लिए दूसरी मंजिल से ही पीछे की तरफ खेतों में छलांग लगा दी। इधर, पुलिस पहले ही गांव से निकलने के सारे रास्तों पर पहरे बिठा चुकी थी।
घनश्याम केवट कुछ ही दूर भागा होगा कि पुलिस की गोलियों ने उसे ढेर कर दिया।
पुलिस के अधिकारी मौके पर पहुंचे तो घनश्याम मारा जा चुका था। इस पूरे ऑपरेशन पर यूपी पुलिस के करीब 52 लाख रुपए खर्च हुए और आखिरकार खतरनाक डाकू घनश्याम केवट के आतंक से मुक्ति मिल गई।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."