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27 December 2024 2:49 pm

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अब अखिलेश ने ऐसा क्या कर दिया कि इमरान मसूद की टेंशन बढने के लगाए जा रहे हैं कयास?

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

2024 के लोकसभा चुनावों के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में गठबंधन किया था, जिसका फायदा अखिलेश यादव और राहुल गांधी दोनों को मिला। इस गठबंधन ने दोनों दलों के बीच एक सकारात्मक समन्वय का प्रदर्शन किया, जिसे 2027 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी जारी रहने की उम्मीद है। 

हालांकि, इस बीच अखिलेश यादव ने एक ऐसा कदम उठाया है जिसे कांग्रेस के लिए एक झटके के रूप में देखा जा रहा है। अखिलेश यादव ने सहारनपुर से पूर्व सांसद और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के नेता फजुलुर्हमान को समाजवादी पार्टी में शामिल कर लिया है। इस कदम ने राजनीतिक गलियारों में चर्चा को जन्म दिया है कि अगर सपा और कांग्रेस के बीच सब कुछ ठीक चल रहा है, तो अखिलेश यादव ने कांग्रेस सांसद इमरान मसूद के विरोधी नेता को सपा में क्यों शामिल किया।

यह ज्ञात है कि इमरान मसूद और अखिलेश यादव के संबंध पहले से ही अच्छे नहीं रहे हैं। पहले इमरान मसूद सपा में थे, फिर बीएसपी में शामिल हुए और बाद में कांग्रेस का हिस्सा बन गए। सहारनपुर एक ऐसी सीट है जहां अखिलेश यादव को लगता है कि यह उनकी पार्टी की जमीनी सीट है। अब, उन्होंने इमरान मसूद के विरोधी नेता फजुलुर्हमान को सपा में शामिल कर लिया है, जिससे यह माना जा रहा है कि अखिलेश यादव अब इस जिले में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं।

सहारनपुर में इमरान मसूद और फजुलुर्हमान के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है। दोनों नेताओं की अपने जिले में एक मजबूत साख है और दोनों ही अपनी-अपनी राजनीति को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

फजुलुर्हमान बड़े कारोबारी हैं और उनके पास कई स्लॉटर हाउस हैं, जिससे उनकी पहचान एक पैसे वाले और सज्जन सांसद के रूप में होती है। वहीं, इमरान मसूद का जिले में अपना वजूद है और वह भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं।

ऐसे में आगामी विधानसभा चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस और सपा का यह गठबंधन कितना सफल हो पाता है।

सहारनपुर में जहां एक तरफ कांग्रेस के इमरान मसूद पार्टी को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ फजुलुर्हमान समाजवादी पार्टी की खोई जमीन वापस दिलाने में मदद करेंगे।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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