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26 December 2024 11:39 pm

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आस्था के नाम पर त्रासदी और बेखबर सरकार, कुछ सवाल जिसपर विचार आवश्यक है

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मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट

हाथरस में एक सत्संग के दौरान हुए हादसे की न्यायिक जांच की घोषणा हो गई है और इस तरह अब इसके सहारे सरकार इस घटना पर उठने वाले सवालों के शांत होने की उम्मीद कर रही है। 

अब इस जांच के नतीजे कब आएंगे, किसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी, क्या कार्रवाई होगी, यह सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर है। मगर इस घटना में जो हुआ, उसने न केवल किसी स्वयंभू बाबा और उसके समूह को, बल्कि सरकार और समूचे प्रशासन-तंत्र को कठघरे में खड़ा किया है। 

हालत यह है कि एक बाबा के कथित सत्संग के आयोजन को लेकर तो सभी स्तरों पर लापरवाही बरती ही गई, उससे उपजी अव्यवस्था की वजह से मची भगदड़ में कम से कम एक सौ इक्कीस लोगों के मारे जाने के बाद कार्रवाई के मामले में भी पुलिस और प्रशासन का जो रुख सामने आया है, वह हैरान करने वाला है।

खबरों के मुताबिक भगदड़ के बाद छह सेवादार भाग गए थे, जिन्हें बाद में गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन मुख्य आरोपी को पकड़ने के लिए एक लाख रुपए इनाम की घोषणा की गई। 

इसके अलावा, पुलिस का कहना है कि अगर जरूरत पड़ी तो ‘भोले बाबा’ से भी पूछताछ की जाएगी। हालांकि इसका कोई संतोषजनक जवाब सामने नहीं आया है कि बाबा का नाम पुलिस के पास दर्ज प्राथमिकी में क्यों नहीं है!

सवाल है कि आस्था के नाम पर सामने आई त्रासदी के लिए अगर सत्संग के आयोजकों की जिम्मेदारी बनती है, तो इस व्यापक लापरवाही में प्रशासन भी अपनी जवाबदेही से कैसे बच सकता है? 

अस्सी हजार लोगों की जुटान की इजाजत दे दी गई और ढाई लाख लोगों का जमावड़ा हो गया तो यह किसके आंख मूंद लेने की वजह से हुआ? इतनी बड़ी तादाद में लोगों के वहां आने के बाद प्रशासन ने क्या ऐसा किया ताकि आपात स्थितियों में बचाव हो सके?

जिस राज्य में आए दिन सरकार किसी भी कोने में छिपे अपराधियों को काबू में करने का दावा करती रहती है, उसमें पुलिस और खुफिया तंत्र के इतने बड़े जाल के बावजूद ‘भोले बाबा’ कैसे फरार हो गया? 

सब कुछ दुरुस्त होने के दावे के बीच एक बाबा भारी संख्या में लोगों को जुटा कर अपनी महिमा का बखान करता रहा। फिर भगदड़ के बाद उसके फरार हो जाने पर पुलिस उसे पकड़ नहीं पा रही और प्राथमिकी तक में उसका नाम नहीं है तो इसके पीछे क्या वजहें हैं?

सच यह है कि इस तरह बाबाओं के समाज या साधारण लोगों के बीच पांव पसारने और उन्हें मन-मुताबिक संचालित करने के लिए भी सरकार की जिम्मेदारी बनती है। 

आम लोग अपनी जीवन-स्थितियों में बेहतरी और विकास लाने के साथ-साथ अच्छी पढ़ाई-लिखाई करें, नए विचारों से समृद्ध हों, इसकी व्यवस्था करना सरकार का दायित्व है। 

मगर इसके समांतर संदिग्ध पृष्ठभूमि वाला कोई व्यक्ति बाबा का रूप धर कर लोगों को इस हद तक प्रभावित कर लेता है कि कुछ पीड़ित भी भगदड़ और लोगों के मारे जाने के लिए उस पर सवाल उठाने को गलत मानने लगते हैं।

आस्था के नाम पर इस तरह के सम्मोहन की स्थिति पैदा होने को लेकर क्या सरकारों की कोई जवाबदेही नहीं बनती? अव्यवस्था से उपजी कोई बेहद दुखद घटना हो जाती है, लोगों की जान चली जाती है, तब समूचा सरकारी तंत्र अत्यधिक सक्रिय दिखने लगता है। 

अफसोस की बात यह है कि जब ऐसी भयावह घटनाओं की भूमिका बन रही होती है, तब सरकार बेखबर रहती है। अगर समय रहते थोड़ी भी सक्रियता दिखाई जाती, तो शायद ऐसी त्रासदी से बचा जा सकता था!

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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