हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट
भारत एक स्वतंत्र देश है, जहां लोग आजादी की हवा में सांस लेते हैं और मूलभूत सुविधाओं से लैस हैं। देश विकास के राह पर तेजी से अग्रसर है, लेकिन आज भी कई ऐसे लोग हैं जो पीने के साफ पानी और अच्छी सड़कों जैसी सुविधाओं के अभाव में जीवन जीने को मजबूर हैं।
देश में विभिन्न प्रकार के लोग रहते हैं, जिनमें से आदिवासी जनजाति विशेष रूप से कई सुविधाओं से वंचित हैं। ऐसी ही एक जनजाति है छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में रहने वाली पंडो जनजाति।
यह जनजाति आज भी तीर-धनुष को अपने घरों में सहेज कर रखती है। पंडो विशेष पिछड़ी जनजाति है और राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाते हैं। मरवाही क्षेत्र के वनांचल गांव सेमरदर्री का आश्रित ग्राम बगैहा टोला, जहां 75 प्रतिशत पंडो जनजाति निवास करती है, आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। उनकी दुर्दशा की ओर न तो कोई नेता ध्यान दे रहा है और न ही कोई अधिकारी।
गंदे पानी को पीने के लिए मजबूर हैं लोग
इस गांव में पीने के पानी की व्यवस्था अब तक नहीं हो सकी है। यहां के ग्रामीण नाले और झिरिया के गंदे पानी को पीने के लिए मजबूर हैं। लोग पहाड़ों के उबड़-खाबड़ रास्तों पर दो किलोमीटर पैदल चलकर पानी लेने जाते हैं।
बरसात का सीजन शुरू हो चुका है, लेकिन फिर भी गर्मी कम नहीं हुई है। ऐसे में बरसात और उमस के बीच महिलाएं सिर पर बड़े-बड़े बर्तन लेकर झिरिया से पानी लेने जाती हैं। झिरिया मिट्टी की मेड़ से बनी होती है, जिसमें जमीन से पानी रिस कर आता है। इसके अलावा, इसमें इधर-उधर का पानी भी जमा होता है।
गर्मियों में सूख जाता है कुआं
झिरिया का मटमैला पानी किसी भी तरह पीने लायक नहीं लगता, लेकिन मजबूरी ऐसी है कि जीने के लिए इसे ही पीना पड़ता है।
गांव के दूसरे मोहल्ले में एक कुआं है जिसकी गहराई बमुश्किल 10 फीट होगी। कम गहराई के कारण कुएं का पानी भी पूरी तरह से गंदा होता है। इस कुएं का पानी एक परिवार के लिए भी पर्याप्त नहीं होता।
गर्मियों में कुआं पूरी तरह सूख जाता है, जिससे परिवारों के बीच पानी के लिए द्वंद शुरू हो जाता है। अंततः ग्रामीणों को झिरिया का गंदा पानी पीने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। इस पूरे गांव में पानी की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष होता है।
अधिकारी नहीं ले रहे लोगों की सुध
ग्रामीणों का कहना है कि जिम्मेदार अधिकारियों से शिकायत करने के बावजूद यहां की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।
सरपंच से लेकर कलेक्टर तक को मौखिक और लिखित रूप में समस्या से अवगत कराया गया है। कई बड़े अधिकारी इस गांव में आकर आश्वासन देते हैं, लेकिन समस्या का समाधान नहीं होता।
गांव के छोटे बच्चों की स्थिति देखकर साफ पता चलता है कि गंदे पानी को पीने से उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है। बच्चों में कुपोषण स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
खतरनाक रास्ते
झिरिया से पानी लाने के लिए ग्रामीणों को जंगल और पहाड़ों से होकर गुजरना पड़ता है, जहां भालू और हाथियों का खतरा हमेशा बना रहता है।
यह क्षेत्र भालू और अन्य जंगली जानवरों से भरा पड़ा है, और हाथी मरवाही वन मंडल में इन्हीं क्षेत्रों से प्रवेश करते हैं। पानी लाने के लिए जान जोखिम में डालना पंडो जनजाति के लिए रोजमर्रा की चुनौती है।
पंडो जनजाति की यह दुर्दशा आज भी आजाद भारत के विकास के दावों को चुनौती देती है। सरकार और संबंधित अधिकारियों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि इन लोगों को भी सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार मिल सके।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."