चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
लखनऊ में अगर आप सलाद में कड़वा खीरा पाते हैं तो यह महज संयोग नहीं बल्कि गर्मी का प्रभाव है। गर्मी के कारण खीरे की पैदावार कम हो गई है और जो भी बाजार में उपलब्ध है, उसमें से अधिकांश खीरे कड़वे हैं। खीरे के साथ-साथ अन्य फल और सब्जियां भी गर्मी से प्रभावित हो रही हैं। जामुन अभी बाजार में दिख ही नहीं रहा है क्योंकि जून में बारिश न होने के कारण जामुन पक नहीं पा रहा है और छोटे आकार में ही सूखकर पेड़ से गिर जा रहा है।
अन्य सब्जियां और फल भी गर्मी से झुलस रहे हैं, जिससे किसानों की मेहनत और लागत बढ़ गई है। इसका परिणाम यह है कि ये महंगे मिल रहे हैं और उनका स्वाद भी वैसा नहीं है।
जून में 82% कम बारिश हुई है। आमतौर पर जून में मॉनसून न सही, पर बारिश की शुरुआत हो जाती है। लखनऊ में जून में सामान्यतः 26 मिमी और प्रदेश में 26.8 मिमी औसत बारिश होती है, लेकिन इस साल लखनऊ में मात्र 7 मिमी और प्रदेश में 2.1 मिमी बारिश हुई है। इस प्रकार सामान्य से लखनऊ में 73% और प्रदेश में 82% कम बारिश हुई है। इसके कारण गर्मी का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है।
पिछले सप्ताह में लखनऊ का अधिकतम तापमान 44 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा है और इस महीने का सबसे अधिकतम तापमान 17 जून को 46 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो पिछले 9 साल में सबसे अधिक है। प्रदेश के अन्य शहरों में तापमान 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है।
इस सीजन में आम के बाद जामुन का बेसब्री से इंतजार रहता है, लेकिन अभी तक उत्तर प्रदेश का जामुन बाजार में नहीं आया है। जो जामुन बाजार में दिख रहा है, वह दूसरे राज्यों का है। उत्तर प्रदेश का जामुन नहीं आने की वजह यह है कि जून में एक बार भी बारिश नहीं हुई है। जामुन तभी पकता है जब बारिश होती है। पिछले वर्षों में इस समय तक थोड़ी बहुत बारिश हो जाती थी और जामुन पकने लगता था।
सीआईएसएच के निदेशक डॉ. एस. राजन कहते हैं कि बारिश के बाद ही जामुन पकता है। अभी बारिश न होने और तापमान बढ़ने के कारण जामुन का आकार नहीं बढ़ पाएगा। माल के किसान राम किशोर बताते हैं कि इतनी गर्मी से काफी जामुन सूखकर गिर जाएगा। जामुन देर से आएगा और फसल भी काफी कम होगी।
गर्मियों में सलाद में खीरा खूब पसंद किया जाता है। डॉ. राजन कहते हैं कि इतनी गर्मी में खीरे की फसल लगभग खत्म ही समझिए। गर्मी वाली फसल अब नहीं रही। अब बारिश के बाद वाली फसल ही आएगी।
राम किशोर बताते हैं कि कुछ किसान खेतों में लगातार पानी देकर खीरा बचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सिंचाई की लागत बढ़ रही है। थोड़ा भी पानी कम रह गया तो खीरे में कड़वाहट आ जाएगी।
गर्मी का असर आम और अन्य सब्जियों पर भी पड़ रहा है। नबी पनाह माल के किसान उपेंद्र सिंह कहते हैं कि आम के बागों में भी लगातार सिंचाई करनी पड़ रही है। बागों में नमी बरकरार रखनी जरूरी है। यदि समय पर पानी नहीं दिया गया तो आम का आकार छोटा रहेगा और जल्दी पककर गिर जाएगा।
राम किशोर बताते हैं कि गर्मी के कारण लागत और मेहनत दोनों बढ़ गई हैं। सब्जियों में हफ्ते में कम से कम तीन बार पानी देना पड़ रहा है। एक बीघा खेत की सिंचाई में पांच घंटे लगते हैं और प्रति घंटे 200 रुपये के हिसाब से एक बार का खर्च 1000 रुपये होता है। हफ्ते में तीन बार पानी देने पर 3000 रुपये का खर्च आता है, जो पहले 1000 रुपये ही था।
कुछ किसान जून में ही धान की नर्सरी लगाना शुरू कर देते हैं। यदि अब तक बारिश हो जाती तो ज्यादातर किसान नर्सरी लगाना शुरू कर देते। अभी वही किसान नर्सरी लगा पाएगा जो पानी का खर्च उठा सके।
किसान नेता हरिनाम वर्मा कहते हैं कि इस समय नर्सरी लगाने से पहले तीन बार पानी की जरूरत होगी। दो बार में खेत नम होंगे और उसके बाद तीसरे पानी में नर्सरी लगाई जाएगी। नर्सरी लगाने के बाद भी हफ्ते में तीन बार पानी देना जरूरी होगा।
Author: samachar
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